वेरा ब्रिटेन (१८९३१९७०)

नारीवादी लेखिका कवि और प्रथम विश्व युद्ध में मिले अनुभवों पर आधारित संस्मरण टेस्टामेंट ऑफ़ यूथ१९३३ में बेस्ट सेलर।इस पर फिल्म भी बनी है।

अस्पताल में सेहतगाह

सारी दुनिया में मची उथल-पुथल से
खो दिया तुमने अपना सब कुछ
बर्दाश्त की यातनाएं, खूब प्रार्थनाएं कीं
सब कुछ रहा था बेअसर, फिजूल

प्रेम की जब होती है अकाल मृत्यु
और आशाएं नहीं होती हैं पुनर्जीवित
सब कुछ स्तंभित कर देता है तुम्हें
जब उदास दिन करते हैं लहूलुहान

तुम्हारी महत्वाकांक्षाओं के चीखते जिस्म
सहनशक्ति बढ़ाने वाला स्वाभिमान भी
लुप्त हो जाता है तब किसी अज्ञातवास में!
चकनाचूर हो जाते हैं मायावी स्वप्नलोक

सपनों के खंडहर ख़ाक में होते हैं तब्दील
तब सिद्ध होता है तुम्हारा अंतिम विकल्प
अस्पतालों में बनी वरदानी सेहतगाहें
क्योंकि खो दिया था तुमने अपना सब कुछ!

फिर दुर्भाग्य थाह लेता है दर्द के चरम का
भूसे की मानिंद उड़ते हैं आशाओं के गुबार
त्रासद के कल्मष भरे निवासों की बस्तियां
अस्पताल में बनी दर्द-निवारक सेहतगाहें
तभी होते हैं दुखियारों के अभ्यारण्य!
सच, प्रार्थना और दुआओं के अंतिम ठौर।

शायद

(वेरा की यह कविता अपने मंगेतर रोलैंड ऑब्रे लीटन को समर्पित है जो १९१५ के युद्ध में शहीद हुआ था)

सूर्य फिर किसी दिन चमकेगा
प्रखर, दहकता अग्निपुंज बनकर
अवश्य देख सकूंगी मैं कि –
आसमान अब भी है नीलवर्णी

महसूस करूंगी एक बार फिर
तबाह नहीं हूँ मैं अब भी
हालांकि सिर्फ तुम ही हो मेरे जुनून
शायद पैरों के नीचे मौजूद
सुनहरी घास के खूबसूरत मैदान
बसंत की कुनकुनी धूप का वक्त!
महसूस कराएंगे मुझे खुशियां
महकेंगे मई में खिले श्वेत पुष्प
हालांकि अब तुम वहां नहीं हो न!
हां, कह दिया है मुझे अलविदा
शायद गर्मियों में जंगल झिलमिलाएं
आतिशी रोशनियों से हो जगमग!
और खिलखिलाएं गहरे सुर्ख गुलाब
ख़ुशी से झूमेंगी गर्मियों में फसलें

हालांकि तब तुम वहां नहीं होंगे न!
शायद एक दिन नहीं थरथराऊंगी
असहनीय दर्द से मैं तब
तुम सुन रहे हो न मेरे प्रिय!

आहिस्ता दम तोड़ते बरस तो देखकर
न सुन सकूं फिर क्रिसमस के गीत!
हालांकि नहीं सुन सकोगे तुम भी वह गीत
लेकिन रहमदिल वक्त भी शायद
पुनर्जीवित कर दे खुशियों की सौगातें
फिर भी नहीं महसूस कर सकूंगी मैं
ज़र्रा-ज़र्रा बिखर चुका है मेरा दिल
अरसा पहले तुम्हें खोकर मेरे प्रिय!

क्योंकि मैंने तुम्हें हमेशा के लिए खो दिया था

(अपने प्रेमी, भाई और दो करीबी मित्रों को वेरा ब्रिटेन ने पहले विश्व युद्ध के दौरान खो दिया था।उनकी कविताओं में आक्रोश और पीड़ा युवाओं का जुनून बनकर मुखरित हुई थी ताकि उनकी मृत्यु असारता याद रखी जा सके।इस कविता के दर्द को आज भी महसूस किया जाता है।)

खोकर तुम्हें, मैं अपने कुछ लम्हे बिताऊंगी
तुम्हारे साथ तुम्हारी ही याद में
अब भी हैं कई यादें मेरे भीतर, फिर भी
क्यों नजर नहीं आता मेरा विजयोल्लास और गर्व?
और मोहभंग के आहिस्ता आहिस्ता मिटते दाग
रेंगते रहेंगे तलाश की हर नई कोशिश पर
हासिल नहीं होगा किसी भी नए प्रयास में
क्योंकि मैंने तुम्हें हमेशा के लिए खो दिया है।

द्वारा साकार दिवसे, सीब्लॉक, फ़्लैट नंबर७०२साईं लक्जूरिया, अक्षरा इंटरनेशनल स्कूल के पास, वाकड, पुणे४११०५७ मो. ९८२७४७१७४३