सात उपन्यास, बाईस कहानी संग्रह, तीन नाट्य संग्रह तथा तीन वैचारिक लेखों के संकलन। फिलहाल टाटा स्टील से अवकाश प्राप्ति के बाद पूर्णकालिक लेखन।

गांव के एक छोटे किसान पलकधारी का बेटा तरेगन प्रसाद एक बहुत ही मेधावी और विलक्षण लड़का था। गांववाले उस पर फख्र करते थे और उसे अपने बच्चों के सामने एक उदाहरण की तरह रखते थे। सभी यह मानकर चल रहे थे कि तरेगन एक बहुत बड़ी नौकरी में बड़े पद पर बहाल होने में जरूर कामयाब हो जाएगा। तरेगन ने बी.एस-सी कर लेने के बाद साहबी रोब-दाब एवं धाक वाली बड़ी नौकरियों के लिए आवेदन करना शुरू कर दिया। लिखित परीक्षा तो वह पास कर लेता, लेकिन बदकिस्मती से साक्षात्कार में उसे सफलता नहीं मिल पाती। ऐसा एक नहीं दस-बारह बार हो गया।

उसका आत्मविश्वास डगमगाने लगा। उसकी एक सहपाठिन गीतिका थी, जो उसकी मेधा से बेहद आकर्षित रहा करती और उसे प्रेरित-प्रोत्साहित करती रहती। बार-बार इसके छंट जाने पर उसे भी ताज्जुब हुआ। उसने सुझाव दिया कि अब छोटी नौकरियों को भी आजमा कर देखे।

वह छोटी नौकरियों के लिए आवेदन करने लगा। लेकिन इसमें भी वह असफल होता चला गया। वह हैरान था और समझ नहीं पा रहा था कि आखिर उससे चूक कहां हो रही है। उसके पिता पलकधारी को भी बहुत धक्का पहुंचने लगा। गरीबी-गुरबत में पेट काटकर भी उसने उसे पढ़ाने-लिखाने में कोई कोताही नहीं की। वह पूरी आस लगाए बैठा था कि इस होनहार बेटे के बूते उसके बुरे दिन जरूर टल जाएंगे। उसने गौर किया कि तरेगन के मुकाबले पढ़ाई-लिखाई में गोबरगणेश और फिसड्डी रहे हुए लड़के भी अच्छी-अच्छी नौकरियों में लगते जा रहे हैं। जब उसने इसका कारण जानना चाहा तो किसी ने बताया कि यह सब चढ़ावा का कमाल है।

गांव का एक स्वघोषित जनसेवक और बिचौलिया किस्म का आदमी था अचकन लाल। उसने पलकधारी को बताया कि रेस जीतने के लिए सिर्फ खरगोश होना ही काफी नहीं है, उसके लिए रास्ता भी दुरुस्त होना चाहिए। तरेगन में बेशक एक बड़े पद पर पहुंचने की काबिलियत है, लेकिन उस पद को हासिल करने का जो रास्ता है, उससे बिना टोल टैक्स चुकाए गुजरा नहीं जा सकता। उसने सुझाया कि हर पद के हिसाब से अलगअलग रास्ता है और अलग अलग टोल टैक्स।

पलकधारी की औकात को तौलते हुए उसने बताया कि उसके बेटे के लिए दारोगा की नौकरी ठीक रहेगी। इसके लिए चढ़ावे की रकम जब उसने बतायी तो पलकधारी भीतर से हिल गया। उसने कहा कि उसकी माली हालत एक नारियल तक चढ़ाने लायक नहीं है, फिर इतनी बड़ी रकम वह कहां से लाएगा। अचकन ने उसे कमअक्ल साबित करते हुए बुद्धि दी, ‘जानता हूँ कि तुम्हारे पास नकद आय का कोई स्रोत नहीं है, लेकिन दो बीघा जमीन तो है। इस नौकरी के लिए इतनी सी जमीन दांव पर लगा देने में कोई जोखिम नहीं है। आखिर दारोगा जैसे कामधेनु पद पर जम जाने के बाद खेती-बारी में खून-पसीना बहाने की जरूरत ही कहां रह जाएगी।’

पलकधारी को लगा कि अचकन लाल जो कह रहा है, उसमें दम है। अचकन ने उसे आश्वस्त किया कि वह पूंजी का जुगाड़ करे, रास्ता धराने में वह मदद कर देगा। उदाहरण देकर उसने बताया कि गांव-जवार में जिन-जिन लड़कों ने सफलता हासिल की है, उन्हें उसने ही मदद की है।

अचकन के कहे अनुसार तरेगन ने दारोगा भर्ती का इश्तेहार निकलते ही आवेदन कर दिया और शारीरिक जांच की पहली परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। सुबह-शाम सेर भर गाय का दूध और मैदान में जाकर दंड-पेल, उठ-बैठ और दौड़-भाग का रेयाज। गांव वाले उसकी तैयारी देखकर अचरज में पड़ गए कि लगन हो तो ऐसा। दारोगा के लिए वे उसे एकदम फिट घोषित करने लगे। गीतिका भी उसे खूब सराहने लगी और अपने घर से भी ताकत देने वाला पौष्टिक खाना लाकर खिलाने लगी।

