सुपरिचित कहानीकार। अद्यतन संग्रह ‘प्रकोप तथा अन्य कहानियां।’

 

अपने बेटे की शादी का कार्ड यादव सर को देते हुए शर्मा मैडम ने बहुत खुशी से बताया था-‘सर, बहुत ही अच्छा वेन्यू है, कितना आलीशान और कितना स्पेसियस! थोड़ा आउटर पे है, लेकिन शहर में आपको इससे अच्छा भवन नहीं मिलेगा! बेस्ट है! मैं तो कहूंगी आप भी न, अपने बेटे की शादी यहीं करिएगा…!’

‘अच्छा! क्या चार्जेज हैं?’

‘सात लाख विद कम्पलीट डेकोरेशन!’ मैडम शर्मा अपने कंधे तक झूलते और चमकते-महकते बालों को एक झटके देकर कानों के पीछे ले गईं, और अपनी चंदेरी साड़ी के झूलते पल्लू को हाथ से कंधे पर लेती हुईं बोलीं, ‘नार्मल है।शहर के भीतर आजकल तो सिंपल-से भवनों का किराया ढाई-तीन लाख पर-डे है, फिर ये तो बेस्ट है।पार्किंग के लिए ही तो कितना बड़ा ग्राउंड है! यहां शादी करके पेरेंट्स को एक अलग ही क्रेज और सुकून मिलेगा।सर, इसीलिए तो मैंने जाने कितने रिसोर्ट्स देखने के बाद इसे फ़ाइनल किया है।’

उनके गोरे चेहरे पर खुशी एक दर्प के साथ चमक रही थी।

यादव सर सुन रहे थे।मैडम ने बताया नहीं था, पर स्टाफ से रिसकर किसी से उन्हें पता चल गया था, शादी में उनके बेटे को लक्जरी कार के साथ-साथ डेढ़ किलो सोना मिल रहा है।और क्यों न हो, उनके समधी उपाध्याय किसी नामी कंपनी में एम.डी. हैं।फिर इकलौती बेटी है! दुबई में जॉब में है।वैसे मैडम की फैमिली इनसे कहां किसी बात में कम है? उनके पति मिस्टर शर्मा राजस्व विभाग के सेक्रेटरी हैं, और मिसेस शर्मा खुद यहां हिंदी विभाग की सीनियर प्रो़फेसर।उनका बेटा जर्मनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।

एक मोटे कागजी थैले में मिला कार्ड भी इस शादी के एक भव्य इवेंट होने की कहानी कह रहा था।कार्ड का वजन ही सौ ग्राम से कम क्या रहा होगा जिसमें एक-एक ग्लेज्ड मोटे पेज पर एक-एक इवेंट के समय का तिथिवार उल्लेख था।

लोगों को लगे कि यह एक शाही शादी है, जिसे वे बरसों-बरस तक याद रखें, इसकी पूरी तैयारी थी।संगीत कार्यक्रम के लिए पारिवारिक लोगों को डांस सिखाने नागपुर के किसी नामचीन कोरियोग्राफर को हायर किया गया था।टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले अवार्ड फंक्शन की तरह इनके संगीत का कार्यक्रम ग्रैंड होगा।पार्टी के लिए जिस कैटरर्स को बुक किया गया था, पता चला वह सर्व करने के लिए वेटर्स के रूप में नेपाल की लड़कियां बुला रहा है।बारात के लिए, जाहिर है इलाके के सबसे टॉप मोस्ट बैंड ग्रुप से कांटेक्ट किया गया है, इसमें पैंतीस बैंड वादक रहेंगे।

पूरे स्टाफ को दो दिनों के लिए न्योता दिया गया था।और बारात में तो जरूर ही शामिल होने का अनुरोध किया था मैडम ने।

शादियां आजकल कुछ ऐसी होने लगी हैं कि पिछली शादी की चकाचौंध और ग्लैमर हर दूसरी शादी में पुराने पड़ने लगे हैं।उनके बेहिसाब खर्चे भी अब लोग तुरंत ही भूल जाने लगे हैं।यादव सर को लगता है, अब आजकल यही ट्रेंड चल पड़ा है।उन्हें समझ नहीं आता, अपने जीवन भर की कमाई को कुछ घंटों में स्वाहा करते हुए भी ये कैसे इतने खुश रहते हैं!

