युवा कवि। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शोधार्थी।

एक अलगनी पर दो चिड़िया

1.
धीरे-धीरे हमारे पास
केवल अपने लोगों की
तस्वीर बचती है ।

2.
कमी भरने वालों की
कमी का नाम मृत्यु है
उसका विकल्प न स्मृति है न चेतना…

3.
कानी उंगली में लगी चोट
पांचों उंगलियों में दर्द देती है।

4.
सुख गरीब है
यातना के पास बहत्तर कपड़े हैं।

5.
हम जो दिन नहीं देखना चाहते
उसके सपने
आंख खोले दिन में भी आ जाते हैं।

6.
जिंदगी के अस्थमा में
मौत खोया हुआ इन्हेलर है।

7.
जिंदगी के आख़िरी पन्ने का
आख़िरी पैराग्राफ पढ़ते समय
अचानक चश्मे की रोशनी बढ़ जाती है
एक किरण से चौंधियाई आंख
छू लेते हैं हम मौत।

8.
सबसे अमौखिक दुख
सबसे अकेले भोगना पड़ता है
हर दुख आत्महत्या से पहले
चिट्ठी नहीं लिख पाता
कहने से दुख नहीं मिटता
केवल उसके शब्दकोश के शब्द कम हो जाते हैं।

मृत्यु

धीरे-धीरे अप्रासंगिक हो जाऊंगा मैं
तस्वीरों की धूल मिट्टी हो जाएगी
अभी खिला हुआ मासूम फूल
अगले पल मुरझाकर झरेगा
मेरे चारों ओर बिखरे कागज और किताबें
केवल याद भर हैं
मेरी याददाश्त खोते ही वे हो जाएंगी रद्दी
हर बात पीली पड़ जाएगी
हर चेहरा धुँधला जाएगा
तुम्हारे एक बार और आने की
सनसनी खबर भी एक दिन
बासी अलिखित असंरक्षित होकर
समाप्त हो जाएगी

दादी के मरने के बाद
जो बचा रखे थे नाखून
और चुन रखे थे जो
नहीं हैं अब वे सफेद टूटे बाल
न पहले के कंचे-गोली बचे
न किताबों के बीच छिपाया मोरपंख
पुराने जूते का फीता
जो किसी नए जूते के फीता खोने पर लगाना था
नहीं है अब वह भी
आंखों के सामने जिस चवन्नी-अठन्नी और
पचास पैसे को खत्म होने के डर से बचाया था
वे भी बिना खर्च हुए, नहीं बचे
बचपन की छोटी-मोटी जो शरारतें थीं
वे भी पेंसिल-रबड़ की तरह
घिस-घिस कर खत्म हो गईं

सब कुछ खत्म हो जाता है
हर शुरुआत का अंत होता है
जिसे-जिसे बचा कर रखा है वे सब गुम होंगे
खुद को जिन चीजों में, जिन लोगों में
जिन एहसासों में
थोड़ा-थोड़ा कम-ज्यादा बंटा हुआ पाया
आखिरी तक उनमें

खुद को खत्म होता भी देख लिया
कहीं पर, किसी में
बचा रहना जीवन है
और धीरे-धीरे खत्म होना मृत्यु।

संपर्क : 208 दिलेजाकपुर, निकट डॉ एस पी अग्रवाल, गोरखपुर-273001, उत्तर प्रदेश। ईमेल – yadavketan61@gmail.com