चर्चित आलोचक। दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय में अध्यापन।

वह शहर का मशहूर कायर था| उसके दब्बूपन पर लोग हँसते थे और उसे चिढ़ाते थे| उसकी मिसाल देकर कहा जाता था कि इनसान को इतना भी डरपोक नहीं होना चाहिए| छिपकली-तिलचट्टे को देखकर जिनकी घिग्घी बंध जाती थी, वे भी उसकी कायरता के बारे में हँसी-मजाक कर अपने को साहसी सिद्ध कर सकते थे| कुछ लोग उसे शहर का कलंक मानते थे और नई पीढ़ी को उसके प्रभाव से बचाने की योजनाएं बनाते थे| उनका मानना था कि वह पराक्रम और शौर्य के गुणों को नष्ट कर सभी को कायर बना देना चाहता है| पर वह कायर होने के आरोप पर बहुत हँसता था| उसकी हँसी में जैसे संसार के हर शूरवीर और पराक्रमी इनसान के लिए गहरी वितृष्णा झलकती थी| वह हर चीज का मजाक उड़ाता लगता था, जिससे बहादुरी का कोई किस्सा जुड़ा हो| कई बार तो वह रैलियों-संगोष्ठियों में पीछे खड़ा होकर झुलसाते प्रवचनों का मजाक उड़ाता था| एक बार शहर के चौराहे पर खड़ा होकर वह कायरता के फायदों के बारे में अपने चार परिचितों को समझा रहा था| वह उन्हें बता रहा था-

बुजदिली से बड़ा गुण कोई नहीं है| जिस देश में और समाज में बहादुरी को व्यर्थ समझने वाले लोगों की संख्या अधिक होती है, वह समाज अधिक उन्नत होता है| वह अधिक महान होता है| महान कायर ही महान समाज का निर्माण कर सकता है|’

उसकी बातों को सुन रहे लोगों के चेहरों पर उलझनें साफ देखी जा सकती थीं| उन्हें उसकी बात समझ में आ रही थी, पर मन ही मन गुस्सा आ रहा था| चारों में एक उसे गुस्से से देख रहा था| वह बहुत तैश में आ चुका था| घर से चलने से पहले उसने टीवी पर खबरें देखी थीं, जिनमें शत्रु देश को मजा चखाने वाली बहादुरी की लंबी चौड़ी बातें की गई थीं| वह उस खबर को सुनने के बाद इस कायर का गला दबाना चाहता था| वह किसी तरह उसकी कायरों की महानता के बारे में बातें सुनता रहा और फिर चीखकर बोला- ‘भाग यहां से| पागल साला| एक झापड़ रसीद करूंगा तो सारी फिलासफी निकल जाएगी|’

अचानक मिली इस धमकी को सुनकर उसका आत्मविश्वासपूर्ण चेहरा पीला पड़ गया| ऐसा लगा कि वह अभी जमीन पर गिर पड़ेगा और छटपटाने लगेगा| आखिरकार वह शहर का ऐलानिया सबसे डरपोक इनसान था| धमकी के बाद उसकी हालत देखकर यह साबित होता था कि वह अभिनय नहीं कर रहा था| वह सचमुच बेहद दब्बू आदमी था| किसी तरह उसने अपने को संभाला और बोला-

‘मैं आपसे जान की भीख मांगता हूँ| मैं तो पहले ही बहुत भयभीत रहता हूँ| कल रात एक मोटा-सा चूहा मेरे कमरे में घुस आया था और मैं उसे देख चीख मारकर बिस्तर से गिर पड़ा था| मेरे घर के पास कोई जोर से लड़ रहा था और उनकी आवाजें मेरे कानों में पड़ रही थीं| इससे मेरा रक्तचाप बुरी तरह बिगड़ गया| आप मुझे माफ कर दें| अब से आपको दूर से आता देखकर भी मैं अपना रास्त बदल लूंगा|’

जब वह यह कह रहा था तो बाकी तीन लोग चुपचाप खड़े उसे देख रहे थे| उन्हें अपने चौथे साथी का बरताव अच्छा नहीं लग रहा था| उन्हें कायर की बातों में रस मिल रहा था| वे तीनों चाहते थे कि अपने चौथे साथी को वहां से भगा दें और शांति से उसकी बात सुनें| पर अब मामला बिगड़ चुका था|

वह मशहूर कायर शहर के एक पुराने मुहल्ले में अपने छोटे भाई के साथ रहता था| वह कहां से खर्च चलाता है, कैसे मकान का किराया भरता है, इस बारे में किसी को कुछ नहीं मालूम था| लोगों को यह पता था कि उसका भाई उससे बहुत चिढ़ता है और अकसर उसे डांटकर घर से भगा देता है| वह शहर में निरर्थक घूमता देखा जा सकता था पर उसकी चालढाल में आत्मविश्वास दिखता था| उसके चेहरे पर एक बेफिक्री रहती थी जो कायरता के बारे में दिए गए उसके भाषणों से मेल नहीं खाती थी| लोगों को समझ में नहीं आता था कि जब वह बहादुरी के पक्ष में बातें कर अपना सम्मान बढ़ा सकता है, तो वह कायरता के महत्व के बारे में अपने प्रवचन देकर अपना सम्मान क्यों जानबूझकर गंवाता है|

पर वह बचपन से ऐसा नहीं था| वह इस शहर से दूर एक छोटे कस्बे में रहता था| वह कस्बा पहले गांव था, पर धीरे-धीरे एक कस्बे में बदल चुका था| वह अब भी गांव ही कहलाता था| उसके पिता शहर से सामान लाकर स्थानीय दुकानों को सप्लाई करते थे| उसका जीवन बहुत सामान्य था और वह दसवीं कक्षा में पढ़ते वक्त तक शांत जीवन जीता रहा| मां खाना बनाती, वह स्कूल जाता और पिता सुबह-सुबह काम पर निकल जाते| वह इतना आत्मरत था कि घर से कम ही बाहर निकलता| वह कस्बे से सटे पिक्चर हाल में फिल्में देख लेता था| एक बार उसने वहां ‘आवारा’ नामक फिल्म देखी थी और उसे राजकपूर का वह डायलाग बहुत पसंद आया था जिसमें वह कहता है- ‘दिल कानून को नहीं मानता.. किसी कानून को नहीं मानता|’ उसे लगा कि उसका दिल भी बहुत भागता है| इधर-उधर| और अगर लोगों को पता चल जाए तो उसे कितनी भयानक सजा मिले| मां-बाप तो घर से निकाल देंगे| उसे गांव की एक लड़की, जो धोबियों की बस्ती में रहती थी, बहुत अच्छी लगती थी| वह उसके घर के सामने से गुजरते हुए हमेशा सोचता था कि वह दूर से ही उसे देख पाएगा|