माना कि घर में सभी लाखों रुपये महीने कमाने वाले हैं।मान लो कि चार जन हैं और मिलके सात-आठ लाख महीना कमा रहे हैं, क्या तब सब कुछ इसी शो-बाजी के ताम-झाम में फूंक दिया जाएगा? इनके लिए क्या पैसों का यही सर्वश्रेष्ठ उपयोग रह गया है? अपने मित्रों के बेटों का तो वे नहीं जानते, पर उनके बेटे प्रवीण का साफ कहना है, ‘पापा, अपनी शादी में मुझको ऐसे जोकर नहीं बनना है! आई हेट दिस सामंती कस्टम्स! सर पे पगड़ी! कमर में तलवार! व्हाट नॉन-सेंस दिस यार! अमां, तुम लड़की ब्याहने जा रहे हो कि कोई राज्य जीतने के लिए जंग लड़ने?’ और इन पर हँसने लगता है।प्रवीण अभी दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ रहा है।एम.एससी. फाइनल।हालांकि उन्होंने कभी पूछा नहीं है उससे, पर उसके विचारों से लगता है, वह किसी लेफ्ट स्टूडेंट यूनियन से जुड़ा है।यादव सर ने उसे जरा समझाने की गरज से इसका प्रतिवाद किया था, ‘अरे बेटा, शादी-ब्याह में सब बड़े-छोटों की खुशी होती है।करना पड़ता है।’ लेकिन वह चिढ़ गया था, ‘नहीं पापा, आप भी प्रो़फेसर होके कहां लगे हो इस तरह के फालतू दकियानूसी शादी-ब्याह के समर्थन में? शादी दो जनों का मिलना है कि ये तमाशेबाजी? नहीं, मैं ये सब हरगिज़ नहीं करूंगा, लिख के ले लो…।सीधे कोर्ट मैरिज और ख़ुशी में एक दिन पार्टी!’

चुपचाप सुनने के अलावा क्या कर सकते थे हिंदी के प्रो़फेसर यादव सर।बेटा कोई गलत बात तो कह नहीं रहा था।

सत्ताईस जनवरी की शादी।इस आलीशान शादी की गवाह बनने सब दोपहर में ही पहुंच गए थे।जहां खाने-पीने के सामानों की बीसियों वैराइटियां थीं- साउथ इंडियन, गुजराती, पंजाबी, बिहारी आदि से लेकर चाइनीज़, इटालियन तक की विशाल रेंज, इतना कि इनमें से कुछ खास चुन पाना भी बड़ा कठिन काम था।कॉलेज के अलग-अलग विभागों के लोगों का बड़ा जमावड़ा था।

यादव सर बारात में शामिल नहीं हो सके थे।उनकी पत्नी की तबीयत सुबह अचानक बिगड़ गई थी।वह बी.पी. की पुरानी पेशेंट ठहरी।जब तक संभलती तब तक देर हो चुकी थी।इसलिए अकेले ही आने का निर्णय लिया था।

गेट के ऊपर ‘शर्मा फैमिली वेलकम्स यू’ का चमकदार बैनर था और नीचे, झीने रेशमी गुलाबी कपड़ों और गुलदस्तों से सजे गेट के दोनों ओर वर-वधू के आदम कद रंगीन बोर्ड लगे थे‘वरुण वेड्स सयाली!’ दोनों ओर दोनों अलग-अलग पोज में थे।एक फोटो में दुल्हन सयाली अपने दूल्हे वरुण के साथ वैसे ही लिपटी हुई थी जैसे फिल्मों में हीरो और हीरोइन।और दूसरे फोटो वे में एक-दूसरे की आंखों में आंखें डाले संजीदगी से ऐसे मुस्करा रहे थे मानो पिछले सात जनम के प्रेमी-प्रेमिका हों!

गेट से एंट्री लेने पर हर पचास कदम पर उनके ऐसे ही प्री-वेडिंग पोस्टर्स अतिथियों का स्वागत कर रहे थे।

यादव सर को कोई खास अचंभा नहीं हुआ।अब तो ये लगभग हर दूसरी शादी का ट्रेंड बन चुका है।लड़केलड़कियों में आजकल प्रीवेडिंग फोटो सेशन का जबरदस्त क्रेज़ है,फिल्मी हीरोहिरोइन नुमा तरहतरह के पोज! गोया इसके बिना शादी शादी ही नहीं होगी! जब कभी यादव सर ऐसे माहौल को देखते हैं, उन्हें तुरंत अपनी शादी की याद आ जाती है।

