‘महुआ’ पत्रिका का संपादन। अद्यतन कविता संग्रह ‘चाँद से पानी.
एक दिन सोचा
बचपन के दिनों को
याद किया जाए
आँगन में बैठकर
कटोरे में पानी भरकर
देखा जाए – चाँद को
कटोरे के पानी में
मुझे दिखा चाँद
थका-हारा सा
मंदा-मंदा सा
क्या पानी है गंदला
जो दिखा रहा-चाँद
गंदा-गंदा सा
मैंने छुआ पानी को
पानी मोटा-मोटा सा
जैसे गंदला हो
धरती का कुआँ
अचकचा कर देखा –
अकाश की ओर
जमीन से आसमान तक
धुआँ-धुआँ सा
कहाँ से आया इतना धुआँ
रंधा रहा कौन सा चूल्हा
या खोद रहा कौन
धरती का कुआँ !
भला कैसे दिखेगा –
सुंदर-सौम्य-सुहाना चाँद
कटोरा में!
संपर्क: नावाडीह, बोकारो, झारखंड-829144 मो.9931552982