बैग में कुछ नकदी कागजात के साथ नौ सौ रुपये थे।मुझे रुपयों से ज्यादा कागजातों की फ्रिक थी।जहां उच्चकों ने मेरा बैग उडाया था, उसके आधा किलोमीटर की दूरी पर किशनगंज पुलिस चौकी थी।रिपोर्ट दर्ज कराने की नीयत से मैंने थानेदार से कहा, ‘कागजात बेहद जरूरी हैं।मेरी गुजारिश है कि जितनी जल्दी हो सके, बरामद करने की कोशिश करें।’ थानेदार ने मेरी रिपोर्ट दर्ज नहीं की।बेरुखी से बोला, ‘इलाका मेरे क्षेत्र में नहीं आता।आप साहेबगंज जाइए।’ मैं निराश होकर साहेबगंज थाना आया।उसने भी वही बात देाहराई, ‘आप वहीं जाइए।’
‘उन्होंने तो आपके यहां दर्ज करवाने को कहा है।’
‘कहने से क्या होता है।इलाका उनका है।’
‘आप कहते हैं उनका है, वे कहते हैं कि आपका है।बताइए मैं कहां जाऊं?’ मैं झल्लाया।कुछ कदम चलने के बाद कुछ सोचकर मैं वापस थाने आया।
‘साहब, उसमें नौ हजार रुपये थे।’
‘नौ हजार!’ थानेदार चौंका, ‘यह आपने पहले क्यों नहीं बताया।’
थानेदार आननफानन में दस उच्चकों को पकडकर थाने लाया।
‘क्यों बे, रुपये कहां हैं?’
‘साहब, अनिल ने उडाए हैं।’ एक उच्चके ने बताया।घर पर थानेदार को देखकर अनिल ने बिना हीलाहवाली के कागजात सहित रुपयों का बैग लाकर थानेदार को सौंप दिया।
‘नौ सौ? बाकी कहां गए?’ थानेदार उखड़ा।
‘साहब, मुझे नही मालूम।मैंने खोलकर देखा भी नहीं।’
‘झूठ बोलता है।’ थानेदार ने उसके चूतड़ पर दो बेंत जमाई।वह कराह उठा।
‘लैाटकर आता हॅू तब तेरी खबर लेता हूँ।’ थानेदार लौट आया।
‘रुपये तो नहीं मिले, कागजात हैं।देख लीजिए, सही सलामत आप ही के हैं न?’
‘धन्यवाद थानेदार साहब।’
कहकर जैसे ही जाने के लिए तैयार हुआ, कुछ सोचकर रुक गया। ‘रुपये नौ सौ ही थे थानेदार साहेब!’ थानेदार की खीझ देखने लायक थी।
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बहुत ही सुन्दर।