दूरदर्शन केंद्र, दिल्ली में कार्यरत। फकीराना अंदाज’ (उपन्यास) तथा दिल्ली में बारिशऔर अंतिम युद्धचर्चित पुस्तकें।

ओ दया नदी

ओ दया नदी!
सच बताना
क्या तुम अभी भी सुना रही हो
वही कहानी
किसी को बोध हुआ था तुम्हारे तट पर
युद्ध विनाश के सिवा कुछ भी नहीं

ओ दया नदी
जरा जोर से बताना
क्या इस बार युद्ध में झुलसा हुआ कोई पक्षी
आया था तुम्हारे पास चोंच में पानी भरने

ओ दया नदी
क्या कोई कहने आया था
अच्छे और बुरे वायदों के बीच फर्क किए बिना
दुनिया पट रही है परचमों से
और नदियां हो रही हैं लाल

ओ दया नदी
क्या किसी ने तुम्हें बताया
थोपे गए समझौते में जी रहे हैं निरीह लोग
जैसे भूखे बच्चे पी लेते हैं फटा-बासी दूध
और चमकने लगती हैं मजबूर मौंजों की आंखें
मृगमरीचिका की चमक में

ओ दया नदी
क्या तुम्हें पता चल गया
योद्धा अभी भी परोस रहे हैं श्वेत-श्याम चित्र
मगर दर्शकों के सामने बिखरे हैं अनेक रंग
समय, स्थान, पात्र और तितलियों के रूप में

ओ दया नदी!
गौर से देखो
कबूतरों की आंखों में
तैर रहा है एक सपना
इस बार वसंत में
कोयल के कंठ से एक नया गीत निकलेगा

ओ दया1 नदी! मत सहमो
बहकर मिलो सागर से
इस बार अशोक के हाथ में तलवार नहीं होगी।

1. दया नदी के तट पर अशोक और कलिंग के बीच युद्ध लड़ा गया था। कहते हैं कि उस युद्ध में इतने लोग मारे गए थे कि दया नदी का जल रक्त से लाल हो गया था।

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