वह उसे देखने के लिए कोई न कोई तरीका निकालने के बारे में सोचता था| उन दिनों वह यह सोचता था कि काश किसी प्रकार से वह फिल्म के पर्दे पर आ जाए और सब उसे देखकर चकित रह जाएं| वह अपने पिता को जताना चाहता था कि वह विशेष व्यक्ति है, क्योंकि उसे लगता था कि उसके पिता उसे बहुत उपेक्षित करते हैं| मां उसकी ओर तभी ध्यान देती है जब कोई चोट लग जाए या वह बीमार पड़ जाए| बाकी वक्त वह एक अनाज के एक बस्ते जैसा था जो घर के कोने में पड़ा रहता है|

जब उसने बारहवीं में दाखिला लिया तो उसके एक चाचा उसके घर के पास आकर रहने लगे थे| वह किसी दूसरे शहर में एक मिल में काम करते थे| मिल के मैनेजर से उनका झगड़ा हो गया| लोगों की कानाफूंसी से पता चला कि झगड़ा इसलिए हुआ क्योंकि वह मिल में किसी सहकर्मी के घर जाते थे और एक दिन उसकी बेटी के साथ अवांछित हरकत की थी|

बात मिल के मैनेजर तक पहुंची तो उन्हें वहां से निकाल दिया गया| वे नौकरी के लिए बहुत भटके पर कहीं न मिली| मन मारकर गांव में अपने पुराने जीर्ण मकान की थोड़ी मरम्मत कराकर उसमें सपरिवार रहने आ गए| शहर से आने के बाद वह अकसर गुस्से में भरे दिखते थे| घर के बाहर बैठे रहते तो लगता कि किसी को पत्थर मार देंगे या गाली बक देंगे| कोई घर के पास थोड़ी देर खड़ा होकर बातें करने लगे तो उसे जोर से डांटकर भगाते थे| उनके गुस्सैल व्यवहार पर लोगों ने ध्यान देना बंद कर दिया था| यह भी उन्हें अच्छा नहीं लगा था| वह शायद चाहते थे कि जिसे उकसाएं वह आकर उनसे लड़े| पर गांव में लोगों ने अधिक लड़ाई-झगड़ा नहीं देखा था| वे मनुष्य के स्वभाव को समझकर उससे बरताव करते थे और कोर्ट-कचहरी, पुलिस, फसाद आदि से दूर रहते थे|

एक दिन चाचा ने उसे बुलाकर कहा था-

‘क्या ये मरियल बकरी जैसा घूमा करता है! लोग तुझे खा जाएंगे अगर यही हालत बनी रही|’ उसने पूछना चाहा कि खा जाने का क्या मतलब है| वह क्या कोई लड्डू-पेड़ा है जिसे लोग खा जाएंगे| बकरी और उसमें समानता देखने का क्या मतलब है! पर वह भी दूसरों जैसा था जो अन्य की बातों पर ध्यान कम देते थे|

उसे उनकी बातें समझ में नहीं आईं और किसी बहाने उनसे पीछा छुड़ाकर उस लड़की के घर की तरफ चला गया था| उसे पता था कि मंगलवार के दिन वह सवेरे के समय घर के कपड़े फैलाती है| उसकी गोरी बांहों और आंखों को वह भूल नहीं पाता था|

उसने धीरे-धीरे पाया कि चाचा उसके ऊपर ज्यादा ही ध्यान देने लगे हैं| उसे घर बुलाते हैं, खिलाते-पिलाते हैं और कुछ वीर नायकों की पुस्तकें पढ़ने को देते हैं| उनके समीप आकर उसे लगने लगा कि वह ऊपर से गुस्सैल हैं पर उनके पास ज्ञान बहुत है| संसार में चल रही घटनाओं के बारे में बहुत जानकारी है, जबकि उसके घर में किसी को दाल-रोटी, हाट-बाजार या कभी-कभार पूजापाठ आदि से ज्यादा किसी चीज से मतलब नहीं है| अपना घर बंद कमरे जैसा लगता जिसमें रोशनी बहुत कम थी| उसे चाचा की जानकारियां बहुत काम की लगीं और उनके पास जाकर बैठने लगा| उन्होंने ही बताया था कि पूरी दुनिया इस गांव जैसी नहीं है| यहां के लोग बहुत डरपोक हैं| दुनिया में रोज कितने ही पाप और हिंसा होती है, यह चाचा की बातों से जाना जा सकता था| वह इस शांत गांव की शांति को बहुत तुच्छ और बेवकूफ लोगों की चीज बताते थे| उनका मानना था कि ऐसे लोग हमेशा पराजित होते हैं, उन्हें कोई भी गुलाम बना सकता है| वह सभी लोगों को गाय, बैल, बकरी, गधा या उल्लू मानते थे| उन्हें किसी भी इनसान की तुलना किसी पशु से करने में संतुष्टि मिलती थी| एक दिन उसने चाचा से पूछा था- ‘पर हमारे यहां तो लोग अच्छे हैं| मैं उनसे जब आपकी बातें करता हूं तो उन्हें किसी प्रकार की रुचि नहीं महसूस होती| वे कहते हैं कि अपने काम से काम रखना ही अक्लमंदी है|’

चाचा की भवें तन गईं और बोले– ‘सूअर हैं सब| कुएं में पैदा हुए और वहीं टर्राटर्रा कर मर जाएंगे| पर तुम्हें इनके जैसा नहीं बनना है|’ उसे सब लोगों को सूअर कहना अच्छा नहीं लगा| वह गांव के कई लोगों को बहुत प्यार करता था, उनका सम्मान करता था|