तब बाईस बरस के थे।एम. ए. फाइनल में पढ़ रहे थे और उनकी नौकरी भी नहीं लगी थी।मां-बाबू ने उनकी शादी सिर्फ इसलिए जल्दी कर दी थी, क्योंकि उनके दादा की तबीयत उन दिनों खराब रहने लगी थी।और जैसा कि तब के सियाने लोगों की आदत थी, अपने बेटे को अक्सर यही बात बोलते थे, ‘कोन जनी बेटा, कब भगवान घर ले बुलौवा आ जाही… आंखी मुंदाय  के पहले दीपक के बिहाव ले देख लेतेंव..’ तब बाबू ने एक गांव भर्रीटोला जाकर उनके लिए लड़की पसंद कर ली थी।आठवीं पास! और बाबू ने इसे उन्हें बहुत गर्व से ऐसे बताया था जैसे वे अपने पढ़े-लिखे बेटे की भावनाओं को खूब समझते हैं।फिर एक दिन मामा को साथ लेकर उन्हें लड़की दिखाने उसके गांव भी ले गए।एक छोटे-से घर के आंगन में सबको कथरी बिछी एक खाट में बिठाया गया था।लड़की को उन्होंने बाबू और मामा के सामने केवल एक नजर भर देखा था, जब वह अपनी नजरें जमीन पर गड़ाए-गड़ाए चाय की ट्रे लेकर आई थी और फटाफट सबके पैर छूकर और बड़ों से आशीर्वाद लेकर तुरंत चली गई थी।गांव-जवार में इतने को ही लड़की देखना कहा जाता है।उन्हें याद है, कैसे बाबू आंखों-ही आंखों में बेटे को देख कर अपनी पीठ खुद ही ठोंकने के भाव से मुस्कराए थे, कि देखा बेटे, भले मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूँ तो क्या हुआ, तुम्हारे लिए मैंने कैसी गुणवान और शीलवान लड़की पसंद की है!

और उससे ज्यादा कुछ पूछताछ किए बगैर उसके बाबू ने हां कर दी थी।

बारातियों को एक मेटाडोर में भरकर उनके गांव बटरेल से जब बरात निकली थी, तब गांव के लोगों में बरात जाने का कैसा अद्भुत उत्साह और आनंद! तमाम रिश्तेदार तो इस दिन की जाने कब से बाट जोह रहे थे।डेढ़ घंटे के सफर के बाद दूरस्थ गांव भर्रीटोला पहुंचने पर बारातियों को एक बरगद की छांव में ठहराया गया था।यहां से बारात निकाली गई थी दूल्हे को साइकिल पर बिठाकर।क्योंकि और कोई साधन नहीं था।साइकिल को दूल्हे के ढेढ़हा यानी उसके सिकोसा वाले फूफा संभाले थे।मोहरी, दमऊ, दफड़ा और टिमकी बाजे वाला गांव का गड़वा बाजा बज रहा था और कोई ४० बाराती गांव की धूल भरी गली में नाचने में मार-बिधुन थे, इतने कि उन्हें बिलकुल भी चिंता नहीं थी कि उनके नए-नए कपड़े धूल से सन रहे हैं…

…जमाना कितना बदल गया है! वे आह भरकर अचंभे से सोचते रहे।

रिसोर्ट के भव्य डाइनिंग हाल में बड़े-बड़े झूमर जगमगा रहे थे।इन्हें पार करके वे उधर पहुंचे थे जहां कमरे शुरू होते हैं।कमरा नंबर १०७, फर्स्ट फ्लोर।दोपहर की बारात अटेंड करने के बाद शाम को इस कमरे में कुछ खास इच्छुक लोगों के लिए ‘रस रंजन’ की भी व्यवस्था थी, जिसका जिम्मा मैडम ने ऑफिस के हेड क्लर्क महोबिया को दिया हुआ था।यह एक बड़ा सा हालनुमा कमरा था जिसमें आठ-दस लोग कुर्सियां-सोफे खींच के अपने बैठक का बढ़िया इंतजाम कर सकते हैं।फिर सर्व करने के लिए वेटर्स तो हैं ही।

यादव सर पहुंचे तो पाया, वहां पहले से ही स्टाफ के पांच सर बैठे हैं।कामर्स के चौधरी सर, पोलिटिकल के राव सर, फिजिक्स के सिन्हा सर, भूगोल के वर्मा सर और केमिस्ट्री के अपेक्षाकृत युवा साव सर।स्टाफ के बाकी सदस्य तो सादानर्बदा।हाथ तक नहीं लगाने वाले! वर्मा सर मजाक में इन्हें संत कहते हैं।

पीते हुए बात इन्हीं संतों की चल निकली।चौधरी सर, जिनका तीसरा पैग हो चुका था, और चढ़ चुकी थी, इनके नाम सुनते ही बिदक पड़े‘अरे काहे का संत!! घंटा संत हैं ये! देखो यार, मैं सबकी बात नहीं करता, पर ज्यादातर जो साले दारू नहीं पीते, जान लो बहुत धूर्त और कमीने होते हैं! और सबसे ज्यादा भ्रष्ट! ये मेरा अनुभव है!’

