वरिष्ठ कवि। अद्यतन कविता संग्रह , ‘न संगीत न फूल’, गजल संग्रह ‘बात करते हैं’।

इसी जीवन में

इसी हवा में
मैंने अपनी हवा खोई है
इसी पानी में
अपना पानी
इसी चांदनी में
अपनी चांदनी
इसी जीवन में
मेरा जीवन गुम
हवा, पानी, चांदनी तुम।

और लोग

कौन-सा जूता सही रहेगा
मेरे पैर के लिए
कौन-सी जगह ठीक रहेगी
मेरे सैर के लिए
मैं यही निश्चित नहीं कर सका
आज तक
और लोग
दुनिया घूमकर आ गए।

गांठ

फिर से अजनबी हो सकते हैं
फिर से दोस्त भी हो सकते हैं
फिर से दोस्त होना चाहेंगे तो
रस्सी में गांठ कबूल करनी होगी
जो छुपेगी नहीं
यूं मैंने ऐसी भी रस्सियां देखी हैं
जिनमें गांठें ही गांठें हैं।

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