चर्चित कवि।कविता के अलावा नाटक, संगीत और फिल्मों में गहरी रुचि।यह एक सच हैके अलावा तीन अन्य कविता संग्रह हँसीघर’, ‘खाली कोनाऔर नागरिक मतप्रकाशित।मध्यप्रदेश इप्टा के अध्यक्ष।

अश्लील हँसी

जब लोग मर रहे थे
वे तब भी हँसा रहे थे
कुर्सियों पर बैठी किराए की भीड़
हँस-हँस कर लहालोट हो रही थी
वे स्त्रियों का मजाक बना रहे थे
मजलूमों पर हँस रहे थे
कामवालियों की नकलें कर-कर के
मजदूरों किसानों चपरासियों चौकीदारों को
निशाना बनाए जा रहे थे
हँस रहे थे हँसाए जा रहे थे
कहते हुए कि यह लो स्वस्थ हास्य
वे बेचे जा रहे थे आवारा हँसी
कमाए जा रहे थे
हँसाए जा रहे थे
जबकि हँसने की कोई ठोस वजह
नहीं थी उनके पास
बातों में से बात निकालकर
विचित्र भेष बनाकर
आवाजें बदलकर
लोक के पात्रों का इस्तेमाल करके
बोली-वाणी की मिठास में
धतूरे के पिसे बीज घोलकर
बीमार समय को भुलाने के षड्यंत्र में संलग्न
इन चेहरों को पहचानने की जरूरत है
पर किसी का ध्यान नहीं था
कलाकारों जैसे दिखते इन रीढ़विहीनों में
झूठ छुपाते इन हँसी के ठिकानों में
सामान बेचने के क्रूर कारनामों में
नामी-गिरामी टुच्चे घरानों में
फूहड़ता को प्रमोट करते अभियानों में
न हम कहीं थे
न तुम कहीं थे
न हमारा संसार
न हमारे सपने।

डर-डर कर रहने का समय

अलग तरह से कुछ हो
अलग तरह से लोग हँसें
अलग तरह से गाएं
प्रेम करें अलग तरह से
अलग तरह का हो विलाप
जैसी पहले हुआ करती थीं रातें
उजाले का पुख्ता इंतजाम होने के बावजूद
अंधेरा था कि बढ़ता ही चला गया
आज रातों का तो चेहरा ही बदल गया
डरने की वजहें बदल गईं
दिन भी दिन जैसे कहां रहे
एक प्रचार अभियान के साथ
नए नए रोग दस्तक देने लगे
आवाज दबाने के तरीके बदल गए
बदल गए लाठियां चलाने के ढंग
बाबा दवाएं बेचने लगे
दंगाइयों को कुर्सियां मिलने लगीं
बहुत हद तक बदल गया लोक व्यवहार
हत्यारों के संगठन मजबूत हो गए
और लेखकों के संगठन कमजोर
बहुत से कवि आत्मनिष्ठ होकर
एकालाप करने लगे
पुरस्कार प्राप्त लोक कलाकार
दीवारों से घिरी कॉलोनियों में रहने लगे
एक तरफ गरीबों के घर बनने लगे
दूसरी तरफ शहरों को स्मार्ट बनाने के लिए
मकान तोड़ने और
बस्तियां उजाड़ने का काम शुरू हो गया
अलग तरह के भंडारे होने लगे
अलग तरह से होने लगे जाप
भोजन प्रसादी की रकम लफंगों ने दबा ली
संगीतकारों और संगतकारों को
भागवत कथाओं में मिलने लगा नया काम
डर-डर कर रहने का समय आ गया
दंगाइयों और वायरस के साथ
रहने का समय आ गया।

जो है सो है

उनसे जब पूछा गया
क्या यह समय आपातकाल जैसा है?
वे विहँसते हुए बोले
हां है तो सही
पर आपातकाल नहीं है
आप लाल को लाल कह सकते हैं
हरे को हरा और पीले को पीला
बात का सार-संक्षेप है कि
लोकतंत्र तो है
और अभी बचा हुआ है साबुत
आप संविधान के दायरे में हैं
पर कैमरे की निगरानी में भी
भावना को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए
न्याय पर उंगली नहीं उठनी चाहिए
दस का सिक्का अगर फर्श पर गिरे
तो मन के खाली निर्जन में
उसकी खनक सुनाई पड़नी चाहिए
प्रजातंत्र को प्रजातंत्र की तरह लेना चाहिए
थोड़ा बहुत आया है झोल
तो झोल की पोल में छुपे रहना चाहिए
आपको पता होना चाहिए
कि प्रजातंत्र है जस का तस
और जैसा है सो आपके सामने है
अब जो है सो है।

संपर्क : लंबरदार गली, विदिशा रोड (कृष्णा दूध डेयरी के पास), अशोकनगर, जिला : अशोकनगर-473331 (मध्यप्रदेश) मो.7000848309