वरिष्ठ कहानीकार। कई कहानी संग्रह और बांग्ला से कई पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद प्रकाशित।

सामने वाले घर में दो युवक सुबह से काम पर लग जाते थे।एक बाहर के चबूतरे पर झाड़ू लगाता, दूसरा पानी से धोता।घर में औरतें नजर नहीं आतीं।दोनों जवान थे।मगर शादी नहीं की।एक मां थी जो कभी-कभी बाहर अपने दरवाजे से ताक-झांक कर जाती।बड़े लड़के शोभन को माँ ने कई बार कहा था, ‘बेटा, तू तो अब शादी कर ले।चालीस पार कर गया है, कोई तो घर की रखवाली, देख-रेख करने वाली हो।तेरा भाई भी तो शादी के लायक हो गया है, वह भी शादी नहीं करना चाहता।पता नहीं, तुम दोनों को क्या हुआ है?’ छोटका बिमान कहता, ‘क्या होगा मां शादी करके, कलह ही होगा।बात-बात में झगड़ा, फरमाइश और भाइयों में बंटवारे की बात होगी।हम दोनों भाई ठीक हैं।’

शोभन चुप्पा था, मगर ऐसे मौके पर वह भी चुप नहीं रहता, ‘हाँ मां, भाई तो ठीक ही कहता है।आज की बहुएं क्या चाहती हैं, यह पता नहीं चलता है।घर में अशांति बढ़ जाती है।बेकार का टेंटा कौन मोल ले।’

मां निरुत्तर दिखतीं।शोभन अच्छाखासा ट्यूटर था।सुबहशाम विद्यार्थियों का तांता लगा रहता।यही उनकी आमदनी का जरिया था।घर का खर्चा इसी से चलता था।बिमान कुछ नहीं करता था।वह बाजार जाता, पास के नल से पानी भरता, घर की साफसफाई करता फिर रसोई भी तो उसके हिस्से में थी।इन्हीं दिनचर्याओं में वे खुश थे।तीसरे की जरूरत महसूस नहीं हुई।

शाम को छात्रा नीलम को रोज की तरह उसके बाप स्कूटर पर आकर पहुँचा गए।डेढ़-दो घंटे के बाद वे फिर आकर उसे ले जाएंगे।उस शाम शहर में काफी बारिश हुई थी।उनके आने में देर हो रही थी।नीलम पढ़कर पिता के इंतजार में बाहर बरामदे में खड़ी थी।

शोभन ने अंदर आकर बैठने के लिए कहा, ‘कब तक खड़ी रहोगी, वे आते ही होंगे।’

नीलम अंदर कमरे में आकर बैठ गई।

‘पानी पिओगी?’ शोभन ने चुपचाप बैठी नीलम की तरफ देखकर पूछा।

नीलम बारहवीं क्लास की मेधावी छात्रा थी।काफी चुस्त-दुरुस्त, बड़े घर की बेटी होने के कारण चंचल, बेपरवाह और फैशनपरस्त।

‘नहीं सर, मैं ठीक हूँ।मां कहां हैं?’

‘वे दूसरे कमरे में सोई होंगी।क्यों, कुछ पूछना है?’

‘नहीं! आप घर में अकेले रहते हैं?’

‘हाँ, भाई है न।वह बाजार गया हुआ है, अभी आ जाएगा।’

शोभन को लगा कि नीलम कुछ और पूछने में संकोच कर रही है।

‘अच्छा सर, एक बात पूछूं, अन्यथा तो नहीं लेंगे?’

‘नहीं, पूछो।यही न पूछोगी कि मेरी बहू कहां है?’

‘हां सर, भैया भी तो अकेले रहते हैं।’

‘हाँ, ठीक ही देखा है।हम दोनों ने ही शादी नहीं की।’

‘क्यों सर?’

