अनुराधा महापात्र (1954) स्त्रीवादी बांग्ला लखिका। कविताओं में प्रतिवाद के साथ–साथ व्यथा और करुणा का स्वर। पश्चिम बंग अकादमी पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित। अब तक 25 कविता संग्रह, तीन निबंध संग्रह। |
जयश्री पुरवार वरिष्ठ लेखिका और अनुवादक। पुस्तक ‘अमेरिका ओ अमेरिका – भाग 1’, ‘सपनों का शहर सैन फ्रैंसिस्को’ (यात्रा वृत्तांत)। |
कठपुतली का नाच
तारों भरे आकाश के नीचे
अँधेरे में दादी मां और मैं
दोनों चली जा रही हैं बातें करते हुए
मैदान पार करके
बिजली गिरने से जले हुए वृक्ष के
तने से सटकर
कहारों के मुहल्ले की ओर
ललिता की सहेली विशाखा
मर गई हैजे से
कुछ दिन पहले ही
कठपुतली का नाच देखने गई थी
धान की कटाई, उठाई, सब खत्म
बंधे हुए फूस की गंध से भरा मैदान
दादी मां लालटेन लेकर जा रही हैं
वैद्य पुण्य दादू के पास
अश्विनी की मां के टायफॉयेड की दवाई लेने
इतने दिनों बाद वह दृश्य
बार-बार इतना याद आता है
बचपन की बात बहुत याद आती है
दादी मां और पुण्य दादू की बात भी
यहां तक कि दादी मां के हाथ की
वह छोटी लालटेन भी
आज रास्ता दिखाती है
मेरे भीतर
दादी मां, क्या बिजली से
जले हुए उस वृक्ष ने भी
मुझे नहीं दिखाया रास्ता?
पुकार सकती हूँ
पीठ के झूले में
दूधपीते बच्चे को लेकर
जो गूँगी सी लड़की
मचान पर चढ़ रही है
क्या उसको मैं मां कहकर
पुकार सकती हूँ?
कंधे पर चिड़िया
पीछे कुत्ता
गाभिन बकरी
लेकर चल रहा है
जो जला हुआ आदमी
क्या उसे मैं
सखा कहकर
पुकार सकती हूँ?
जो बहरी किशोरी
राधिका के गाने पर
भीख माँग रही है
राह-राह घूमते हुए
उसे क्या आज मैं
सखी सुनो
कह सकती हूँ?
जो काला लड़का
ट्रेन में बेच रहा है
अनजाने पीले
गेदें का माला
उसको आज क्या मैं
पुत्र कहकर
बुला सकती हूँ?
बारिश हो रही है
बारिश हो रही है
अमरूद के फूलों के परागों पर
बारिश हो रही है फागुन में
बादल घिर रहे हैं
आम्र मंजरी के डंठलों पर इस बार
बादल घिर रहे है
भौरों के पंखों पर
आज बारिश हो रही है
बादल देख रहे हैं कि
आज किसके चरणों पर
फूल झर रहे हैं
इस मिट्टी पर आज अविराम
तूफान के खेल संग बारिश हो रही है!
ईशान कोण में
एक मधुमक्खी
जाने किसकी खोज में
अकेले घूम रही है
आज आकाश में
अमरूद के फूलों के
शर्मीले शाखों पर
बारिश हो रही है।
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