पिछले एक दशक से लेखन में सक्रिय। संप्रति स्वतंत्र पत्रकार और अनुवादक
तोबियस वुल्फ
19 जून 1945 को जन्मे तोबियस वुल्फ़ एक अमेरिकन राइटर और क्रिएटिव राइटिंग टीचर हैं। कहानियों लिखने के साथ–साथ वुल्फ़ ने संस्मरण और उपन्यास भी लिखे हैं। लेकिन ख़ासतौर पर वे अपने संस्मरणों के लिए जाने जाते हैं। 1985 में उन्हें अपने उपन्यास ‘द बराक्स थीफ़’ के लिए पीईएन/फक्नर एवार्ड फॉर फ़िक्शन से सम्मानित किया गया। जबकि 2015 प्रेसीडेंद बराक ओबामा से ‘नेशनल मेडल ऑफ आर्ट’ मिला।
1985 में लिखी गई तोबियस वुल्फ़ की कहानी ‘से यस…’ रंगभेद, अंतर्जातीय विवाह, व्यक्तिगत पहचान और प्रेम से जुड़े सवालों से ईमानदार संवाद स्थापित करती है, लेकिन इसे लोगों के ‘कंडीशंड बिहेवियर’ और ‘सायकोलोजिकल कोन्फ़्लिक्ट’ को समझने के लिहाज़ से भी पढ़ा जा सकता है।
वे उस वक़्त बर्तन साफ कर रहे थे। मतलब उसकी पत्नी उन्हें धो रही थी, जबकि वह उन्हें सुखाकर सही जगह रखता जा रहा था। अपने परिचित पुरुषों की तुलना में वह तेजी से घरेलू कामकाज में दक्ष होता जा रहा था। अभी कुछ महीने पहले ही उसने अपनी पत्नी की एक दोस्त को उसे यानी उसकी पत्नी को ऐसा समझदार पति पाने के लिए बधाई देते सुना था और तभी उसने सोचा था कि ‘मैं और ज़्यादा कोशिश करूंगा।’ बर्तन साफ करवाने में मदद करना उसी कोशिश का एक हिस्सा था। यह साबित करने का एक जरिया कि वह कितना समझदार और फ़रमावरदार पति है।
बर्तन साफ करते हुए वे अलग-अलग मुद्दों पर बात कर रहे थे। उन्हीं बातों में से जाने कैसे यह मुद्दा सामने आया कि क्या श्वेत लोगों को अश्वेत लोगों से शादी करनी चाहिए? उसने कहा कि हर बात मायने रखती है और उसके ख़्याल से ‘ये माने श्वेत लोगों का अश्वेत लोगों से शादी करने का ख़्याल; एक बुरा ख़्याल था।’
‘क्यों?’ पत्नी ने पूछा।
कई बार उसकी पत्नी ऐसी मुख-मुद्रा बना लेती, जहां उसकी दोनों भवें सिकुड़कर मिल जातीं और वह अपना निचला होठ चबाते हुए फ़र्श पर तेज़ी से कुछ देखने लगती। जब वह उसे इस मुद्रा में देखता तो समझ जाता कि अब उसे अपना मुंह बंद रखना चाहिए, लेकिन वह कभी ऐसा कर नहीं पाया क्योंकि वास्तव में पत्नी की यह हरकत उसे और ज्यादा बोलने को उकसाती थी। और (बद) किस्मती से इस वक़्त भी पत्नी जी के मुख ने वही मुद्रा ग्रहण कर ली थी। माने अब बहस तो होनी ही थी…
‘क्यों?’ पत्नी ने फिर से पूछा और एक कटोरे के भीतर हाथ डालकर खड़ी हो गई, जिसे वह धो नहीं रही थी बस पानी की धार के नीचे थामे हुए थी।
‘ओ हैलो! सुनो… रंग-वंग से मुझे कोई दिक्कत नहीं है। मैं स्कूल में अश्वेत लोगों के साथ पढ़ा हूं। उनके साथ काम किया है और हमेशा अच्छे रिश्ते रहे मेरे-उनके साथ। अब इसके लिए मुझे तुम्हारे पीछे आने मतलब तुम्हारी हां-में-हां मिलाने की कोई ज़रूरत नहीं है और न इसका मतलब यह मत निकालना कि मैं नस्लवादी हूं। ठीक है!’ उसने जवाब दिया।
‘मैं कोई मतलब नहीं निकाल रही,’ वह बोली और फिर से कटोरा साफ करना शुरू कर दिया। इस दौरान वह कटोरे को हाथों में इस तरह घुमा रही थी, जैसे उसे आकार दे रही हो, ‘बस इतना कह रही हूं कि मुझे एक श्वेत व्यक्ति के किसी अश्वेत के साथ शादी करने में कोई हर्ज नज़र नहीं आता।‘
‘अरे… बात को समझो। वे हम दोनों की तरह एक समान संस्कृति से नहीं आते। कभी उनकी बात सुनना, उनकी भाषा भी अलग है। मुझे इस बात से कोई दिक्कत नहीं… मुझे उनकी बातें सुनना पसंद है। लेकिन यह अलग बात है। असलियत में उनकी और हमारी संस्कृति के लोग कभी एक-दूसरे को कभी पूरी तरह से समझ नहीं सकते।‘
‘जैसे तुम, मुझे समझते हो?’
