‘महुआ’ पत्रिका का संपादन। अद्यतन कविता संग्रह ‘चाँद से पानी. 

 

एक दिन सोचा
बचपन के दिनों को
याद किया जाए
आँगन में बैठकर
कटोरे में पानी भरकर
देखा जाए – चाँद को

कटोरे के पानी में
मुझे दिखा चाँद
थका-हारा सा
मंदा-मंदा सा

क्या पानी है गंदला
जो दिखा रहा-चाँद
गंदा-गंदा सा

मैंने छुआ पानी को
पानी मोटा-मोटा सा
जैसे गंदला हो
धरती का कुआँ

अचकचा कर देखा –
अकाश की ओर
जमीन से आसमान तक
धुआँ-धुआँ सा

कहाँ से आया इतना धुआँ
रंधा रहा कौन सा चूल्हा
या खोद रहा कौन
धरती का कुआँ !

भला कैसे दिखेगा –
सुंदर-सौम्य-सुहाना चाँद
कटोरा में!