ताजा कवि।बारहवीं कक्षा में अध्ययनरत। बचपन से पत्रिकाएं पढ़ने का शौक।

केदार जी का स्मरण करते हुए
खेत में चुगते पक्षियों पर
कभी मत
फेंकना पत्थर
नहीं तो भूखा मर जाएगा
समूचा आदम जात
व्याकुल भटकते निरुपाय को
मत देना
देहरी से धका
नहीं तो रोएगा कुत्ता
रातभर दहलीज पर
नियति की आंखों में
मत धंसना
बनकर कोई कांटा
नहीं तो फ़िसल जाएंगी
मछलियां हाथों से
राह चलते पत्थर को
मत मारना ठोकर
नहीं तो गिर पड़ेगा
भर-भराकर
सांसों का पहाड़
जहां दिन में भी
प्रतिबिंबित होती हो रात
उस जंगल की ओर
कभी जाना मत
नहीं तो खा जाएगी
एक चुप्पी दिन के उजाले में
चाहे बीत जाएं सैकड़ों वसंत
पर उस प्रेमिका की
सुंदर प्रतीक्षा पर
कभी मत करना संदेह
जो पत्तियों के पांव में
मेहंदी लगा कर
पतझर का इंतजार करती है।

महीना जनवरी
इस महीने
कमरे में पड़ती धूप
पिछले महीने की धुंध से ही
छन कर आती है
और आते ही
सबसे पहले पड़ती है
पुवाल की गोद में
शांत सोते हुए पाले पर
अर्थ से सने पांव लिए
खिड़कियां खड़खड़ाते हुए
एक हवा आती है
और हमारे बीच जलती
शब्दों की धीमी आंच को
थोड़ा और
अर्थमय कर देती है
दांत किटकिटाती
बैजंतीमाला को
जब छूती है
इस महीने की शीत लहरी
तब कंपकंपा उठता है
ओस से नहाया संपूर्ण उपवन
कभी इस महीने की
भव्यता पर
केंद्रित करो ध्यान
तुम्हें दिखेगा आलू के मेड़ों पर
भटकता हुआ वसंत
गेंहू के खेतों में
सावन बन कर उतरता पानी
पेड़ की पत्तियों पर
बिखरे फाल्गुन के चटख रंग
यह महीना पतंग पर
बैठ कर आता है
और धागे के सहारे
उतरता है धीरे-धीरे
उन लोगों के मध्य
जो कितने ही दिनों से
न होने की
उनकी रिक्तता
एक दिन के ठहराव से
भरने की कोशिश करते हैं
दिसंबर की चट्टान को
तोड़कर नन्हे पौधे की तरह
निकल आता है
यह महीना
सूरज की रोशनी
गूंथकर बालों में
एक चिड़िया चहचहाते हुए
आकाश की ओर
फुर्र से उड़ जाती है।

संपर्क :ग्राम तिवारी मरहटिया, थाना+जिलागढ़वा (झारखण्ड), पिन-822114मो. 6200051264