सब जानते थे किनके बारे में कहा जा रहा है।फिर भी मजा लेने के लिए किसी ने पूछ दिया, ‘कैसे?’

‘कैसे क्या? शुक्ला और श्रीवास्तव तुम्हारे सामने दो उदाहरण काफी नहीं हैं? साले एक नंबर के हरामी!’

वर्मा सर ने इसमें जोड़ा, ‘पर सर, यही दोनों तो वाट्सअप ग्रुप में रोज सुबह सबसे पहले गुड मॉर्निंग और सुविचार भेजते हैं!’

सुनकर सब हँस पड़े। ‘सही बात सर जी! बिलकुल सही!’

चौधरी उत्साहित होकर और जोश में आ गए, ‘सच बताओ, तुमने इन दोनों हरामखोरों को कभी क्लास में जाते देखा है? दोनों साले प्रिंसिपल की चापलूसी करते दिन भर उनके केबिन में बैठे रहेंगे।उसके कान भरते।’

सिन्हा सर बोले, ‘और ये भी क्या अजीब बात है यार, कि प्रिंसिपल साला कोई भी आए इनके मंत्रालय नहीं बदलते! कॉलेज की जो भी खरीदी करनी हो, श्रीवास्तव ही कराएगा, और शुक्ला उसका बिल-व्हाउचर तैयार करेगा! खरीदी चाहे साइंस डिपार्टमेंट की हो चाहे एन.सी.सी. की!’

यादव सर बोले, ‘अरे, हेड को भी तो भाई वैसा ही आदमी चाहिए! हमारे-तुम्हारे जैसा बच्चों को पढ़ाने और उनका भविष्य बनाने वाला नहीं चाहिए!’

‘ईमानदारी से पढ़ानेवालों से कमीशन नहीं निकलता, सर जी!’ वर्मा सर बोले, ‘हेड को ऊपर चढ़ावा भेजना होता है- यहां बने रहने का सेवा-शुल्क! और दरबार में हाजिरी अलग!’

‘और ट्रेजेडी ये है कि’, सिन्हा सर कुछ गुस्से में बोले, ‘सरकार चाहे किसी भी पार्टी की बन जाए, साला ये सिस्टम बंद नहीं होता! करप्शन को लेकर सब बातें बड़ी-बड़ी करते हैं, कुछ बदला? अब पिछली सरकार ने…’

लेकिन राव सर ने उन्हें बीच में ही टोक दिया, ‘यारो, अभी कोई राजनीतिक बात नहीं करो… नहीं तो बात बिगड़ते देर नहीं लगेगी! प्लीज़! यहां तो हम इंजॉय करने बैठे हैं।’

इस पर चौधरी सर चिढ़ गए, ‘तो क्या हम बैठ के भजन गाएं? देशभक्ति की बातें करें?’

यादव सर बोले, ‘क्यों नहीं? देखो, कल गणतंत्र दिवस था… दिल्ली की परेड आप लोगों में से कितनों ने देखी?’

कोई उत्तर नहीं, सब चुप।कुछ पल बाद महोबिया ने कहा, ‘अरे, इस साल नहीं देखा तो क्या हो गया? देखते तो आ रहे हैं कितने सालों से! नया क्या रहता है?’

‘ठीक है, नया नहीं रहता।लेकिन भाई, देश की सेनाओं और सुरक्षाबलों के परेड देखकर सीना, चाहे कुछ भी कहो, गर्व से भर जाता है!’ यादव सर बताते हुए जैसे उन दृश्यों में कहीं खोए हुए थे, ‘इसके लिए जाने कितने दिनों की उनकी तैयारी रहती है! और कितना कड़ा अनुशासन! एक लय में जवानों के हाथ-पैरों का उठना-गिरना! इसके बाद फिर अलग-अलग राज्यों की संस्कृति की झांकी! कितना सुंदर, और आकर्षक! और  सबसे कमाल तो जांबाज़ फाइटर जहाजों के करतब और जवानों के हैरतअंगेज़ स्टंट! कल मैं तो देखता ही रह गया! कैसे एक जवान मोटर-साइकिल कम से कम आठ फिट ऊपर सीढ़ी पर चढ़कर चला रहा है।बाबा रे! क्या गज़ब का संतुलन!’

