युवा कवि। कवितासंग्रह : एक संपूर्णता के लिए’, ‘एक ही चेहरा’, ‘रक्तचाप और अन्य कविताएंयही तुम थे’ (कवि वीरेन डंगवाल पर एकाग्र आलोचनात्मक संस्मरण)

एक आदमी आदेश देकर

एक आदमी आदेश देकर
छिप गया है
हजारों लोग भूखे-प्यासे
बेहाल
सड़क पर हैं
गांव
सैकड़ों मील दूर
किसी की जेब में
पांच रुपए हैं
किसी ने कई दिनों से
सिर्फ कुछ बिस्किट खाए
और पानी पिया है
किसी की पत्नी के पांव की
हड्डी टूटी हुई है
वह उसे कंधे पर बिठाकर
चल दिया है
नब्बे साल की बूढ़ी स्त्री
चार सौ मील दूर
घर के लिए
पैदल चल पड़ी है
कोई साइकिल से
सपरिवार जा रहा है
बच्चा हैंडल पर
सो गया है
कहीं दो-चार कौर
खिचड़ी के लिए
हजारों लोग कतार में
सरकार के
रहमोकरम पर हैं
उन्हें मेहरबानी नहीं
घर चाहिए था
जहां वे नमक-रोटी
खा सकते थे
दूसरों को अपनी चिंता से
बचा सकते थे
मगर वे किसी ब्लेड पर
चल रहे हैं
लहूलुहान
महामारी ठिठक गई है
भूख का यह कहर देखकर
एक आदमी आदेश देकर
छिप गया है।

मोबाइल में तैरता हुआ संदेश

आजकल मोबाइल में तैरता हुआ
संदेश आता है :
‘आप सुरक्षित हैं
आसपास कोई मरीज़ नहीं है’
यह कुछ ऐसे है
जैसे नजदीक ही
कोई दुश्मन नहीं है
जो दुश्मन है दिखता नहीं
उसका शिकार दिखता है
लिहाजा वही दुश्मन है
उसे हमदर्दी की जरूरत हो
तो बहाना बनाकर
मुकर जाएं
मदद की उम्मीद हो
तो हाथ खींच लें
जब पूरी मनुष्यता अरक्षित है
अलग-अलग सबको सुरक्षा का
यकीन दिलाया जा रहा है
जिससे वे मान लें
कि वे राज्य द्वारा रक्षित हैं
और बाकी सब पर
संदेह कर सकें
समाज से दूरी
जीवन का नया मंत्र है
किसी की मृत्यु हो जाए
तो शव के पास जाने में भी हिचकें
बाद में असमंजस में न पड़ें
इन मौतों के लिए
कोई जिम्मेदार नहीं है
न समाज न राज्य
दरअसल जो मर गए
खतरा उन्हीं से था।

एक दिन किताबें

एक दिन किताबें अपनी
करीने से लगा रहा था
उनमें बहुत सारी ऐसी
जो पढ़ी ही नहीं जा सकी थीं
मगर आश्चर्य!
कई ऐसी थीं
जिन्हें पढ़ा था
उनका कुछ भी
याद नहीं था
जैसे उनसे कभी
मुलाकात नहीं हुई
दोस्त व्यर्थ ही
मेरी स्मृति की
सराहना करते आए थे
मुझे महज वे शब्द याद थे
जिन्होंने जिंदगी में
सहारा दिया था।

आठ मिनट छियालीस सेकंड

दो मिनट नहीं
आठ मिनट छियालीस सेकंड का
मौन रखा गया अमेरिका में
जॉर्ज फ़्लॉयड की स्मृति-सभा में
गोरा पुलिस अफसर
आठ मिनट छियालीस सेकंड
अपने घुटने से
जॉर्ज फ़्लॉयड के
गले को दबाता रहा
जब तक कि उनकी जान
नहीं चली गई
और वह कहते रहे :
‘मैं सांस नहीं ले पा रहा हूँ’
किसी मज़लूम की याद में
महज दो मिनट का
मौन मत रखो
इस रस्म को बदलो
कोई तो रिश्ता हो
तुम्हारे सुलूक का
मृतक के अपमान
और यातना से।

नीरो का बयान

पेट्रोल और डीजल पर
बेरहमी से बढ़ते जा रहे
सरकारी कर से
भारत में लोग जब
बेहाल हो गए
उनमें-से बहुतों को
लगने लगा :
हो न हो
रोम पेट्रोल और डीजल जैसे ही
किसी ज्वलनशील तरल पदार्थ की
लपटों में
धू-धू कर जला था
और उस अग्निकांड से आह्लादित
सम्राट नीरो
राजप्रासाद की अट्टालिका पर
बांसुरी बजाते हुए
सिर्फ नृत्य नहीं कर रहा था
बल्कि उसे यह कहते भी
सुना गया था :
यह जो आग सबको
राख करती जा रही है
इसे रोक पाना
मेरे वश की बात नहीं।

तमस

लोग सरकार से
निराश होकर
न्यायालय के पास
जाते थे
न्यायालय से
निराश होकर
कहां जाएं?
यह देश है
या भीष्म साहनी के उपन्यास
‘तमस’ का मंज़र
जहां हालात से मायूस
किरदार चीखता है :
‘कोई है?’
और बदले में उसे
अपनी ही आवाज की
गूंज सुनाई देती है।

रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर

कोरोना काल में
रेलवे प्लेटफॉर्म पर
सबको भयभीत करता हुआ
एक मां का शव पड़ा है
उसका बच्चा
मां का आंचल खींचकर
उसे जगा रहा है
बच्चा मृत्यु को नहीं जानता
सिर्फ अपनी मां को
जानता है।

रहीम चाबी वाले

ईदगाह रोड के किनारे
दुकान के साइनबोर्ड पर
लिखा था :
‘रहीम चाबी वाले’
मुमकिन है
उस कारीगर लड़के का
नाम ही रहीम हो
जिसने स्कूटर की
टूटी हुई चाबी के बदले
एक नई चाबी
बनाकर मुझे दी
मैंने चलते समय कहा :
‘स्कूटर स्टार्ट न हुआ
तो फिर आऊंगा’
उसने जवाब दिया :
‘इंशाअल्लाह,
आपका काम होगा’
भाग्यशाली हूँ
इक्कीसवीं सदी में भी
इतनी खूबसूरत ज़बान बोलते
युवा रहीम से
मुलाकात हुई।

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