‘हां जैसे मैं तुम्हें समझता हूं।‘
‘मगर अगर वे एक-दूसरे को प्यार करते हों?’ वह बोली। उसके बर्तन साफ करने की गति एकाएक बढ़ गई थी और वह उसकी ओर देख भी नहीं रही थी।
‘मारे गए गुलफाम!’ मन ही मन खुद को कोसते हुए उसने सोचा, मगर प्रकटत: बोला, ‘मेरी बात को घुमाओ मत। आंकड़ों को देखो। इस तरह की ज़्यादातर शादियां टूट जाती हैं।‘
‘आंकड़े?’ ड्रेन-बोर्ड पर बर्तनों का ढेर लगाते हुए वह आवाज़ में तल्खी, हैरानी और व्यंग्य एक-साथ घोलकर बोली। हालांकि उन बर्तनों में से ज़्यादातर पर अभी भी चिकनाई जमी थी और कांटों के बीच खाना फंसा हुआ था, मगर उसका ध्यान उन पर नहीं था। थोड़ा रुककर उसने नया सवाल दाग दिया, ‘चलो यह ठीक है! लेकिन विदेशियों का क्या? मेरा ख़्याल है कि दो विदेशियों की शादी के बारे में भी तुम्हारी सोच यही होगी। है न?’
‘हां… बेशक यही… मैं यही सोचता हूं और तुम ही कहो कि तुम एक ऐसे व्यक्ति को कैसे समझ सकती हो, जो तुमसे बिल्कुल अलहदा माहौल से ताल्लुक रखता हो?’
‘अलहदा?? तुम्हारा मतलब हम दोनों की तरह नहीं…’ पत्नी बोली।
‘हां वही… अलहदा!,’ वह गुस्से में पत्नी की ओर झपटा क्योंकि वो बार-बार उसके शब्दों को दोहराने की चाल खेल रही थी, ताकि वह बेवकूफ़ी और कपट से भरे महसूस हों। इसी गुस्से में उसने सिल्वर के बर्तन दोबारा सिंक में गिरा दिए, ‘हुंह सब के सब गंदे छोड़ दिए हैं।‘
थोड़ी देर तक दोनों के बीच ख़ामोशी छाई रही। पानी चिकना और गंदा हो चला था। पत्नी ने उसे देखा और दोनों होंठ कसकर भींच लिए। अगले पल उसने झटके से अपना हाथ सिंक में डाला और….
