महेश अपने बरामदे में टहल रहा था। वह अपने ही ख्यालों में डूबा हुआ था। मैं उसके नजदीक पहुंचा, पर उसे पता नहीं चला। मेरी आवाज को सुन मेरी ओर मुखातिब हो बोल पड़ा ‘तुम कब आए सुदेश? आओ आओ बैठो यार।’ पर उसकी बातों में वह खनक नहीं थी, जो उसकी पहचान थी। जिगरी था मेरा। बीस वर्षों तक एक कार्यालय में एक साथ काम किए थे हम दोनों। अभी छह माह पहले तो सेवानिवृत्त हुआ है। मेरी सेवानिवृत्ति के एक साल बाद। संयोग से आज हम पड़ोसी भी हैं। उसके मनोभाव को समझकर मैंने छेड़ा, ‘आज मेरा यार किस उलझन में है। बता तो सही, मन हल्का हो जाएगा।’

‘सुदेश, सचमुच मन आज उलझन में है’ कहते हुए महेश थोड़ा असहज हो गया। फिर उसने अपने दस वर्ष के पोते के साथ गत रात हुए वार्तालाप की जानकारी दी। महेश ने कहा, ‘पोता को महंगे वीडियो गेम की जरूरत थी। मैंने कहा, पापा ला देगा। यह सुन उसने कहा, पापा के पास पैसे नहीं हैं। मैंने कहा- ठीक है, मैं पैसे दे दूंगा। उसने कहा कि आप तो रिटायर हो गए हैं, आपके पास पैसे कहां से आएंगे। मैंने कहा कि मुझे पेंशन मिलती है, उससे ला दूंगा। कुछ सोचकर पोता बोल पड़ा, तब तो आपको मरने नहीं देंगे और अगर मर भी गए तो ममी बनाकर घर में रखेंगे।’

उन दोनों के सामने रखी चाय ठंडी हो रही थी।

बी/9, रोड नं.-2, नेताजी नगर, पोस्टकांता टोली, रांची-834001 (झारखंड) मो.9102246536