उन्हें वर्तमान राजनीति का चाणक्य कहा जाता था। वे आज एक चुनाव क्षेत्र में उम्मीदवार का चयन करने आए थे। सबसे पहले सतपाल जी से मिले । स्वाभिमानी सतपाल जी ने अपने बारे में इतना ही बताया था – ‘सर, पिछले दस वर्षो से मैंने सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का स्तर निजी विद्यालयों से भी बेहतर कर दिया है । कई स्थानों पर सिंचाई और पेयजल की व्यवस्था करवाई है। और भी बहुत कुछ करने की इच्छा है। यदि उचित समझें तो सेवा का अवसर दें।’
उनके जाने के बाद दबंग व्यक्तित्व के विभूति नारायण जी आए। वे पार्टी के जिला अध्यक्ष थे। उन्होंने कहा- ‘सर, थोड़ा कम पढ़े-लिखे हैं । बड़ी मेहनत कर ठेकेदारी के धंधे में आए। आज ईश्वर के आशीर्वाद से किसी चीज की कमी नहीं है। गरीबों के लिए बहुत कुछ करने की चाहत है।’
अंत में आए सुबोध नारायण ने पूरा झुक कर चरण स्पर्श कर हाथ जोड़ते हुए कहा था, ‘प्रणाम सर! कई साल से पार्टी का काम कर रहे हैं सर। कुल डेढ़ लाख वोटर में चालीस हज़ार हमारी ही बिरादरी के हैं, जिसके हम अध्यक्ष हैं। तीस हज़ार मुस्लिम है, अच्छा संबंध है उनसे सर। पच्चीस हज़ार दलित आदिवासी हैं, जिन्हें हैंडल करने वाला उनका चतुर नेता अपना ही दोस्त है। बाकी विरोधी खेमे में जिनको टिकट मिला है, उनकी पूरी हिस्ट्री हमारे पास है। सबसे बड़ी बात यह है सर, कि लगभग सभी बूथ पर अपने लड़के हैं। आप बढ़िया से पूछताछ कर सकते हैं सर।’ कहते हुए उनकी आंखें धूर्त सियार सी चमकने लगी थीं।
अध्यक्ष जी भी मुस्कुरा दिए। जाते हुए उन्होंने लिस्ट में उस क्षेत्र के सामने लिख दिया – सुबोध नारायण ।
अलकापुरी, रातू रोड, रांची मो. 9431519111
बेहतरिन लघुकथा।