उसकी मेहनत सफल रही। वह शारीरिक जांच में पास हो गया। लिखित में तो उसे कोई संदेह ही नहीं था। हर बार की तरह इस बार भी लिखित में वह उत्तीर्ण रहा। अब साक्षात्कार की वैतरणी पार करनी थी और सहारा था अचकन लाल।

पलकधारी ने अचकन पर भरोसा करके अपनी आजीविका का एकमात्र साधन कुल दो बीघा जमीन गांव के एक साहूकार के यहां गिरवी रख दी और अचकन के साथ पटना जाकर इंटरव्यू के दो दिन पहले एक साहब के मातहत को पैसा दे आया। पैसा देते हुए उसके मन में एक धुकधुकी समायी थी कि कहीं बीच में कोई लफड़ा हो गया तो दरदर भीख मांगने के अलावा उसके पास कोई उपाय नहीं रह जाएगा। मातहत एजेंट ने उसे पुख्ता आश्वासन दिया कि अब उसके बेटे का दारोगा बनना तय है।

बहाली की चिट्ठी का इंतजार होने लगा। पूरे गांव-जवार में उसके दारोगा बनने की चर्चा फैल गई। सब लोग उस पर फख्र करते हुए उसे खासमखास मानने लग गए। उसकी बिरादरी के सताए हुए कई लोग हौसला संजोने लगे कि इसके दारोगा बनते ही उनका रुतबा बदल जाएगा और सारा रुका हुआ काम हो जाएगा। किसी की मजाल नहीं होगी कि उसके नजदीकी आदमी के दारोगा रहते कोई उनके साथ ऊंच-नीच या नाजायज कर ले।

गांव के अधिकांश लोगों ने तो उसे दारोगा जी कहकर पुकारना भी शुरू कर दिया। गीतिका का परिवार उसके साथ नजदीकी का विरोध करता था। अब सबने अपनी दृष्टि बदल ली और गीतिका को उससे मिलने-जुलने की छूट दे दी। अक्सर बाहर से खेल-कूद में पिटकर आने वाले तरेगन के छोटे भाई अब शेर की तरह अकड़कर रहने लगे।

शादी के बिना हताश और मायूस रहने वाली उसकी छोटी बहन एक नए भविष्य के सपने देखने लगी। भाई के दारोगा बनते ही भला किसकी हिम्मत होगी दहेज मांगने की। अरसे से एक बेहतर इलाज के बिना बीमार रहने वाली उसकी मां भी यह सोचकर खुश रहने लगी कि एक दारोगा की मां की दवा-दारू करने में अब कोई डॉक्टर आनाकानी नहीं कर पाएगा। गांववाले तरेगन के पिता पलकधारी से अदब से बात करने लगे और पूछने लगे कि  बबुआ कब ज्वाइन कर रहा है। पलकधारी छाती फुलाकर जवाब देता कि बस अब हफ्ता दो हफ्ता का ही मामला है।

गांव के डाकिया ने भी अपनी अर्जी लगा दी कि दारोगा बहाली की चिट्ठी वह लेकर आएगा तो एक बड़ा बख्शीश लिए बिना नहीं मानेगा। पलकधारी ने उसे चेता दिया कि बख्शीश तो दे देंगे बाकी कल जब कोई लफड़ा में फंसोगे तो पैरवी के लिए हमको मत बोलियो। खेत गिरवी रखने वाला साहूकार भी बड़ा नरमी से पेश आने लगा और कहने लगा कि अपना खेत आप जोतते रहो। दारोगा में बहाली हो जाएगी फिर तो पैसे आप चुका ही दोगे। उसे डर हो गया कि नाहक अभी पैसे के लिए सख्ती बरतने से दारोगा बन जाने पर कसर भी निकाल सकता है और कोई मामला फंस जाने पर मदद से मुंह भी फेर सकता है।

गांव में कोई कलह या झगड़ाझंझट हो गया तो लोग अभी से तरेगन को निपटाने के लिए बुलाने लग गए। तरेगन भी एकदम दारोगा वाले रौब से दखल देने में रुचि लेने लगा और बीचबचाव करके फैसला सुनाने लग गया। उसने अच्छा खापीकर अपनी देह बना ली, ऊपर से कड़कदार मूंछें भी रख ली। आखिर एक दारोगा को दमदार और बलिष्ठ होने के साथ ही मूंछों से भी भड़कदार लगना चाहिए। अपराधियों से निपटने में ऐसे रौबदाब की बहुत जरूरत होती है।

इसी तरह एक काल्पनिक दारोगा के रौब-रुतबे में वह ढलता चला गया। बहाली की चिट्ठी पर निगाह टिकी हुई थी और रोज ऐसा लगता था कि आज नहीं आई तो कल जरूर आ जाएगी। यह कल बहुत लंबा खिंचता चला गया और दाल में कुछ काला होने का आभास होने लगा। पलकधारी में एक बेचैनी समाने लगी। उसने अचकन से जाकर अपनी चिंता प्रकट की।