पर उसे चाचा की बात ठीक भी लगी थी| उनका गुस्सा जायज लगा था| उसने गुस्से को कम ही किसी के चेहरे पर देखा था| इसका प्रभाव किसी के चेहरे पर कैसा होता है, यह भी उसे ठीक से पता नहीं था| उस दिन उसने लौटकर आईने में शक्ल देखी थी और उसे महसूस हुआ था कि उसके चेहरे का निचला हिस्सा बहुत कोमल है| एकदम बछड़े जैसा| वहां उसे होंठों व ठुड्डी के पास कठोरता को विकसित करना होगा| वैसे ही जैसे चाचा के चेहरे पर है| उनकी नाक के नीचे की नसें तनी हुई लगती हैं| होठों से क्रोधपूर्ण शब्द निकलते-निकलते होंठ भी बहुत कड़े व सख्त जान पड़ते हैं| चाचा से उसे जो ज्ञान मिला, उससे ही उसे पता चला कि गांव में जो लोग अपने रोजमर्रा के जीवन को शांति से बिताने पर यकीन करते हैं, वे वास्तव में कितने अज्ञानी हैं| संसार से कटे हुए| वह चाचा की दी हुई अखबार की कटिंग, पुस्तकों, पैंफलेट आदि को ध्यान से पढ़ने लगा था| उसके पास मोबाइल न था पर चाचा मोबाइल की कई चीजों से उसे परिचित कराते थे| उसे उनकी सोहबत में लगता कि वह समाज के किसी बड़े नायक या हीरो के साथ है जिसे सब पता है| उसे लगता कि उसे खुद नहीं पता था कि आत्मविश्वास क्या चीज है| यहां के स्थानीय लोगों को तो आत्मविश्वास नामक चिड़िया का पता ही नहीं है| सब एक दूसरे पर विश्वास करते हैं| सब रौब मारने की संस्कृति से अपरिचित हैं| चाचा की तरह वह भी अब आसपास के सारे स्थानीय लोगों को मन ही मन गाली बकने लगा| पहले वह घर के बाहर निकलता था तो हर चीज, लोग, दुकानें-मकान उसे अपने से लगते थे| अब उसे दिन-रात आत्मविश्वास की चिंता सताने लगी| वह उन सभी चीजों से अपने को दूर पाता था, उनसे लड़ने का मन करता था ताकि वह आत्मविश्वास को सुदृढ़ कर सके|

वह जिस लड़की को मन ही मन चाहता था, एक बार डरतेडरते उसके लिए चिट्ठी लिखी थी| रास्ते में एक पेड़ की आड़ में बुलाकर उससे पूछा था– ‘मैं कैसा लगता हूं?’  फिर संकोच के साथ चिट्ठी भी थमा दी थी|

वह लड़की शायद उससे एक साल छोटी थी| सफेद कुर्ता और हरी सलवार पहने थी| उसने कहा था- ‘मुझसे क्या मतलब है तुम्हारा| हमारा धर्म अलग है| घरवालों को पता चला तो मुझे जमीन में जिंदा दफना देंगे|’

चिट्ठी में उसने मुश्किल से दस लाइनें लिखी थीं| उसमें उसने लिखा था- ‘यह सूरज चांद सितारे सब तुम्हारे लिए हैं| मैं भी तुम्हारे लिए ही बना हूं| तुम्हारी याद में रोता और तड़पता हूं| हम बहुत आसानी से मिल सकते हैं| कोई मुश्किल आई तो यह जगह छोड़कर चले जाएंगे| तुम्हें मेरी सामर्थ्य पर भरोसा करना होगा| अच्छा होगा कि तुम घर वालों को मना लो और मैं अपने घर वालों को| न मानेंगे तो हमारे जीवन का फैसला हम खुद करेंगे| अब हम बड़े हो चुके हैं| मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार करूंगा|’ उसकी चिट्ठी का कोई जवाब उसे नहीं मिला तो वह पहले तो झल्लाया फिर सोचा कि वह लड़की डर गई होगी| जब मिलेगी तो पूछेगा| जमीन में जिंदा दफनाने की बात उसे याद थी और सोचता था कि लड़की जरूर झूठ बोल रही है| अपना डर दिखाकर उसे डरा रही है| कहीं ऐसा होता है!

उसे धर्म की बात सुनकर भी धक्का लगा था| वह उसकी जाति से परिचित था, पर धर्म की बात तो उसने सोची ही न थी| उसके घर ईद पर चहल-पहल क्यों रहती है, अब उसके ध्यान में आया| घर में उसके लोगों का नाम उसे हिंदू जैसा लगता था| खुद उसका नाम रौशनी था| उसने मन ही मन सोचा था कि वह चाचा से इस बात का जिक्र करेगा| उनके विचार उसके लिए जीवन की सीढ़ी थे और वह उनके विचारों के बल पर ऊपर की तरफ चढ़ना चाहता था| जल्दी ही एक दिन चाचा जब घर के बाहर एक डंडा लेकर बैठे थे तो वह उनके पास जाकर बैठ गया| उसने डरते-डरते पूरा किस्सा सुनाया तो चाचा के चेहरे पर रहस्यमय मुस्कान फैल गई| बोले- ‘बस इतनी सी बात है| तुम ज्यादा मत सोचो| ऐसे मामलों में हमें पता है कि क्या करना है| मैं तुम्हारी मदद करूंगा| बस तुम्हें थोड़ा दिलेर बनना होगा|’

उसे चाचा के अनुभवों पर भरोसा था| वह यहां के लोगों जैसे थोड़े ही थे जो कुएं के मेंढक हों| वह तो देश-दुनिया की बातों को जानते थे| उस लड़की के बारे में सोचते-सोचते चाचा पर आस्था बढ़ने लगी| चाचा अब जैसा कहते, वैसा ही वह करता| उसने उन्हीं के कहने पर एक दिन पास वाले जंगल में जाकर एक बीमार कुत्ते की पत्थर मारकर हत्या कर दी| उनके कहने पर उसने गांव की श्मशान भूमि पर रात के समय थोड़ा वक्त बिताया| एक पुराने खंडहर में जाकर जोर से चिल्लाया और एक मस्जिद के सामने बैठकर हनुमान चालीसा का पूरा पाठ किया| वह यह सब क्यों कर रहा था, उसे खुद नहीं पता था| उसे बस यह पता था कि चाचा उसे हिम्मती, दिलेर बना रहे हैं| उसे मजा आने लगा, रोमांच पैदा होता था| सबसे बड़ी बात कि उसे चाचा का योग्य शिष्य बनने का अवसर मिला था और उसे लगता था कि वह अब गांव के भोले-भाले शरीफ लोगों से अलग है और किसी महान रास्ते पर चल रहा है| एक दिन चाचा ने एक नकली बंदूक लाकर उसे दी थी| फिर कहा- ‘सामने वाले कबूतरों पर निशाना लगाओ| झूठा फायर करने के पल में ही जोर से ठांय बोलना है|’