‘आह!’ वह चिल्लाई और उछलकर पीछे हो गई। उसने अपना दाहिना हाथ कलाई से पकड़ लिया और झटकने लगी। उसके अंगूठे से ख़ून बह रहा था।
‘एन… हिलो मत! यहीं खड़ी रहो।’ पति ने कहा और ऊपर बाथरूम की ओर भागा। एल्कोहल, कॉटन और बैंड-एड की तलाश में ख़ासी उथल-पुथल मचा दी। लेकिन अपने खोजी अभियान में आंशिक सफलता हासिल करके जब वह वापस नीचे आया, पत्नी आंखे बंद करके रेफ्रीजरेटर के भीतर झुकी हुई थी। उसके अंगूठे से अब भी ख़ून बह रहा था। उसने पत्नी का हाथ पकड़ा और अंगूठे पर रूई लगाकर थपथपाया। फौरन ही ख़ून बहना रुक गया, मगर ये देखने के इरादे से कि घाव कितना गहरा है, उसने जैसे ही अंगूठे को दबाया। ख़ून की एक बूँद उमड़ी, थरथराई और फर्श पर गिर पड़ी। अंगूठे की आड़ से पत्नी ने उसे इल्ज़ाम लगाती नज़रों से घूरा।
‘अरे… चिंता मत करो। कोई गहरा घाव-वाव नहीं है। सुबह तक तो तुम्हें पता भी नहीं चलेगा कि वहां कुछ था भी…’ पति ने ख़ुद ही ख़ुद को इल्ज़ाम से बरी करते हुए लपककर कहा। उसे उम्मीद थी कि उसकी पत्नी तारीफ़ करेगी कि वह कितनी तेज़ी से उसकी मदद के लिए आ गया। हालांकि उस वक़्त उसने जो किया, वह पत्नी की चिंता में और बदले में कुछ पाने की चाहत के बगैर किया, लेकिन अब वह सोच रहा था कि उसकी मदद के बदले पत्नी को सदाशयता का परिचय देते हुए पुरानी बहस को फिर से शुरू नहीं करना चाहिए। बतौर कोशिश उसने दांत निकाले और बोला, ‘डार्लिंग तुम यहां की चिंता मत करो! यहां मैं सब देख लूंगा। तुम जाओ, जाकर आराम करो।’
‘ठीक है!’ पत्नी कुछ सोचते हुए बोली, ‘तुम साफ करते जाओ, मैं सुखाने का काम करती हूं।‘
‘हम्म!’ और वह छुरी-कांटों का ख़ास ध्यान रखते हुए फिर से सिल्वर के बर्तन साफ करने लगा।
‘तो… अगर मैं अश्वेत होती, तो तुम मुझसे शादी नहीं करते?’ पत्नी बोली।
‘भगवान के लिए अब नहीं एन!’
‘ठीक है… लेकिन तुम यही कह रहे थे। है न?’
‘नहीं… मैंने ऐसा नहीं कहा। फिर ये सवाल ही बिल्कुल बकवास है। अगर तुम अश्वेत होती, तो शायद हम मिलते ही नहीं। तुम्हारे अपने दोस्त होते और मेरे अपने। मैं जिस इकलौती अश्वेत लड़की को जानता हूं, वह डिबेट-क्लब में मेरी पार्टनर थी और तब तक मैं पहले ही तुम्हारे साथ घूमना-फिरना शुरू कर चुका था।’
‘लेकिन अगर हम मिलते और मैं अश्वेत होती, तब?’
‘तब शायद तुम किसी अश्वेत लड़के के साथ घूम-फिर रही होती।‘ उसने जवाब दिया और पानी की नली उठाकर बर्तनों पर डालने लगा। पानी इतना ज्यादा गरम था कि धातु का रंग बदलकर नीला पड़ गया, लेकिन थोड़ी देर में उसने वापस अपनी रंगत ले ली।
‘चलो ठीक है। मगर एक पल के लिए हम मान लेते हैं कि मैं अश्वेत हूं, किसी के साथ जुड़ी नहीं हूं और हम मिलते हैं और हमें प्यार हो जाता है। अब?’
उसने पत्नी को ऊपर से नीचे तक देखा। वह भी उसे देख रही थी। बल्कि उसकी आंखों में एक अलग चमक थी।
‘देखो’ भारी-भरकम आवाज़ बनाते हुए वह बोला, ‘ये सरासर बेवकूफ़ी भरी बात है। अगर तुम अश्वेत होतीं, तो तुम; तुम नहीं होतीं।‘ ये कहते हुए उसने महसूस किया कि उसकी बात में वाक़ई वज़न है। इस बात पर तो बहस का सवाल ही पैदा नहीं होता, सो अपने एक-एक शब्द पर ज़ोर देते हुए वह फिर से बोला, ‘अगर तुम अश्वेत होतीं, तो तुम; तुम नहीं होतीं डार्लिंग।‘
‘मालूम है, लेकिन बस थोड़ी देर के लिए मान लो।‘पत्नी ने कहा, तो उसने गहरी सांस छोड़ी। वह बहस का पहला पड़ाव जीत चुका था, मगर उसकी परेशानी अब भी कायम थी। उसने उकताए-से सुर में सवाल किया, ‘क्या? क्या मान लूं?’
