एक डायरी यादावरीऔर कविता संग्रह उम्मीदों के चिराग’, ‘रेगमाल।राजस्थान में भारतीय प्रशासनिक सेवा में।

 

पिता, मां और वक़्त

1.
पिता चाहते हैं
बेटा रहे गबरू सदा
वह मरने के बाद कांधा है बाप का
बेटा नहीं चाहता है
देखना पिता का बुढ़ाना
वह बच्चा है जब तक पिता हैं
मां चाहती है
दोनों की लंबी उम्र
सुहागन जाए, भागन जाए
और इन सब से निर्लिप्त
वक्त की सुई घूम रही है
हर पल, हर घड़ी!

2.
घड़ी
छोटी, बड़ी
महंगी, सस्ती
दीवार की, हाथ की
पहाड़ पर, मैदान में
महल में, झोपड़ी में
एक जैसा वक्त बताती है
चांद बढ़ने-घटने
सूरज उगने-छिपने
और कई बार दिखने-न दिखने के बीच
घड़ी के कांटों ने
क्षण-भर भी बदलाव नहीं किया
चक्कर काटने में
वक्त की चाल से ज्यादा नियत
कुछ और नहीं है।

3.
पिता सफेद बाल गिनते हैं
बेटा दाढ़ी के बाल देखता है
बेटी घनी ज़ुल्फों से होकर सपने टांकती है
मां माथे में बालों के बीच सिंदूर देख खुश हो रही है
घड़ी पर बाल-भर भी फर्क नहीं पड़ा है
उसने ये सब बार-बार होते देखा है।

घर

बाख में पीपल
और शीशम
फिर घर का कच्चा आंगन
गोबर-माटी की सौंधी महक लिए
धुकता हारा, कढ़ता दूध
पिछवाड़े गौ और बाछ छोटा-सा
आंगन में आंगन
चूल्हे पर हांडी में
सीझती दाल
थोड़ी दूर बिलौना
दादी ने जिसे बिलोया
परभाती गाते-गाते
घड़वांची पर मटके
एक अन्न-भखारी
थकी-हारी
दो कच्चे गोबर लीपे
फूस से छते आसरे
गाच पुते खोरों पर
करीने से कटे
मांडणे गुदे पायों वाले
सूत-मूंज से बुने
लकड़ी के मंजे
खूंटियों टंगे ठाठिये
टांड पर भांडे-बर्तन
रस्सियों झूलती लाठी में
लटके गूदड़
भींत के आले में बिराजे देव
और वहीं
घर-भर को रोशन करती
एक ढिबरी
पहले मैं
इस घर के दिल में था
अब यह घर मेरे दिल में है!

आत्महत्या

1.
दुख, गुस्से, संताप, टूटन या रीतेपन के कारण
आत्महत्या कर रहा आदमी
मरने से पहले देख चुका होता है
मरते हुए
अपनी उम्मीद, ख़ुशी, चाह, राह , बात और साथ
आत्महत्या
बेशक पलायन है जीवन से
पर यह मुहर है इस बात पर
कि भरी दुनिया में कहीं से, कोई भी
उसे दे ना सका
फ़क़त एक बहाना जीने के लिए।

2.
मैं जीवन पर लिख सकता हूँ एक कविता
मगर आत्महत्या पर लिखते वक़्त
मुझे दिखता है केवल एक कमजोर आदमी
जिसके लिए अपनी उलझनें, अवसाद और ख़ालीपन
इतने बड़े हो गए
कि खयाल ही न रहा
कि उसके अपने हर रोज मरेंगे
उसके यूं मरने के बाद

3.
आत्महत्या
कर सकता है वह आदमी
जिसने जान लिया पुख़्ता तौर पर
कि नहीं है कोई और
उससे ज्यादा अभावग्रस्त
टूटा हुआ, मुसीबतों का मारा
अकेला या रीता हुआ
इस भरी दुनिया में
पर एक भी चेहरा
गर ध्यान आए
खुद से ज्यादा
खंडित, भंडित, रंजित
तो फिर मानिए
लड़ने के बजाय मरने का विकल्प
केवल सुविधाजनक पलायन है।