कवि, कथाकार और समीक्षक। बाल कविता संग्रह ‘इ इत्ता है, उ उत्ता है’ और ‘कक्षा में साहित्य’ (समीक्षा)। संप्रति : ‘गवर्नमेंट कॉलेज आॉव एडूकेशन, बानीपुर’ नॉर्थ 24 परगना, पश्चिम बंगाल, में एसोसिएट प्रोफेसर।
जूता: पांच कविताएँ
1.
वे
जाने जाते हैं
अपने जूतों के लिए
वे
पहचाने जाते हैं
अपने जूतों के लिए
वे
हँसते जाते हैं
अपने जूतों के लिए
वे
रोते जाते हैं
अपने जूतों के लिए
वे
जीते जाते हैं
अपने जूतों के लिए
लेकिन
उनके जूतों के लिए
जीते जी मारा जाता हूँ मैं।
2.
उनका नया जूता
अक्सर काट देता है
उनके पांव
और मैं
अपने पुराने फटे जूतों में
खुद ही
रह जाता हूँ कटकर।
3.
वे
पहनते हैं जूते
मैं
खाता हूँ।
4.
वे
रोज गिनते हैं अपने जूते
मैं
रोज भूल जाता हूँ
उनकी मार।
5.
वे
जब भी आते हैं
हमेशा अपने जूतों पर इतराते हैं
और मैं
अपने कपड़े उतारकर
हीं हीं करता हूँ
वे
जब भी मिलते हैं
हमेशा अपने जूतों पर बतियाते हैं
और मैं
गले तक थूक में लिथड़कर
खीं खीं करता हूँ
वे
हमेशा अपने जूतों से जुतियाकर
मेरी खाल उतार ले जाते हैं
और मैं
घोंघा बसंत की तरह हाथ जोड़कर
जी जी करता हूँ।
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