उसे इस काम का अर्थ समझ आया| पर चाचा के चेहरे पर मौजूद भाव ऐसा था कि वह मना नहीं कर सका| जब उसनेठांयकहकर फायर किया तो कबूतरों के जोड़े आराम से उड़कर चले गए| तब चाचा ने कहा– ‘तुम्हें गुस्सा आया कि नहीं कि तुम्हारा शिकार तुम्हारे सामने से उड़कर चला गया!’

उसे सममुच गुस्सा आया था कि उसकी नकली बंदूक का लाभ उठाकर कबूतर आराम से उड़ गए| उसने चाचा से कहा कि ‘आपने ही तो नकली बंदूक दी है|’

चाचा ने कहा- ‘तुम्हें अपनी बहादुरी पर यकीन कर अपने दुश्मन को ठिकाने लगाने की कोशिश करनी होगी| बंदूक नकली है, पर वह बहादुरी को हासिल करने की पहली शिक्षा है|’ तब वह सोच में पड़ गया कि कौन दुश्मन है उसका! किसे ठिकाने लगाना है! उसने अपनी कल्पनाओं पर भी जोर डाला कि शायद वहां किसी दुश्मन का चेहरा दिख जाए, पर वहां भी कोई न था|

वह मन ही मन उनकी बातें मानता गया| उसे बचपन से ही अपने से बड़ों की सभी बातें मानने का संस्कार मिला था| फिर एक दिन वह उसे आम के बाग में ले गए| उन्होंने पेड़ की ओर इशारा कर कहा- ‘तुम्हें आज पांच आम तोड़ने हैं|’ उसने कभी इस प्रकार से आम नहीं तोड़े थे| पर वह झटपट तैयार हो गया| किसी प्रकार पत्थर और डंडा मारकर उसने पांच आम तोड़े तो चाचा ने कहा कि अब ये आम मुझे दे दो और उस पेड़ के पीछे चले जाओ| उसे लगा कि वह कोई खेल कर रहे हैं| आम उन्हें सौंपकर वह पेड़ के पीछे चला गया| दस मिनट बाद चाचा ने उसे बुलाया और कहा- ‘मैंने आम जमीन में गाड़ दिए हैं| तुम्हें अब ढूंढने हैं|’ उसे लगा कि चाचा ज्यादा ही खेल-मजाक के मूड में हैं|

चाचा के हाथ में एक नुकीली सी चीज थी| उन्होंने दो पेड़ों के बीच की जमीन की ओर इशारा कर कहा कि वहीं छिपे हैं| वहां उसे अंदाजा न लगा कि कहां छिपाए हैं| उसने असहाय भाव से उनकी ओर देखा तो चाचा ने कहा- ‘जमीन को खोदना होगा तुम्हें, तब मिलेगा|’ वह उनके हाथ की नुकीली छड़ लेकर जोर से जमीन को खोदने लगा| पसीना बहने लगा| जमीन खोदने में थकान हो रही थी पर चुनौती थी| काफी जमीन खोदी तब जाकर उसे पांच आम एक पोटली में रखे मिले| चाचा हँसते हुए आए और बोले-

अब तुममें अपनी चीज को कहीं से भी खोदकर निकालने की हिम्मत रही है| यह हर बहादुर इनसान का लक्षण है कि वह कैसे भी अपना मकसद हासिल कर ले| हमारे यहां लोग ऐसे हैं कि किसी ने उनका कुछ ले लिया तो भी उन पर फर्क नहीं पड़ता| उल्लू कहीं के|’

उस दिन वह थका-हारा घर लौटा तो पिता को खाट पर लेटा देखा| वह आराम कर रहे थे| उसे पिता पर गुस्सा आया कि कैसा एकरस जीवन है इनका! रोज सुबह निकल जाते हैं, जानवरों की तरह खटते हैं, और सो जाते हैं| उसने मन ही मन सोचा कि वह उनके साथ किसी बात पर झगड़ा कर ले| उन्हें जता दे कि वह आत्मविश्वास और बहादुरी के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है| उनकी तरह वह नहीं है, भले ही उनके मध्य पिता और पुत्र का संबंध हो|

दो दिन पहले उसने उस लड़की से फिर पूछा था- ‘मैं तुम्हारे साथ शादी करूंगा आगे चलकर| तुम तैयार हो?’ लड़की ने उस दिन छोटा जूड़ा बना रखा था और उसमें लाल रंग का फूल लगा था| उस दिन उसने बैंगनी फूलदार कुर्ता पहना हुआ था और वह उसके चेहरे को देखता रह गया| वह उसे संसार की सबसे सुंदर कृति लगी| वह उससे राशन की दुकान के पास मिला था| लड़की ने तब कहा था- ‘तुम वक्त खराब कर रहे हो| जैसा तुम सोच रहे हो, वैसा हमारे यहां नहीं होता है|’

उसे लड़की की बात सुनकर गुस्सा आ गया| चाचा ने कहा था कि गुस्सा करना चाहिए| गुस्सा करने वाली कौमें अपने को सुरक्षित रखती हैं| उनसे सब डरते हैं| उसका मन था कि वह लड़की से शादी कर एक घर बनाएगा और वहां पर उसके साथ रहेगा| घर में वह एक नीम का पेड़ लगाने की कल्पना करता था, जिसकी डाल पर झूला डालने की सोच रहा था| पर वह उसे अस्वीकार रही थी, उसकी भावनाओं को अनदेखा कर रही थी| अपने अंदर पैदा होता गुस्सा उसे बहुत नई चीज लगी| उस दिन वह उसे सफलतापूर्वक नियंत्रित कर ले गया| उसका स्कूल, चाचा की नसीहतें और लड़की को लेकर दिन-रात सोचना… सब उसके जीवन को प्रभावित कर रहा था| उसने तय किया कि वह चाचा से कहेगा कि अब वही उन्हें सही तरीका बताएं ताकि वह लड़की को मना सके और कहीं एक छोटा घर लेकर उसके साथ रह सके| उसने मन ही मन हिसाब लगाया था कि अगर वह छोटी नौकरी कर लेगा तो पैसा आ ही जाएगा| चाचा से उसने उसी शाम कहा- ‘मैंने आपसे बताया था उस लड़की के बारे में| अब मैं उसके बिना नहीं रह पा रहा हूं| वह शायद डर रही है|’