अचकन ने दिलासा देते हुए कहा, ‘सरकारी काम में तो देरी होती ही है, थोड़ा सब्र से काम लो। इस बीच मूंछ घनी हो रही है, उसे और घनी होने दो।’

मूंछ घनी होकर झबरीली हो गई और सब्र का बांध लबालब भर गया, फिर भी बहाली की चिट्ठी कहीं हवा में ही तैरती रह गई। पता चला कि उसके साथ इंटरव्यू में बैठे कई लड़के की ज्वाइनिंग काफी पहले हो गई और वे ड्यूटी भी करने लग गए। भागा-भागा तरेगन अपने बाप पलकधारी के साथ पटना पहुंच गया, मगर उसकी किसी से मुलाकात नहीं हो पाई। पता चला कि जिस साहब को चढ़ावा चढाया था, उसका तबादला अंडमान-निकोबार हो गया और बीच का वह मातहत एजेंट भी कहीं गायब हो गया।

लोगों को जब कानों-कान भनक लग गई कि तरेगन का दारोगा बनना अब हवा-हवाई हो गया है तो रातोंरात सबका बरताव बदल गया और उन पर हिकारत, उलाहना और तंज करने की भंगिमा तारी हो गई। मतलब दारोगा बनने की फैली हुई हवा से एकाएक बढ़ा हुआ उसका कद और भाव बर्फबारी के बाद के तापमान की तरह नीचे गिर गया। यहां तक कि गीतिका ने भी उससे मुंह फेर लिया और उसके घरवालों ने उसकी दूसरी जगह शादी करवा दी। पलकधारी तो जैसे जिंदा लाश बन गया। उसकी पूरी दुनिया ही लुट-पिट गई।

अचकन ने उसकी बर्बादी के विलाप पर घड़ियाली तरस खाते हुए उपाय सुझाया कि पैसे वापस लेने के लिए सबसे बड़े साहब तक पहुंच भिड़ानी होगी। इस काम के लिए भी एक चढ़ावा की जरूरत पड़ेगी।

मरता क्या न करता। फंसी हुई एक बड़ी रकम को यों ही छोड़ कैसे देता। उसने साहूकार के घर दौड़ लगाई। साहूकार ने मुंहफट होकर बड़ी बेरुखी से जवाब पकड़ा दिया कि रुपये वह तभी दे सकेगा जब जमीन को गिरवी की जगह बिक्री कर डाले। यही वह आदमी था जब दारोगा बनने की हवा सूंघकर जमीन वापस तक करने आ गया था। पलकधारी ने जमीन उसके नाम रजिस्ट्री कर दी।

एक माह इंतजार कराने के बाद अचकन ने खबर दी कि बड़े साहब ने छोटे साहब को जब जवाब तलब किया तो उसने इस तरह का कोई रुपया लेने के आरोप से सीधा इनकार करते हुए मानहानि का मुकदमा दायर करने की धमकी दे दी।

दोनों बाप-बेटे का होशोहवास अब एकदम गुम हो गया। बहुत कराहते हुए पलकधारी ने पूछा कि अब क्या उपाय है अचकन बाबू।

अचकन लाल ने अपने दिमाग पर जोर डालकर युक्ति निकालने का स्वांग करते हुए कहा कि मंत्री से मिलने पर शायद कोई रास्ता निकल सकता है।

पलकधारी ने अधीर होते हुए कहा, ‘तो फिर आज ही चलिए अचकन बाबू, देर मत कीजिए।’

‘टोल टैक्स चुकाने की जरूरत तो यहां भी पड़ेगी, इंतजाम कर लो आज ही चलते हैं पटना।’

पलकधारी के पास बेचने के लिए सिर छुपाने का एकमात्र ठौर एक अदद घर बचा था। इस पर भी शामत टूटने की दस्तक सुनाई पड़ने लगी थी। इसके बाद तो बिकने के लिए उसके पास उसकी एक मासूम सी कुंवारी बेटी ही बच जाएगी।

बूढ़ा पलकधारी, जो इन दिनों फरेब और ठगी का शिकार होते होते कुछ ज्यादा ही बूढ़ा हो गया था, फूट-फूटकर रो पड़ा। अचकन लाल उसकी पीठ पर हाथ फिराते हुए बहलाने लगा, ‘क्या करोगे, यह सब मुकद्दर का खेल है। हर कुत्ता काशी नहीं पहुंचता, पलकधारी।’

इस फिकरे पर तरेगन उसकी गर्दन दबोचने के लिए लपक पड़ा। तभी बीच में आकर पलकधारी ने उसे रोक दिया।

तरेगन ने अपनी नाक के नीचे उगी झबरीली मूंछें मुड़वा ली और सफाचट बन गया। अब वह अपने थोबड़े को इस तरह बदरूप कर लेना चाहता था कि उसे कोई पहचान न सके। 

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