लक्ष्मण को घर में सब प्रेम से लिच्छू कहते हैं। मां, पिता, दादा और बड़ी बहन किसना के साथ रहने वाला लिच्छू दस बरस का होने वाला है, पर आज भी घर में सबके स्नेह का पात्र है। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। पिता एक फैक्ट्री में चौकीदारी करते हैं और मां घरों में झाडू-पोंछे का काम कर घर चलाती है।

आज शाम को शीतलाष्टमी के मेले में जाने की ख़बर से लिच्छू बहुत ख़ुश है। लिच्छू ने कहा, ‘मां, सब मेले में नए कपड़े पहनकर जाते हैं, मुझे भी नई निक्कर दिलाओ न।’ इससे पहले कि उसके पिता कुछ बोलते, लिच्छू की मां ने अपनी मालकिन द्वारा होली पर दिए हुए एक पुरानी पैंट निकाली। पैंट पीछे से घिस कर बस फटने की ही स्थिति में थी, इसलिए मां ने लिच्छू के फटी निक्कर को काटकर पैंट के पीछे दोनों ओर पैबंद लगा दिए।

लिच्छू ने पैंट देखकर कहा – ‘मां, यह क्या है, पीछे तो इसमें आपने कारी लगा दी है।’ मां ने झट से कहा, ‘न बेटा! यह कारी नहीं है। हमारी मालकिन के साहब जब किसी बड़े मौके पर कोई कोट पहनते हैं तो उसमें भी दोनों कोहनियों पर ऐसे ही पैबंद लगे होते हैं। यह पैबंद नहीं बेटा, आज का फैशन है। मैंने तेरे लिए इस पैंट को फैशनेबल बना दिया है, ताकि मेरा बेटा भी राजकुमार की तरह लगे!

लिच्छू खुश हो गया, पर मां की आंखें डबडबा गईं।

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