चाचा के चेहरे पर फिर रहस्यमय मुस्कान आई| आईने का पिछला हिस्सा जैसे आईने से अलग होता है, वैसा ही उनका मन था जो सामने नजर आते हिस्से से अलग था|

वह हल्की गुनगुनी धूप का दिन था| वह हमेशा की तरह उस लड़की के घर के सामने से गुजर रहा था तो उसने देखा कि उसका छोटा भाई खेल रहा है| वह वहां नहीं थी| शायद घर के भीतर थी| पास ही एक बछड़ा घूम रहा था| वह उसके छोटे भाई, जो शायद पांच-छह साल का था, उसके पास तक आ गया| उसका मन आया कि वह उस बछड़े को वहां से भगा दे| अभी सोच ही रहा था कि उसके पिता एक डंडा लेकर बाहर निकले और उन्होंने बछड़े पर खींचकर मारा| वह उसकी टांग पर लगा और बछड़े को चोट आई| वह लंगड़ाता हुआ वहां से भाग गया| उसने भी वहां रुकना ठीक नहीं समझा तथा तेजी से साइकिल चलाता सर्राटे से निकल गया| उसे लगा कि उसकी पीठ पर लड़की के पिता की निगाहें चिपकी हैं| वह सीधे चाचा के पास आया जो उस वक्त नहाकर निकले थे और सफेद कुर्ते-पायजामे में बैठे फोन देख रहे थे| उसके पास कोई अन्य बात नहीं थी| कोई अन्य बात न होने के कारण उसने बेमन से पूरा किस्सा सुना दिया जो देखकर आया था| वह सामान्य सा किस्सा था| पर चाचा ने सुना तो उनकी आंखें लाल होने लगीं| उन्होंने फोन पकड़े-पकड़े उसे गुस्से से घूरकर देखा तो वह थोड़ा डर गया| चाचा ने उससे कहा- ‘मेरे साथ चलो| आज भगवान तुम्हारी मदद के लिए आ गया है| नाइंसाफी है एक मूक पशु के साथ| ऐसे में वीरों को चुप नहीं बैठना चाहिए|’

‘कहां चलूं| मुझे पिता ने आज दुकान पर आए सामान के हिसाब के लिए बुलाया है|’ उसने धीमे से कहा|

‘भाड़ में जाए वह सब| मुझे उस बछड़े को ढूंढना है| कहीं आसपास होगा| मौका हाथ से नहीं गंवाना चाहिए|’ वह चूल्हे पर उबलते पानी की तरह हो रहे थे|

उन्होंने एक मोटी-सी लाठी को भी उठा लिया था| उसे लगा कि शायद वह उस बछड़े के घायल होने से चिंतित हैं और उसकी मरहम-पट्टी करेंगे| वह अनमना-सा चल दिया| बछड़े को ढूंढने| कुछ दूर चलने पर वह एक छोटे से जंगल में पहुंचे| वह छोटा सा जंगल विविध वृक्षों से भरापूरा था| काफी पेड़ कट गए थे, पर अभी जंगल वहां बचा हुआ था| वहां चाचा को दूर से बछड़ा दिख गया जो अब भी बेफिक्र होकर गाय के झुंड के साथ चर रहा था|

चाचा ने उसे देखकर कहा– ‘ये लो लाठी और उसकी जान ले लो| यह वैसे भी ज्यादा जिंदा नहीं रहेगा| उस हरामी ने बहुत जोर से मारा है इसे|’ मैं सकपकाया| ये कैसा काम बोल रहे हैं चाचा| पर चाचा ने कहा– ‘बहादुरी का यह इम्तिहान आज पूरा करो| आज चूके तो मैं तुमसे कभी बात करूंगा|

‘पर मैं… मैं… मैं कैसे!’ वह हकला रहा था|

चाचा ने कहा- ‘मेरी आंखों में देखो| क्या तुम्हें लगता है कि मैं कुछ गलत कह रहा हूं! इन आंखों ने बहुत दुनिया देखी है| जो कह रहा हूं, वह तुम्हें करना होगा|’

उसकी भावनाओं को धक्का लगा| एक ओर निर्दोष घायल बछड़ा और दूसरी ओर चाचा के प्रति भक्ति| भक्ति हावी हो गई| वह तेजी से आगे बढ़ा और बछड़े के मस्तक और पीठ पर कसकर वार किया| उसे पराक्रमी होने का अजीब वहशियाना आनंद मिला| इससे अधिक आनंद तो इस बात को सोचकर मिला कि चाचा उसकी बढ़ती शक्ति व तेजस्वी शौर्य की सराहना कर रहे थे| पूरा शरीर गर्व से तन गया| बछड़ा भागते-भागते जमीन पर गिर पड़ा| पीछे से चाचा आए और उसे गौर से देखा| फिर बोले- ‘चलो काम पूरा हुआ| अब यहां रुकने का कोई लाभ नहीं|’ पर कुछ और भी होना बाकी था| सामने से वही लड़की भी आ रही थी| उसने सबकुछ देख लिया था और उसके मुंह से निकला था- ‘हाय… क्यों मारते हो बिचारे को|’ चाचा और उसने आंखों-आंखों में एक दूसरे को देखा और फिर चाचा ने लड़की को घूरकर कहा- ‘इसके साथ भागेगी| नहीं भागेगी तो मैं यहां रहने न दूंगा| ये तुझे चाहता है|’