‘इसका जवाब यही है कि आजकल की औरतें एडजस्ट नहीं करतीं।’

नीलम कुछ सोचकर चुप हो गई।पिता जी कितनी देर लगा रहे हैं? अब तक उन्हें आ जाना चाहिए था।बारिश कब की थम चुकी थी।वह जाना चाहती थी।

‘अच्छा सर, मैं जा रही हूँ।’

‘कैसे जाओगी, अकेली।अंधेरा हो गया है कब का।’

‘नहीं सर, मैं जा सकती हूँ।कौन क्या बिगाड़ेगा मेरा।’

‘दिन-दुनिया ठीक नहीं है।अंधेरे में इस तरह अकेली?’

‘लड़ना होगा सर।मैंने सोचा है, बड़ी होकर मैं आई.पी.एस. में बैठूंगी।इसीलिए मैंने कराटे की ट्रेनिंग ली है।या फौज में जाकर-’

‘बड़ी हिम्मतवाली हो।घरबार संभालने के बाद यह सब-’

‘मैं शादी नहीं करूंगी सर।शादी एक लफड़ा है।’

शोभन निरुत्तर दिखा।वह भी तो यही सोचता है।

यह नए जमाने की सोच है।औरतमर्द सभी अकेले रहकर अपनी दुनिया को संवारना चाहते हैं।मगर कब तक?

नीलम जब तक उठे, उसके पिता जी आ गए थे।वे बाहर स्कूटर लेकर खड़े थे।

‘देर हो गई।मैं मां को दिखाने डाक्टरखाने गया था।लंबी लाइन थी।उसे घर छोड़कर आ रहा हूँ।’

‘क्या हुआ मां को?’

‘अरे वही गठिया की बीमारी।दर्द से कराह रही थी।मुझसे सहा नहीं गया।इसीलिए उसे दिखाना जरूरी था।इंजेक्शन लगाया है।चलो।’

घर जाकर देखा, मां बिस्तर पर असहाय पड़ी थीं।अब वह सत्तर साल पार कर गई हैं।पिता जी पचहत्तर के हो रहे होंगे।अगर वे नहीं रहते तो क्या होता? क्यों किसी के अधीन रहे? कहीं उसने पढ़ा भी था- शादी एक समझौता है।

कुछ उसके दिमाग में घर कर गया था।उसने सोच लिया था कि वह समझौता नहीं करेगी।सर ने भी तो नहीं की।

अपने मकान के पास वाले मकान में रोज कोई न कोई बात लेकर पति-पत्नी में झगड़ा होता था।

पास वाले मकान का विश्वनाथ सुबह-शाम चिल्लाता है।पत्नी झल्लाती रहती।वह विधवा थी।अपनी असहायता और बढ़ती उम्र को देखकर विश्वनाथ के साथ रह रही थी।विश्वनाथ निखट्टू है।छोटी-मोटी नौकरी के सहारे घर को संभाल रहा था।

दूसरी तरफ वाले मकान के महेश का भी यही हाल था।उसकी पत्नी के साथ नहीं पटी तो बिमला घर छोड़कर चली गई।उसका एक सयाना लड़का हॉस्टल में रहकर पढ़ रहा था।घर पर कम ही आता था।पढ़ाई खत्म होने में देर थी।फिर भी छुट्टियों में बाप के पास नहीं आना चाहता था।

नीलम एक और हादसे की साक्षी थी।खूबसूरत सरला ने एक मूक-बधिर लड़के के साथ शादी रचाई थी।वह बड़े घराने का लाड़ला बेटा था।सरला भी अपने एक बच्चे को छोड़कर मायके चली गई।ये सारी बातें नीलम के बड़े होने तक घटी थीं।यही कारण था कि वह स्वतंत्र जीना चाहती थी अपने बल पर, किसी के अधीन रहकर जीते रहने से बेहतर है कि वह अपनी तरह जिए।वह आई.पी.एस. के लिए तैयारी कर रही थी।

माँ और पिता जी के संबंध को देखकर आश्चर्यचकित थी।मां उतनी पढ़ीलिखी नहीं थीं कि अपने बल पर आश्रित रहे।लेकिन बढ़ती उम्र के साथ समझौता एक आश्रय?

