यक़ीनन महात्मा गांधी बहुत दोहराया गया विषय है, परंतु चरखा कातने से लेकर लेखन तक और दलित सुधार, गौ रक्षा, ग्राम स्वराज, प्राकृतिक चिकित्सा, अंत्योदय और श्रम की पूंजी के समर्थन से लेकर सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह तक उनके व्यक्तित्व के इतने कोण हैं। इतनी संभावनाएं हैं कि कुछ नया और कुछ बेहतर समझ लेने और समझा देने की गुंजाइश कभी ख़त्म नहीं हो सकती। भारतीय इतिहास में शब्द की शक्ति को समग्रता के साथ जीने का साहस करने वाले दक्षिण अफ्रीका के अनवेलकम विजिटर-मोहनदास करमचंद गांधी पर बार-बार चर्चा इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि अतीत में वे जितने ज़रूरी थे, वर्तमान और भविष्य में भी उतने ही प्रासंगिक हैं। बशर्ते कि हम उनके को हिस्सो में नहीं, समग्रता में देख सकें। प्रस्तुत है इसी दिशा में भारतीय भाषा परिषद् का एक प्रयास।

वाचन : मधु सिंह
ध्वनि संयोजन : अनुपमा ऋतु
दृश्य संयोजन एवं संपादन : उपमा ऋचा
विशेष आभार : कनु गांधी एवं एलप्स बॉक्स एनीमेशन वीडियोज 
प्रस्तुति : वागर्थ भारतीय भाषा परिषद् कोलकाता