लड़की डर के मारे कांप रही थी| वह जमीन पर गिरे बछड़े को देख रही थी| वह सुबकने लगी और वहां से भागती हुई चली गई| उसे चाचा पर गुस्सा आ रहा था| यह सब क्या कर रहे हैं! पर वह खुद भी भावोत्तेजना में लगभग मौन हो चुका था| दोनों घर लौट आए और पूरे रास्ते चाचा किसी को बड़बड़ाते हुए अपशब्द बोल रहे थे| आज एक तरफ उसका मन रोमांचित था तो दूसरी ओर बछड़े को मारते देख लिए जाने से शर्मिंदा| गर्व और शर्मिंदगी, दोनों तरफ से उसे जोर लगाकर खींचा जा रहा है| बीच में कभी उसका हृदय फट जाता तो कभी वह चाचा की आंखों में मौजूद प्रशंसा के भाव को याद कर प्रफुल्लित होता| वह उलझनों से बचने के लिए तीन दिन तक घर से बाहर नहीं निकला| पिता ने एक बार पूछा भी कि ‘क्या करता है घर में पड़े रहकर! बाहर से सामान ही ले आया कर!’ वह हल्की बीमारी और कमजोरी का बहाना बनाकर घर में ही रहा| चौथे दिन निकला तो देखा आसमान में सूरज तप रहा है और पेड़ों पर बौर आने के संकेत हैं| वह सीधा चाचा के घर गया जो एक अखबार में कुछ लाल निशान लगा रहे थे| उसे देख वह फिर खुशी से भर उठे और पास बिठाकर बोले- ‘धरती पर वीर पुत्रों के आगमन के ग्रह-योग भी बन चुके हैं| तुम अब विश्वकल्याण के लिए पुरुषार्थ धारण करने वाले हो|’

उसके दिमाग में उसी लड़की का चेहरा घूम रहा था| पर उसे विश्वकल्याण, पुरुषार्थ, विधर्मी, ग्रह-योग आदि शब्द सुनकर मजा आता था| मन ही मन सोचता था कि चाचा के पास ज्ञान का अक्षय भंडार है और वह निरंतर ज्ञान से जुड़ी बातों के बारे में सोचा करते हैं| पर उसे यह समझ में नहीं आता था कि उसे गौरव के साथ लज्जा की अनुभूति क्यों होती है| गौरव की अनुभूति स्वयं में पूर्ण क्यों नहीं है! चाचा से उसे पता चला कि जब वह तीन दिन घर में कैद था तब गांव में पंचायत बैठी थी और बछड़े को मारने, यानी गोकशी के अपराध में धोबी बस्ती के लोगों को बुलाया गया था|

लड़की के पिता को ग्यारह हजार रुपये भरने के लिए बोला गया था| यह सब बताने के बाद चाचा पता नहीं किसकिस देश की घटनाओं के बारे में बताने लगे और उसे लग रहा था कि इनका संबंध तो उसके परिवार से है, लड़की के परिवार से, गांव से| पर दुनिया के बारे में चाचा के ज्ञान पर मुग्ध हो रहा था|

वह उनके घर से थका हुआ सा निकला तो पीछे से चाचा ने कहा- ‘तुम जिस सुमार्ग पर हो वह वीरों का मार्ग है पर उसमें बाधाएं बहुत आती हैं| पर मैं हूं तुम्हारे साथ बाधा को हटाने के लिए|’ उसे अच्छा लगा कि चाचा ने उससे ये शब्द कहे| वह फिर से आत्मविश्वास से भर उठा| उसे चाचा से अपनी तारीफ सुनने की लत लग गई थी| वह चाहता था कि चाचा उसे विश्वास दिलाएं कि वह आगे के जीवन में महान काम करने जा रहा है| जिस दिन संसार में उसके भावी ऐतिहासिक योगदान की बात नहीं कहते थे, उसका मूड खराब होने लगता था| वह फिर उस लड़की के घर की तरफ से गुजरा तो वहां बहुत सन्नाटा था| कई बार घर के बाहर उसका भाई खेला करता था, पर आज दरवाजे ऐसे बंद थे जैसे वे घर छोड़कर चले गए हैं| बाहर की तरफ एक कुर्सी पड़ी रहती थी, वह भी न दिखी| वह घर के बाहर रुका, आसपास के माहौल का जायजा लिया| फिर उदास मन से चल दिया| उसे लड़की के जूड़े का लाल फूल और नरम गाल याद आ रहे थे| दूसरे दिन चाचा के साथ वह शहर गया और वहां उन्हें भाषण देते देखा| जब वह भाषण दे रहे थे तो उनका चेहरा लाल पड़ गया था| उनकी बातों में दुनिया में घट रही घटनाओं का बहुत वर्णन होता था| भाषण में उन्होंने कहा-

‘भूमंडल पर हमारे देश का ही धर्म ऐसा है जिसमें भगवान भी शस्त्रधारी है| इसलिए हम चक्रसुदर्शन, गदा, त्रिशूल वाले ईश्वर की संतान हैं|’ उसने इस बात पर तो ध्यान ही न दिया था| ईसाई धर्म, इस्लाम, बौद्ध या जैनियों के भगवान को उसने कभी शस्त्रधारी न देखा था| उसे चाचा के ज्ञान पर फख्र हुआ और उनका शिष्य होने पर भी|

शहर से लौटते समय चाचा ने उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा– ‘तुम अब लेखन का अभ्यास करो| कल से| मैं तुम्हें कुछ बोलूंगा और तुम लिखते जाना| फिर मैं उस कागज को फाड़कर फेंक दूंगा|’

वह मान गया| उसने सोचा कि लिखने में क्या जाता है! वह तो बाएं हाथ का काम है| अगले दिन उसने वैसा ही लिखा जैसा चाचा चाहते थे| पत्र में चाचा ने बहुत भड़काऊ बातें लिखवाईं| घर और देश छोड़ने की धमकी वाली बातें| उसने बीच में हाथ रोककर पूछा भी कि वह किसे भेजेंगे| उसे पत्र लिखने में कोई बुराई न लगी पर उसे यह लगा कि पत्र जिसे मिलेगा वह जरूर परेशान हो जाएगा| चाचा ने हँसकर कहा- ‘अरे यह तो तुम्हारी प्रैक्टिस के लिए है| शब्द और लेखन से भी तुम्हें लोगों को नेतृत्व प्रदान करना होगा| हो सकता है कि तुम्हें किसी का धमकीभरा पत्र मिले और तुम तब पत्र से ही जवाब दोगे| इसके लिए अभ्यास करा रहा हूं| यह तुम्हारी नसों में वीरता के भाव को बढ़ाएगा| तुम शब्दों का सही इस्तेमाल करना सीख जाओगे|’

