वरिष्ठ लेखक।अध्यापन से सेवानिवृत्ति के बाद स्वतंत्र लेखन।लगभग डेढ़ दर्जन पुस्तकें प्रकाशित।अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत।
जब वे जगमगाती सड़कों पर
हाथों में जलती मोमबत्तियां लिए
कदमताल कर रहे थे
मैं एक अंधेरे कमरे में रो रहा था
मेरे पास
अवसर के अनुकूल पोशाक नहीं थी
चेहरा भी दर्शनीय नहीं था
मेरा दुख नहीं समझते थे वे
उन्होंने मुझे नपुंसक कहा
क्रांति विरोधी कहा
मेरी नस्ल को गाली दी
मेरा रोना थम नहीं रहा था
कर्मकांड समाप्त करने के बाद
वे लौट गए
अपने अपने घरों को
पटियाला पैग लगाया
बढ़िया खाना खाया
भूल गए वे किस उद्देश्य से गए थे
मैं रात भर अंधेरे से लड़ता रहा
मेरे पास मोमबत्ती नहीं थी
एक जुगनू ने मेरा साथ दिया
मैं उठकर बैठ गया
अब मैं रो नहीं रहा था
जानता था
जुगनू नाटक नहीं करता।
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