‘यही कि मैं अश्वेत हूं और मैं; मैं ही हूं और हम प्यार में पड़ गए हैं। अब क्या तुम मुझसे शादी करोगे?’
पति सोचने लगा।
‘ठीक है?’ कहते हुए पत्नी उसके एकदम क़रीब आ खड़ी हुई, ‘बोलो क्या मुझसे शादी करोगे?’
‘मैं सोच रहा हूँ,’ पति ने कहा।
‘तुम नहीं करोगे… मैं शर्त लगा सकती हूं। तुम न कहने वाले हो।‘
‘क्योंकि तुमने ही बात को इस तरह घुमाया…’
‘बस अब सोच-विचार बंद… हां या ना?’
‘हे भगवान! एन!! ठीक है… ‘ना’!!!’
‘ओह थैंकयू!’ वह बोली और किचिन से लिविंगरूम की ओर चली गई। थोड़ी देर में वहां से मैगजीन के पन्ने पलटने की आवाज़ें आने लगीं। उसे पता था कि वह पढ़ नहीं रही, लेकिन दिखा ऐसे रही थी, मानो एक-एक शब्द पढ़ रही हो। जाहिराना तौर पर वह, पति के प्रति उदासीनता का दिखावा कर रही थी। पति को भी पता था कि वह चाहती है कि उसे बुरा लगे और क़ायदे से उसे बुरा नहीं लगाना चाहिए था, मगर उसे लग रहा था। न केवल बहुत बुरा लग रहा था, बल्कि पत्नी का यह अंदाज़ उसका दिल दुखा रहा था।
ऐसे में पति के पास इसके सिवाय और कोई चारा नहीं बचा कि वह भी पत्नी के प्रति उदासीनता और रुखाई का प्रदर्शन करे। उपाय समझ आते ही पति ने चुपचाप बचे बर्तन साफ किए। उन्हें पोंछा। काउंटर और गैस-स्टोव साफ किया और फर्श पर जहां-जहां खून के छींटे गिर गए थे, उन्हें भी पोंछ दिया। फिर ख्याल आया, क्यों न पूरे फर्श पर ही पोंछा फिरा दिया जाए और अगले ही पल फर्श ऐसा नया सा चमक रहा था। जैसे कि तब, जब वे दोनों पहली बार इस घर में आए थे। इसे देखने के लिए…
उसने कूड़े का ढेर उठाया और बाहर निकल आया। रात साफ थी। पश्चिम में, जहां कस्बे की रोशनी आसमान को धँधला नहीं कर पाती, कुछ तारे भी दिखाई दे रहे थे। ट्रेफिक भी कुछ इस अंदाज़ में ठहरा हुआ-सा था, जैसे ठहरी हुई नदी… उसे अपने किए पर शर्मिंदगी महसूस हुई कि उसने अपनी पत्नी को झगड़ा करने का मौक़ा दिया। अगले तीस-एक सालों में तो उन्हें मर-खप ही जाना है। तब इस सबका क्या मतलब?
