युवा कवि। विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में शोधछात्र।

प्रेम हुआ

प्रेम आंधी की तरह नहीं आया
और न ही बारिश की तरह
प्रेम पूस की रात में
कोहरे की तरह आया
मैं गेहूं की फसल बन खड़ा रहा
प्रेम ओस बन रेजा रेजा
मेरी पत्तियों पर बिखर गया
सुकोमल स्पर्श और हल्केपन से मैं झुकता गया
ओस-बूंदें मेरी जड़ों को सींचने लगीं
सुबह हुई, धूप हुई
प्रेम से नहाया
मैं हरा-भरा ओस-सा महकता खिलता रहा।

तुम्हारी आंखें

तुम्हारी छोटी छोटी आंखें
न हिरणी-सी हैं, न चांद-सी
न काली हैं, न सतरंगी, न भगवा
तुम्हारी आंखें इस सदी के अंधेरे कमरे में
झरोखे से आई रोशनी के दीप्ति-कण की तरह हैं
जबकि बड़ी आंखों को
सुंदर कहने का समय है यह

तुम्हारी आंखों ने
प्रेम देखा तो उससे आत्मा को सींच लिया
जंगल देखा, पहाड़ देखा
तालाब देखा
तो लिखा बचाओ
शहर देखा तो लिखा शांति
संसद देखा तो लिखा खेल
बुलडोजर देखा तो लिखा घर

तुमने जब-जब देखा
सुंदर देखा
इस तरह देखना
तुम्हारी आंखों को सुंदर बनाता है।

रोना

रोने की फेहरिस्त में
सबसे आगे थे बच्चे
बच्चे रोते तो दहाड़ के रोते
और मुस्कराता था आंगन
उन्हें चुप कराने के लिए
बनना होता हाथी और घोड़े
लोरियों संग लंबे सफर पर
निकलना होता

अब जब भी रोते हैं बच्चे
उन्हें दिया जाता है मोबाइल
फेहरिस्त अब बड़ों की है
वे रोते हैं अपनी चुप्पियों में
और शोर मचाता है आंगन।

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