अगाध श्रद्धा में वह चाचा की बात को मान गया| उस दिन भी चाचा ने उसे यकीन दिलाया था कि वह गांव के सामान्य लोगों से अलग किसी महान कार्य के लिए धरती पर आया है| उसने लगभग दस पत्र चाचा के लिए लिखे तो उसे लगा कि वह सचमुच बहुत खुश है| युद्ध के मोर्चे पर तैनात सेनापति जैसा है| नाचता-गाता वह चाचा के घर से निकला तो रास्ते में उसका दोस्त मिला- ‘उसने पूछा कि क्या बात है| आज बहुत सीना चौड़ाकर घूम रहे हो|’ उसने कहा- ‘तुम्हें हर बात समझ में न आएगी| मैं समझा भी न पाऊंगा| उसके लिए बहादुरी का भाव जगाना पड़ेगा| प्रैक्टिस करनी पड़ेगी|’

दोस्त को उसकी बातें अजीब लगीं और वह नासमझों की तरह सिर हिलाता चला गया| वह फिर लड़की के घर के सामने से निकला| आज थोड़ी हलचल थी| घर का दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था जिसे देखकर लगता था कि वह घर के भीतर है|

उसे याद आया कि स्कूल की परीक्षाएं नजदीक आ रही हैं, अब एक हफ्ते घर बैठकर तैयारी करनी होगी| पिछली बार ही गणित में फेल होते-होते बचा था| वह घर गया और पढ़ाई में जुट गया| उसे अच्छी नौकरी की चिंता सताने लगी थी और जिस घर में उसे लड़की के साथ रहना था, उसके लिए पैसे जुटाने थे|

चार दिन बाद वह फिर से चाचा के घर जा रहा था तो वह जंगल वाले रास्ते से घूमता हुआ गया| उसका मन आया कि वह परीक्षाओं से पहले थोड़ा ताजी हवा खा ले|

वह जंगल में कुछ दूर तक चलता गया| पेड़ों की पत्तियों से धूप छनकर आ रही थी और थोड़े से मवेशी वहां घूम रहे थे| एक नीलगाय भी पेड़ों के पीछे से झांक रही थी| मोरों की आवाज सुनी जा सकती थी और कुछ मैना आपस में जोर से लड़ रही थीं| तभी वह चौंक गया| सामने से ही वह चली आ रही थी अपने छोटे भाई के साथ| आज उसने नीला कुर्ता पहना हुआ था और उसके भाई ने काले रंग की कमीज| वह नर्वस सा हो गया पर अपने को संभाला| पास आते ही वह रुका और बोला- ‘तुम क्यों मेरे साथ ऐसा बरताव कर रही हो| कुछ तो बात करो|’ वह लड़की रुकी और सहमेपन के साथ उसे देखते हुए बोली-

‘तुम बहुत बहादुर हो न| गांव छोड़कर जा रहे हैं हम| तुमसे अच्छे तो ये निरीह लोग हैं जो जीना सिखाते हैं| किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते|’ फिर वह अपने भाई के हाथों को खींचती हुई आगे बढ़ गई| पांच कदम चलकर वह मुड़ी और बोली-

तुम लोगों की धमकियों ने आज हमारा घर हमसे छीन लिया| स्कूल भी| तुम बहादुर बनने के स्थान पर यदि मेरे पास कायर की तरह आते तो शायद हम दोनों…|’

एक अधूरा वाक्य बोलते समय उसकी आंखों में आंसू तैर रहे थे| उसके शरीर में सिहरन थी| उसके आखिरी शब्द तो शायद हम दोनों… उसके कानों में गूंज रहे थे| उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह गांव छोड़कर जाने और इसके लिए उसे ही क्यों अपराधी साबित कर रही है| उसका मन आया कि दौड़कर लड़की और उसके भाई का रास्ता रोक ले| पूरी बात पूछे| लेकिन उसे लगा कि उसके पैर वहीं मिट्टी में धंस रहे हैं और दिमाग पर भारी बर्फ रख दी गई है| वह उसे जाता देखता रहा और फिर कुछ देर वहीं खड़े रहने के बाद वह भी जंगल से बाहर आया| घर पहुंचकर उसे मां से पता चला कि धोबी बस्ती में कुछ धमकी भरे पत्र भेजे गए थे कि गांव दस दिन में खाली कर दो वरना घरों में आग लगा देंगे| पुलिस के पास शिकायत न करने की धमकी भी दी गई थी और इसीलिए पत्र भेजने वाले को पकड़ना असंभव है| पत्र रात के समय घरों में पत्थर बांधकर फेंके गए थे|

उसका दिमाग चकरा गया और वह सिर पकड़कर बैठ गया| मां जो बातें बता रही थीं वह सब तो चाचा ने उससे ही लिखवाई थीं| तो क्या चाचा ने ही वह पत्र रात में फिंकवाए! उसे बार-बार लड़की और उसके भाई का रुआंसा चेहरा याद आ रहा था| उनकी आंखों में कातरता थी जो ठीक उस दिन उस बछड़े की आंखों में थी| उसे लगा कि वह किसी नदी में डूब रहा है| या किसी पहाड़ी से नीचे गिरने वाला है| मन आया कि भागकर सब सच बता दे उस लड़की को| पर वह तो उससे बात भी नहीं करना चाहती| उसने जरूर उसकी राइटिंग को समझ लिया होगा| केवल वही जानती थी कि वह पत्र उसी के हाथ से लिखा गया है पर वह डर के मारे मुंह नहीं खोल सकती थी|