अभी वो कह ही रहे थे कि युवा साव सर ने अपने मोबाइल में यूट्यूब से वह क्लिप निकाल लिया, जिसकी चर्चा यादव सर कर रहे थे, और सबको दिखाने लगे।

तभी महोबिया के पास किसी का फोन आया, ‘जल्दी नीचे लॉन में आइए।दूल्हादुल्हन रिसेप्शन के लिए मंच पर जाने वाले हैं।

और वे सभी जल्दीजल्दी एक फ्लोर नीचे सीढ़ियों से ही चल पड़े।

नीचे काफी भीड़ थी और उत्साह का शोर-शराबा।वर-वधू के जाने के लिए रास्ता छोड़ा गया था।रास्ते के दोनों ओर इवेंट मैनेजर ने विशेष व्यवस्था की थी।कि उनके स्टेज पर जाते समय लगभग मंच तक पूरे रास्ते दोनों ओर सुनहरी फुलझड़ी सरीखी आतिशबाजी फूटती रहे।और जब दूल्हा-दुल्हन डिजाइनर कपड़ों में चमकते-दमकते हाथ में हाथ लिए धीरे-धीरे उस ‘पैसेज’ से गुजरने लगे, देखने वालों के भीतर खुशी और उमंग का मानो वैसा ही फव्वारा फूट पड़ा जैसा उस पैसेज में दोनों ओर लगातार फूट रहे थे।इन उजली सुनहली रोशनियों के झरने में वे किसी परीलोक के नायक-नायिका लग रहे थे।बहुत सुंदर, मोहक, नम्र, शालीन, अपने होठों पे मंद-मंद हँसी बिखेरे हुए… और छह-सात फोटोग्राफर इसे अलग-अलग एंगिल से शूट करते यहां-वहां दौड़ लगा रहे थे।

उपस्थित लोग अपने हाथों में इस अवसर के लिए दिए गए गुलाबों की पंखुड़ियों की वर्षा उन पर करने लगे, आशीष देते, बलाइयां लेते।इसमें भी लड़के-लड़कियां तो मारे खुशी के चीखने लगे- ‘वाऊ! व्हाट अ ब्यूटीफुल कपल!… अमेज़िंग!… सो चार्मिंग!’

खुशी के इन चरम क्षणों में शर्मा दंपति एकदम गदगद! उनके चेहरे पर अपार संतोष और खुशी की जो चमक थी, वह देखने लायक थी।वे अभी जैसे किसी स्वर्गिक खुशी में थे, इस जहां से परे!

स्टाफ के सभी लोगों ने उन्हें जी भर के बधाई और शुभकामनाएं दीं, जिसे वे संभाल नहीं पा रहे थे…

कुछ पलों में जब दूल्हा-दुल्हन स्टेज पर चले गए, तब कहीं वहां जमा भीड़ धीरे-धीरे छंटने लगी।अब भीड़ स्टेज की तरफ नजर आ रही थी।लोगों की लंबी लाइन बन चुकी थी जल्द से जल्द वर-वधू को आशीर्वाद देने के लिए।गार्डन में खाने के ‘स्टार्टर’ के स्टाल लगे थे।ढेरों किसिम किसिम की खाने-पीने की चीजें।एक कोने पर ऑर्केष्ट्रा सजा था, जहां माइक पर एक लड़का और लड़की युगल गीत गा रहे थे।

यह सब कुछ कितना सुंदर, और ऐश्वर्य से भरा हुआ! और कितना अलौकिक! खुशहाली ही खुशहाली!! किसी दुख, चिंता का नामो-निशान नहीं! कि जैसे सब कुछ अपने आप अनायास हो रहा हो! लड़के-लड़कियां, युवक-युवतियां पार्टी में अपने नए-नए डिजाइनर कपड़ों में सजे-धजे पहुंचे थे।पार्टी तो मानो इन्हीं के लिए थी! इन्हें देखकर वाकई सब अपने आप एक वैभव-बोध से भर-भर जा रहे थे।वे सभी इस माहौल का आनंद उठा रहे थे कि तभी चौधरी सर का मोबाइल बज उठा।चौधरी सर मोबाइल कान में सटाए वहां से कहीं दूर चले गए, ताकि बात सुन सके।

यह उनके पुणे वाले साढू भाई का फोन था, ‘अरे भाई साब, आपने वो हिंडनबर्ग वाली न्यूज़ देखी?’

