भारतीय भाषा परिषद और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा भारतीय भाषा परिषद सभागार में आयोजित एक साहित्यिक समारोह में पंत की 125वीं जयंती की शुरुआत हुई। वक्ताओं ने आशा व्यक्त की कि आगे एक वर्ष तक देशभर में छायावाद के संदर्भ में पंत की महत्ता तथा पंत के संदर्भ में छायावाद की महत्ता पर चर्चा होती रहेगी। आरंभ में प्रो. संजय जायसवाल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि पंत छायावाद के एक बड़े स्तंभ हैं।
प्रो. इतु सिंह ने कहा कि पंत ने अध्यात्म को सामाजिक उपयोगिता की दृष्टि से देखा है। श्री प्रियंकर पालीवाल ने कहा कि सुमित्रानंदन पंत के काव्य विकास के कई चरण हैं- छायावादी चरण, प्रगतिवादी चरण और अरविंद के असर में अध्यात्मवादी चरण। प्रो. गीता दूबे ने कहा कि आज प्रकृति के विनाश के दौर में पंत की रचनाओं का विशेष महत्व है। वाराणसी के शोधार्थी श्री महेश कुमार ने कहा कि पंत का गद्य सशक्त है। श्री मृत्युंजय श्रीवास्तव ने बताया कि पंत ने स्त्री पर हो रहे अत्याचारों का अधिक स्पष्टता से विरोध किया।
अध्यक्षीय वक्तव्य रखते हुए डा. शंभुनाथ ने कहा कि पंत ने मानव के नूतन मन की बात करते हुए ‘द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र’ का आह्वान किया था। वे विश्वप्रेम और परिवर्तन के कवि हैं। इस अवसर पर कविता पाठ, कविता कोलाज तथा एक लघु नाटक की प्रस्तुति भी हुई। सत्र की अध्यक्षता प्रो. मंजुरानी सिंह ने की। विमला पोद्दार ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
शिक्षक और विद्यार्थी ही मूल्यों के रक्षक हैं
‘शिक्षक ही समाज में मूल्यों का रक्षक होता है, और विद्यार्थी उन मूल्यों को अगली पीढ़ियों तक दीर्घजीवी बनाते हैं। शिक्षण- संस्थान से अधिक शिक्षक-विद्यार्थी संबंध महत्वपूर्ण है।’ प्रो. हितेंद्र पटेल ने भारतीय भाषा परिषद और भारतीय इतिहास और साहित्य अध्ययन केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आलोचक प्रो. चौथीराम यादव और इतिहासकार प्रो. निर्मल चंद्र दत्त की स्मरण सभा में यह बात कही।
श्री मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा कि प्रो निर्मलचंद्र दत्त और प्रो. चौथीराम यादव ऐसे युग के शिक्षक थे जब नए भारत का स्वप्न बन रहा था। स्कॉटिश चर्च कॉलेज की प्रो. गीता दुबे ने कहा कि प्रो. चौथीराम यादव ने हमेशा प्रतिवाद के स्वर का साथ दिया तथा वंचितों की लड़ाई लड़ी। आदित्य कुमार गिरि ने कहा बनारस जैसे नगर में चौथीराम जी ने वर्ण-व्यवस्था का खुलकर विरोध किया जो एक बड़ी बात है।
भारतीय भाषा परिषद के निदेशक डॉ. शंभुनाथ ने दोनों लेखकों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि चौथीराम यादव केवल लेखक नहीं थे, बल्कि एक सक्रिय आंदोलनकर्ता भी थे। कार्यक्रम का संचालन करते हुए विद्यासागर विश्वविद्यालय के प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि शिक्षक अपने विद्यार्थियों पर अपनी सांस्कृतिक छाप छोड़ता है और वह अपनी परंपराओं में जीवित रहता है। डॉ. विनायक भट्टाचार्य, मंजु श्रीवास्तव, अनीता लोध, मंजर जमील तथा अन्य लोगों ने भी प्रो. चौथीराम यादव और प्रो.निर्मल चंद्र दत्त को स्मरण किया।