वह भागकर घर से निकला और उसकी बस्ती की तरफ चलने लगा| तीन छोटे ट्रक और ट्रैक्टर खड़े थे| उनपर सामान लादा जा चुका था और शायद कुछ लोग जा भी चुके थे| माहौल में तनाव था| गांव के कुछ लोग समझाने आए थे पर वे सब बहुत डरे हुए थे| किसी से बात नहीं कर रहे थे| सिर झुकाकर अपना सामान रखते जा रहे थे| बच्चों को पता नहीं था कि क्यों उन्हें अचानक मां-बाप ने सुबह तैयार कर गाड़ियों में बिठा दिया है| उसे संयोग से लड़की दिखी जिसने आज सफेद कुर्ता पहना था और जूड़े में कोई फूल न था| वह परिवार के लोगों से घिरी थी और ट्रक में बैठने जा रही थी| वह आगे की तरफ गया ताकि वह उसे देख ले| वह आंखों में ही उससे माफी मांग ले| उसने जोर से कुछ कहा ताकि उसका ध्यान खींच सके और ऐसा हुआ भी| वह गाड़ी में बैठने से पहले घूमी और उसकी ओर देखा| उसकी आंखों में ठंडापन था जिसे देख वह सिहर गया| उसकी आंखों में तिरस्कार होता तो भी शायद उसे इतना बुरा न लगता|

उसे लगा कि अन्याय सहकर वह उसे सबसे बड़ी सजा दे रही है| वह बहादुर बनने चला था पर उसने उस लड़की को हमेशा के लिए खो दिया| ट्रक स्टार्ट हुआ तो उसे लगा कि उसका गला सूख रहा है|

वह धूल उड़ाता चला गया और उस लड़की का सूना बंद मकान अब उसे घूर रहा था| वह घर अब उसी लड़की के चेहरे में बदल गया और वह भी उसे ठंडी भावहीन निगाह से घूर रहा था| वह भागकर चाचा के पास गया ताकि वह डूबते मन को और डूबने से बचा सके| पता चला कि चाचा घर में नहीं हैं और उसके लिए एक पत्र छोड़ गए थे| उस पत्र में लिखा था- ‘तुम्हारी वीरता का एक चरण पूरा हुआ| हम अपने उद्देश्य में सफल रहे और अफगानिस्तान में जो हो रहा है, उसका प्रतिशोध ले लिया| आगे भी क्या करना है, यह मैं लौटकर बताऊंगा|’ पत्र के अंत में तुम्हारा चाचा लिखा था|

उसका मन आया कि पत्र फाड़कर फेंक दे| उसे वीरता जैसे शब्द पर लज्जा आ रही थी और वह शब्द जैसे काटने दौड़ रहा था| उसका अपराध बोध किसी बाढ़ की तरह उसे बहा ले जाना चाहता था| मरा बछड़ा, उस लड़की व भाई की कातर रुआंसी आंखें और खाली मकान सब उसकी चेतना पर हावी हो रहे थे| वह भागता हुआ जंगल तक गया और थोड़ी देर उसी जगह खड़ा रहा जहां आखिरी बार उससे मिला था| उसे याद आया कि चाचा ने बिना बताए उसके पत्र का प्रयोग किया और अब गायब हो गए| वह उनकी प्रतीक्षा करता रहा और एक दिन उनके लौटने की खबर सुनकर उनके घर जा पहुंचा| उसे देखकर उनकी आंखें चमकीं और बोले- आ जाओ मेरे असली शेर| तुम अब इस समाज के जहर को काटने वाले अमृतपुत्र बन चुके हो| हम मिलकर समाज को विषहीन कर देंगे| यह कहते हुए उनके पान के रंग में रंगे दांत दिख रहे थे और उसे उबकाई आ रही थी| उसके मन में लड़की का चेहरा कौंध रहा था| ठंडी निगाहें उसका पीछा कर रही थीं| वह उसकी चाचा से आखिरी मुलाकात थी|

छह महीने बाद वह गांव से बाहर आ गया| शहर में| बहाना तो पढ़ाई का था पर उसे लगता था कि वह अगर गांव में रहा तो किसी दिन आत्महत्या कर लेगा| उसके एक सहपाठी ने पास से गुजरने वाली रेल की पटरी पर जान दी थी| वह भी एक दिन पटरियों के पास जाकर देर तक सोचता रहा कि क्या किया जाए| दर्दनाक मौत की कल्पना कर वह डर गया और उसे लगा कि खुदकुशी करने की हिम्मत उसमें नहीं है| कल्पना में धड़ से अलग सिर को पटरियों पर तड़पते देखा तो उसकी आत्मा छलनी हो गई| उसे हिम्मत न होने की बात सोचकर खुशी महसूस हुई| उसी दिन उसने तय किया कि वह कायरों की तरह जीवित रहेगा और बहादुरों की पोल खोलेगा| अपने को कायर मनवाने के लिए हर प्रयास करेगा| वीरों-पराक्रमियों के राज पर से पर्दा उठने के बाद वह खुद पर लज्जित रहता था| उस लज्जा से बचने के लिए वह अब हर प्रकार से स्वयं को कायर बनाना चाहता था| वह कायरता का उपासक था| जब भी पूरा शहर उसे कायर कहकर उसका मजाक उड़ाता, उसे लगता कि वह देश की सेवा कर रहा है| आखिर जिन्हें चाचा ने कायर कहा था, उन्हीं लोगों के कारण उस गांव में शांति थी, जिसमें कभी एक बैंगनी फूलदार कुर्ते वाली लड़की अपने जूड़े में लाल फूल खोंसकर घूमती थी|

सुबह उठता तो सोचता कि आज बहादुरों का मजाक बनाने के लिए उसे कौन से काम करने हैं! एक बार किसी शौर्य दिवस पर वह सफेद गुलाब के फूल लेकर एक श्लोक को बदलकरकायर भोग्या वसुंधराबना दिया और उसका बारबार पाठ करने लगा|

कई बार तो कसाइयों वाले इलाके में जाकर जोर से रोने का नाटक करता है, किसी गाय के बछड़े को देखकर बहुत अधिक भयभीय दिखने लगता| लोग कहते कि वह खुद को कायर साबित करने का काम बहुत बहादुरी से करता है| यह भी कहते कि उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ गई है और किसी बात का बदला पूरे समाज से ले रहा है| अपने से भी बदला ले रहा है| वह इन बातों पर भी हँसता था| फिर गंभीर होकर कहता था कि कायर लोग ही देशभक्त होते हैं और समाज की रक्षा करते हैं| यह कहने के साथ ही उसकी गंभीरता गुम हो जाती और वह ‘हो-हो..हा-हा’ कर जोर से हँसता हुआ किसी गली में गुम हो जाता था|

संपर्क : 403, सुमित टॉवर, ओेक्स हाइट्स, सेक्टर-86, फरीदाबाद, हरियाणा-121002 मो. 9711312374