नहीं, नीलम किसी के साथ समझौता करने के पक्ष में नहीं थी।वह स्वतंत्र जीना चाहती थी।उसने देखा है, अपने समक्ष संबंध के बिखरने की त्रासदी!

रात के बारह बज रहे थे।वह टेबल पर झुकी पढ़ रही थी कि पिता जी सामने आ गए।उनको देखकर वह आश्वस्त हुई।उसने पूछा, ‘पिता जी आप? इतनी रात तक जगे हैं? मां ठीक है न?’

‘हाँ बेटा, वह अभी-अभी सोई है।तुम भी जाकर आराम करो।इतनी रात तक जगकर पढ़ना ठीक नहीं।अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखो।’

‘हां, इस साल मेरी डिग्री की अंतिम परीक्षा है।उसी की तैयारी में जुटी हूँ।इसके बाद इंट्रेंस की परीक्षा है।’ वह किताबें समेटने लगी।

‘क्या करने का इरादा है?’

‘अच्छे नंबर ला पाई तब आई.ए.एस. अथवा आई.पी.एस. की तैयारी करूंगी।’

पिताजी सकते में आ गए।सोचा था, कोई अच्छी-सी नौकरी करेगी, फिर घर परिवार संभालेगी।

‘बेटा, तुम अपने बल पर कुछ भी कर सकती हो।जमाना बदल रहा है।लेकिन जब तुम मेरी तरह उम्र की उस दहलीज पर पहुंच जाओगी तो एक साथी की जरूरत पड़ेगी।शादी एक पवित्र बंधन है।समझौता करनी ही पड़ती है।’

‘मैं ऐसा नहीं मानती।’ कहकर वह उठ गई।बाहर देखा, आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे।

नीलम सोये-सोये बहुत रात गए सोचती रही।उसे नींद नहीं आ रही थी।ऐसा क्यों होता है? पिता जी जो कह गए थे, वह ठीक है या वह जो सोचती है, वही ठीक है।फिर सर (शोभन) ने भी तो शादी नहीं करने का निर्णय लिया है? सर की मां भी तो असहाय अवस्था में पड़ी रहती हैं।

बिमला और सरला घर छोड़कर क्यों चली गईं? बच्चों के प्रति मोह-माया त्याग कर निर्भीक होकर चली गई।समझौता की हद क्या है- अपने अस्तित्व की पहचान, स्वाधीन रहने की कोशिश या फिर परिवार के प्रति विद्रोह और अवहेलना।

नीलम को एक और हादसे की याद आ गई।पड़ोस में एक लड़की शादी के दूसरे दिन ही भागकर मां पिता के पास चली आई।उसका कहना था कि वह पराए घर में नहीं रह सकती।यानी ससुराल उसके लिए पराया घर हो गया था।पड़ोस में इसकी चर्चा धड़ल्ले से हुई।

ये सारी बातें उसके दिमाग में कौंध रही थीं।वह तेजी से उठी और पिता जी के कमरे में झांक कर देखा।पिता जी सिरहाने बैठे मां को कुछ समझा रहे थे।अस्फुट स्वर से कुछ कह रहे थे।

‘नीलम अभी आगे और पढ़ना चाहती है।’

‘कब तक?’ मां ने पूछा।

‘सिविल सर्विस में जाना चाहती है।’

‘अच्छा तो है।’

‘लेकिन जिस घर में जाने की बात सोच रहा था, उसका क्या होगा? वचन दे रखा है।’

मां बहुत देर तक चुप पड़ी रहीं।कुछ कहा नहीं।वह उठकर बैठ गईं।पिता की तरफ ताककर शायद कहा था, ‘उसकी जो मर्जी है, करने दो।’

नीलम धीरे से सरक आई।वह भीतर से हलका महसूस कर रही थी।

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