सेवा निवृत्त अध्यापक।अद्यतन कविता संग्रह नदी सपने में थी

हँसती हुई स्त्रियां

जीवन रण है
मन, फिर भी मधुवन है

कहती हैं स्त्रियां
स्त्रियां निकलेंगी आंगन से बाहर
नहाएंगी पोखर, नदी, नहर
देखेंगी तालाब के पानी में अपनी छवियां
आंखों में बसा लेंगी कमल की रंगत
खिलने का साहस
अपने सबसे ताजा वक्त में
करेंगी याद मां, दादी और नानी को

स्त्रियां कुनबे बनाती हैं
कुनबे में रहती हैं
कुनबे सजाती हैं

धरती-आकाश को लगती हैं अच्छी
हँसती हुई स्त्रियां
डोलती हुई हवाएं
फुदकती हुई चिड़ियां
दहाड़ती हुई शेरनी
बहती हुई नदियां
खिलती हुई कलियां
जागती हुई बहनें
मुस्कराती हुई सखियां
तो क्यों डरे स्त्री
बोलने, हँसने, दौड़ने से!

संपर्क :फ्लैट नं. 502, टावर वी, आम्रपाली सिलिकॉन सिटी, सेक्टर-76, नोएडा-201304 (.प्र.) मो.8953654363