भारतीय भाषा परिषद और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा संयुक्त रूप से भक्ति आंदोलन पर 21 मई को आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डॉ. विजयबहादुर सिंह ने कहा कि भक्ति आंदोलन को समझने के लिए गांधी की धार्मिक दृष्टि को समझना बहुत जरूरी है। भक्ति का सूफियों के प्रेम से गहरा संबंध रहा है। रांची विश्वविद्यालय के डॉ. रविभूषण ने कहा कि भारत के विभिन्न प्रदेशों में भक्ति आंदोलन विविध तरह से आया और उसका मुख्य संदेश ईश्वर के समक्ष सबको समान समझना था। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि ‘सनातन में सर्जनात्मकता’ भक्ति साहित्य को देखने का एक नया परिप्रेक्ष्य है। आज के धार्मिक शोर में भक्ति का संदेश खो गया है। रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय के इतिहासविद प्रो. हितेंद्र पटेल ने कहा कि रवींद्रनाथ और गांधी दोनों को भक्ति आंदोलन ने प्रभावित किया था और खुद उनकी दृष्टि ने भक्ति आंदोलन के मूल्यांकन को प्रभावित किया।

‘भक्ति आंदोलन और वर्तमान समय’ पर विचार के दूसरे सत्र में अंबेदकर विश्वविद्यालय, दिल्ली के प्रो. वैभव सिंह ने कहा कि भक्ति आंदोलन के दौर में जड़ धार्मिक व्यवस्था की आलोचना की गई थी और आज भी धर्म के संबंध में कई बातें कही जा रही हैं। इन दोनों में फर्क है। आज धर्म पर बाजार और राजनीति का असर  ज्यादा है। दिल्ली से आए कवि और फिल्मकार देवी प्रसाद मिश्र ने कहा कि भक्ति आंदोलन से प्रेरणा लेकर एक ऐसी सभ्यता का निर्माण करना होगा जो मानवीय हो।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. गोपेश्वर सिंह ने कहा कि गांधी तुलसी के रामराज्य से प्रभावित थे, तो वे कबीर के प्रेम, श्रमचेतना और अहिंसा के विचारों से भी प्रभावित थे। उन्होंने ईश्वर को अपने जीवन की प्रेरणा बना ली थी। अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ आलोचक डॉ.अवधेश प्रधान ने कहा कि भक्ति साहित्य की प्रेरणा से ही आज मनुष्य जाति सुख और विश्व शांति की ओर बढ़ सकती है।

आयोजन में परिषद की ओर से अध्यक्ष डॉ.कुसुम खेमानी, मंत्री डॉ.राजश्री शुक्ल, वाणी प्रकाशन के अरुण माहेश्वरी,  अदिति माहेश्वरी तथा मिशन की ओर से रामनिवास द्विवेदी, मृत्युंजय, गीता दूबे, श्रद्धांजलि सिंह, प्रीति सिंघी, नगेंद्र पंडित, राजेश कुमार साव आदि ने अपने वक्तव्य रखे। राजदीप साहा और मधु सिंह निर्मित एक डाक्यूमेंटरी फिल्म ‘सृजन यात्रा’ की प्रस्तुति के साथ एक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी संपन्न हुआ। प्रो.संजय जायसवाल ने पूरे कार्यक्रम का संयोजन किया। पूरे दिन सभी सत्रों में सभागार खचाखच भरा था।

इस आयोजन में रामनिवास द्विवेदी, अवधेश प्रसाद सिंह, मृत्युंजय और संजय जायसवाल द्वारा संपादित दो पुस्तकों ‘सभ्यताओं का संवाद’ और ‘एक भारतीय बुद्धिजीवी के सपने’ का लोकार्पण हुआ।