वरिष्ठ कवि। अद्यतन कविता संग्रह ‘सुबह की प्रार्थना’।
1-आस्था
अभाव के दिनों में
जब पानी बचाकर रखने को भी
बर्तन नहीं थे शाम तक के लिए
अन्न के दाने मुट्ठी से
सीधे पकने को जाते थे पतीली में
भूख टीस मारती रहती थी
खौलते भोजन के भाप की तरह
अंधेरा ही अंधेरा दिखता था चारों ओर
इस चमकते सूरज के प्रकाश में
इस मुसीबत में
बचा सकें हम आपस के प्रेम को
चारों जने चिपके रहे एक-दूसरे से
एक ही देह की तरह
किसी ने रोष नहीं प्रकट किया मुझ पर
कि मैं उनका पिता या उसका पति होकर भी
सक्षम नहीं था
इस गरीबी को परास्त करने में!
2-कमरे की जगह
जब वह लेखक मरा
उसका ढेर सारा अप्रकाशित लेखन
बेच दिया गया रद्दी में
साथ में अनेक प्रकाशित पुस्तकें भी
बाकी ढेर सारी किताबें
दान कर दी गईं
एक बड़े पुस्तकालय को
उन्हें रखने के लिए अलमारियां भी
दे दी गईं मुफ्त
एक लेखक की मौत के साथ
अनूठी विदाई हुई पुस्तकों की
उन्हें लेखक नहीं
कमरे की जगह चाहिए!
3-चूक
पिंजरे की क्या गलती
वह तो रख दिया गया था
बस एक जगह
चूहे को तो रोटी की सुगंध बुला रही थी
रोटी की भी क्या गलती
उसे भी कैद होना पड़ा पिंजरे में
जिसने पिंजरा रखा
उसकी क्या गलती
चीजों के कुतरे जाने से परेशान था
चूक सिर्फ चूहे की थी
वह गुप्त रास्तों को बखूबी पहचानता था
लेकिन जानलेवा को नहीं!
1-देश का झंडा
नन्हा-सा बच्चा
बगैर जूते और पैंट के
हाथ में देश का झंडा लिए
हाथ छुड़ाकर मां के
शामिल हो गया
भद्र लोगों के जुलूस में
जल्दी ही दुत्कारा गया
अफसोस हुआ
पीछे-पीछे दौड़ती आई मां को
इतने बड़े-बड़े झंडों को उठाए
आगे बढ़ते हुए लोग
क्यों बढ़ने नहीं देते अपने साथ इसे भी
क्या हक नहीं एक गरीब को देशभक्ति का
क्या देश इतना अमीर हो चुका है?
2-स्मारक
इस गांव में नहीं था
किसी का भी स्मारक
जैसे नहीं रहा कोई इस गांव का मसीहा
जबकि अनेक मुखिया रहे यहां
जी-तोड़ मेहनत की इसे सजाने के लिए
कुएं खुदवाए, बिजली के तार लगवाए
पाठशालाएं खोलीं, शिक्षक तैयार कराए
अपने सामर्थ्य भर बदलाव लाकर
वे मृत्यु को प्राप्त हुए
अब बात चली है स्मारक लगाने की
आ धमके हैं कई नए चेहरे
बड़े-बड़े कट आउट लेकर
भाड़े के लोगों द्वारा
अपने जयकारे से
गुंजा रहे पूरा गांव
थर्रा रहा बंदूकों के डर से लोगों का मन
अब स्मारक बनेगा उसी का
जो जीतेगा यह चुनाव।
3-संग्रहालय
किसी श्रमिक का हथौड़ा सामने पड़ा था
जैसे सोया हो बिलकुल थककर
किसी योद्धा की तलवार भी थी
जैसे इंतजार कर रही हो
युद्ध में जाने का
पुराने जमाने की पोशाकें भी थीं
करीने से सजाकर रखी हुईं
चूल्हा, चक्की, बर्तन आदि के साथ
बहुत सारी चीजें थीं
पुराने लोगों द्वारा इस्तेमाल की हुईं
सब कुछ मुझसे दूर
कांच के पीछे
लेकिन मेरी आंखों के सामने
मन किया बस इनमें से
उस सुंदर बांसुरी को उठा लूं
एक बार बजाकर तो देखूं
क्या अब भी वैसे ही मीठे सुर हैं इसमें।
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