इतिहासकार सब्यसाची भट्टाचार्य पर सम्मान ग्रंथ
भारतीय भाषा परिषद तथा इतिहास और साहित्य अध्ययन केंद्र के एक संयुक्त आयोजन में प्रसिद्ध इतिहासकार सब्यसाची भट्टाचार्य के सम्मान में प्रकाशित ग्रंथ ‘लेबर, डायस्पोरा एंड मार्जिनलिटी’ का लोकार्पण हुआ। इस ग्रंथ का संपादन जेएनयू के चिन्ना राव तथा रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के प्रो. हितेंद्र पटेल ने किया है। इस अवसर पर प्रो.हितेंद्र पटेल ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि भारतीय इतिहास पर चर्चा में इधर ऐसी धारणाएं सामने आ रही हैं जिनका तथ्यों से संबंध नहीं है। इतिहास को विवादस्पद बनाया जा रहा है। इतिहासकार को ऐसा होना चाहिए जो शोध से प्राप्त नए तथ्यों के आधार पर अपनी पूर्व स्थापनाओं में सुधार करे। उन्होंने बताया कि सब्यसाची भट्टाचार्य ने अपने इतिहास लेखन में ‘मंतव्य’ को हमेशा ध्यान में रखा। उन्होंने रवींद्रनाथ पर भी लिखा, इतिहास का एक प्रमुख स्रोत साहित्य हो सकता है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के प्रो. चिन्ना राव ने सब्यसाची जी के साथ तीस वर्षों तक काम करने के अनुभवों को साझा किया। मुंगेर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गिरीशचंद्र पांडेय ने कहा कि इतिहास महान प्रेरणा देने का काम करता है। इसका सही दृष्टिकोण से अध्ययन करना चाहिए। प्रो. मालविका भट्टाचार्य ने अपने पति को याद करते हुए कुछ रोचक बातें बताईं। अध्यक्षता करते हुए परिषद के निदेशक डॉ. शंभुनाथ ने कहा कि आज हमारे देश में दो चीजें गहरे संकट में हैं इतिहास और विज्ञान। आज तक ये आम लोगों की सामाजिक चेतना के अंग नहीं बन पाए। खासकर इतिहास विभेद का औजार बना दिया गया। उन्होंने प्रो. हितेंद्र पटेल तथा प्रो. चिन्ना राव को इस अनूठी पुस्तक के लिए बधाई दी। इस पुस्तक में हिंदी साहित्यकारों पर भी चर्चा है। सभा का संचालन अरिंदम घोष ने किया।
लोकरंग 2024 : देश–विदेश की लोक संस्कृतियों का संगम
कुशीनगर के गांव जोगिया में ‘लोकरंग 2024’ के 18वें वर्ष के उत्सव का उद्घाटन 23-24 मई 2024 को हुआ। सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत गांव की महिलाओं के सोहर से हुई। यह हिंदी क्षेत्र में अपने ढंग का अनोखा उत्सव है, जिसमें इस वर्ष देश के अन्य क्षेत्रों के अलावा विदेश से आए कलाकारों ने भी भाग लिया। इन्होंने लोक संस्कृतियों के बीच सेतु बनाया।
गांव की हिन्दू-मुस्लिम आबादी की सम्मिलित उपस्थिति विशेष ध्यान आकर्षित कर रही थी। महिलाओं की लगभग बराबर की संख्या दर्शकों में दोनों रात मौजूद थी। महेंद्र कुशवाहा केंद्रीय भूमिका में थे। प्रमुख लेखक सदानंद शाही, अनिल राय, अनिल सिंह, प्रमोद बागड़े, नीरज खरे, राहुल मौर्य, रविशंकर सोनकर, शिवेंद्र मौर्य, अपर्णा चौधरी, आशा सिंह, अंजू पटेल आदि कई प्राध्यापकों का यहां होना एक सुखद अनुभव था! ‘लोकरंग’ के दो दिनों के उत्सव में विविध तरह के लोकनृत्य, गान, चित्रकारी तथा परिचर्चा भी शामिल थे। सुभाषचंद्र कुशवाहा ने एक अनोखी परंपरा शुरू की।
इस बार के आयोजन में पहली बार किन्नरों को भी बुलाया गया था। हमें कामना करनी चाहिए कि इस आयोजन की उम्र लंबी हो!
प्रस्तुति : कमलेश कुमार वर्मा