निरंतर सृजनरत कवयित्री।

वजूद

हरा था जब तक
यह सूखा पत्ता
वृक्ष के प्राण बन
उसे खिलाता था
उसे जिलाता था
झर गया डाल से
अब जर्द होकर
लेकिन खत्म नहीं हुआ
इसका वजूद
हवा के साथ यह उड़ेगा
जारी रहेगा इसका सफर
बची हैं इसमें संभावनाएं
किसी चिड़िया का आशियाना बनाने की
किसी की भूख मिटाने की
जिंदा है इसमें आग
सर्द बदन में गर्मी पैदा करने की!

मन

यह मन
सूखे पत्ते की तरह हवा में
उड़ -उड़ कर रात भर
चांद की खिड़की के नीचे
सुस्ताता है
और सुबह
सूरज की तेज आग में
जलने को तैयार हो जाता है!

संपर्क : द्वारा श्री सी. पी. मिश्रा, गली न.3,चिरैंयाटाड़, पटना-800001 मो. 9504557272