‘नहीं तो।क्यों, क्या बात है?’

‘अरे तहलका मचा हुआ है मार्केट में भाई साब, तहलका!!’

‘क्यों, क्या हो गया?’

‘अरे, मैं तो परसों से वाच कर रहा हूँ।अमेरिका कोई हिंडनबर्ग है जिसकी रिपोर्ट आई है, जिसमें अडानी की कंपनियों पर एकाउंटिंग की भारी गड़बड़ी और धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया है… और पूरी दुनिया में इनके शेयर के दाम घट गए हैं।बीस परसेंट तक डाउन हो गए हैं।’

‘अरे बाप रे!!’

‘आपने भी तो अडानी की किसी कंपनी में इन्वेस्ट किया है न… आपने एक बार बताया था।’

‘हां-हां, अडानी पावर में।’

‘कितना?’

‘अरे, बीस लाख से ऊपर है यार…’

‘माइ गॉड! पता नहीं भाई साब क्या होगा… आप देखिए जरा… भारी तहलका मचा हुआ है इसका…’

बात खत्म होने पर अनायास उनकी नजर आर्केष्ट्रा के सामने नाचते लोगों के झुंड पर चली गई।वे सब अपने में मगन, खुशी से बेतहाशा झूम रहे थे, लेकिन चौधरी के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं।कुछ पल पहले तक चढ़ा उनका सारा नशा सहसा हिरन हो चुका था, वे पसीनेपसीने हो गए थे।

और ऐसा ही कुछ हो गया यादव सर के साथ।इसी चंद मिनट के अंतराल में, जब उनके पास शेखर का फोन आया।दिल्ली में उनके बेटे प्रवीण का सहपाठी और दोस्त शेखर।वे भी बात करने किसी कोने में सरक गए, क्योंकि यहां शोर-शराबे में बात करना मुश्किल था।

वे सन्न रह गए जब खबर मिली कि दिल्ली पुलिस ने प्रवीण को हिरासत में ले लिया है… कि २००२ गुजरात दंगों पर बी.बी.सी. की हालिया रिलीज़ डॉक्यूमेंट्री पर लगे बैन को हटाने और उसके सार्वजनिक प्रदर्शन करने को लेकर पिछले दो दिन से कई यूनिवर्सिटियों में स्टूडेंट्स संगठन लगातार प्रदर्शन और नारेबाजी कर रहे हैं।कई यूनिवर्सिटियों में हंगामा मचा हुआ है।आज दिल्ली विश्वविद्यालय की आर्ट्स फैकल्टी के बाहर लेफ्ट और भीम आर्मी स्टूडेंट्स संगठन का विरोध प्रदर्शन था।इसी में पुलिस से झड़प हो गई।कुछ लोगों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है, जिसमें प्रवीण भी है।अभी पता नहीं पुलिस किधर लेके गई उनको…

सुनकर एक पल को यादव सर को लगा, गश खाकर गिर जाएंगे।फिर हड़बड़ाए हुए तुरंत बेटे का नंबर लगाया।उधर स्विच ऑफ! कई बार लगाया।और हर बार स्विच ऑफ।उनकी आंखों में ढेर सारी छवियां तैर रही थीं।स्टूडेंट्स पर लाठियां भांजती पुलिस।बलपूर्वक पकड़ कर या घसीट कर ले जाती हुई।फिर थाने में डंडे के जोर पर सख्ती से होती पूछताछ।

अपनी चिंता में गहरे डूबे यादव सर की आंखें अनायास कोने में लगे बड़े स्क्रीन पर लाइव चल रहे रिसेप्शन पर ठहर गईं।यह वैभव और ऐश्वर्य का स्वर्ग था।यहां हँसते-खिलखिलाते सजे-संवरे ख़ुशहाल लोग थे।

उन्हें बहुत अजीब-सी अनुभूति हुई… जैसे यह कोई और ही दुनिया है, उन सब उथल-पुथल की चीजों से बहुत दूर घटित होती दुनिया… कि जिससे उनका कोई वास्ता नहीं है… एक नितांत अजनबी दुनिया…

उन्हें गहरी थकान महसूस हो रही थी।

 

संपर्क :४१,मुखर्जी नगर, सिकोलाभाठा, दुर्ग (छत्तीसगढ़) मो.९८२७९९३९२०

Painting by : M Dhurandhar