वह साथ गुजरे पलों के बारे में सोचने लगा। कितने नज़दीक थे वे… और कितनी अच्छी तरह से एक-दूसरे को समझते थे। यह सोचते-सोचते उसका गला ऐसा भर आया कि सांस लेना भी मुश्किल होने लगा। उसके चेहरे और गर्दन में अकड़ शुरू हो गई। सीने में भी जैसे दुनिया भर का गरम लावा आकर जमा हो गया था। वह थोड़ी देर अपने भीतर हो रही हलचलों को महसूस करता हुआ, वहीं खड़ा रहा फिर कूड़े का ढेर उठाकर पिछले दरवाजे से बाहर निकल गया। सड़क की ढलान पर से दो पागल कचरे का डिब्बा फिर से ऊपर खींच लाए। उनमें से एक उसकी पीठ पीछे चक्कर लगा रहा था। जबकि दूसरी साथिन के मुँह में कुछ था। गुर्राते हुए उसने अपने मुँह की चीज को हवा में उछाला, छलांग लगाई और वापस उसे पकड़ लिया। फिर से एक गहरी गुर्राहट के साथ वह अपना सिर इधर-उधर घुमाने लगी। लेकिन जैसे ही उन्होंने उसे आते देखा, वे छोटे-छोटे कदमों से भाग खड़े हुए।
आमतौर पर ऐसे मौक़ों पर वह उन्हें पत्थर मारता था, लेकिन आज उसने उन्हें जाने दिया और घर का रुख किया। जब वह घर पहुंचा, रात गहरी हो चुकी थी। पत्नी बाथरूम में थी। वह थोड़ी देर दरवाजे पर खड़ा रहा, फिर आवाज़ लगाई। उसे बोतलों के टकराने की आवाज़ें सुनाई पड़ी, लेकिन पत्नी की ओर से कोई जवाब नहीं आया।
‘एन… डार्लिंग आय एम सॉरी! वादा करता हूं तुम्हारे लिए मैं यह काम करूंगा।‘
‘कैसे?’
हालांकि उसे इसकी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी, लेकिन पत्नी की आवाज़ का सुर, गहराई और निश्चित ठहराव तो उसके लिए बिल्कुल ही अजनबी था। उसे मालूम था कि अब उसे सही उत्तर के साथ सामने आना होगा। वह दरवाजे की ओर गया और फुसफुसाकर बोला,
‘मैं तुमसे शादी करूंगा।‘
‘हम्म ठीक है। हम सोचेंगे। अभी कमरे में जाओ। मैं एक मिनट के लिए बाहर जाऊंगी।‘
‘ठीक है…’ पति ने सिर हिलाया, कपड़े उतारे और चादर ओढ़कर लेट गया।
कई पल यूं ही गुज़र गए। आख़िरकर उसके कानों में बेडरूम का दरवाजा खुलने और फिर बंद होने की आवाज़ आई।
‘लाइट बंद कर लो।‘ पत्नी ने दालान से आवाज़ लगाई।
‘क्या?’
‘लाइट बंद कर लो!’
‘हम्म… ठीक है!’ कहते हुए उसने हाथ बढ़ाया और बेड के नारे रखी टैबिल लैंप बुझा दी। कमरे अंधेरे में डूब गया। उसने दूसरी बार ‘ठीक है’ कहा, लेकिन कोई हलचल नहीं हुई। उसने फिर से कहा, ‘ठीक है!’ कुछ देर में कमरे के बाहर सरसराहट सी सुनाई दी। वह बैठ गया, मगर वह कुछ देख नहीं पा रहा था। कमरे में नीम ख़ामोशी डोल रही थी। उसका दिल ऐसे धड़कने लगा, जैसे शादी की पहली रात को पहली बार साथ होने पर धडक रहा था। जैसे अभी धडक रहा था (बल्कि अब भी धडक ही रहा है), जब वह अंधेरे में आहट सुनकर उठा और फिर से सरसराहटों का इंतज़ार करने लगा। यह इंतज़ार ठीक वैसा ही था, जैसे कोई अजनबी घर में टहल रहा हो और आप दम साधे हर आहट पर कान होते जाएं…
(लेकिन अब सवाल यह है कि घर में मौजूद दोनों लोग एक-दूसरे को जानते थे, तो वहां अजनबी था कौन???)
संपर्क अनुवादक : upma.vagarth@gmail.com
आदरणीय,
वागर्थ जुलाई अंक 2021 की विस्तृत समीक्षा हेतु टीम की ओर से अनेक आभार. किंतु आपकी समीक्षा में एक सुधार आपेक्षित है, कृपया मेरे यानी उपमा ऋचा के नाम में से ‘श्रीमती’ हटा दें. सादर धन्यवाद
उपमा ऋचा
मल्टीमीडिया एडिटर वागर्थ