तीन लघुकथा संग्रह। स्वतंत्र लेखन।
आषाढ़ और श्रेयसी दोनों एक ही कंपनी में कार्यरत थे। विभाग अलग-अलग थे फिर भी निकट आए। प्यार हुआ और विवाह भी।
श्रेयसी को इटली में आयोजित एक सेमिनार में भेजने का कंपनी ने निर्णय लिया। कोविड-19 का शुरुआती समय था। वह ख़ुशी-ख़ुशी गई। लौटने पर एयरपोर्ट पर ही उसका बुख़ार मापा गया। सामान्य था। न उसे खांसी थी, न सांस लेने में कोई कष्ट। बावजूद, डाक्टर ने उसे चैदह दिन अपने घर में ही एकांत-वास आवश्यक बताया। आषाढ़ उसे लेने आया था। यह जानकारी मिलने पर उसने श्रेयसी को कार में पीछे ही बैठाया।
श्रेयसी की एक अलग कमरे में व्यवस्था की गई। सारे एहतियात बरते गए। मास्क, दस्ताने, सैनिटाइज़र प्रयोग में लाए गए। दूरी रखी गई। सब ठीक-ठाक चल रहा था.
दूसरे दिन श्रेयसी को बुख़ार ने आ घेरा। आषाढ़ ने फ़ोन पर अपने डाक्टर से बात की। डाक्टर ने कहा, ‘यह जेट-लैग के कारण भी हो सकता है। यदि बुख़ार लगातार बना रहे और सांस लेने में दिक़्क़त हो तो हम उनकी कोरोना की टेस्ट करवा लेंगे।’ डाक्टर ने शायद कुछ हल्के में लिया था।
पैराऐसाटामॉल से श्रेयसी के शरीर का तापमान कम हुआ। रात में आषाढ़ के आग्रह करने पर उसने थोड़ा-सा खा भी लिया। बारह बजे आषाढ़ ने पुनः उसका टेंप्रेचर देखा। बढ़ गया था। उसने तय किया कि सुबह डाक्टर को सूचित कर कोरोना की टेस्ट का बंदोबस्त करने को कहेगा।
दो बजे रात श्रेयसी की नींद खुली। उसका पूरा बदन तप रहा था। सांस लेने में रुकावट आ रही थी। वह डर गई। उसे अपनी मृत्यु साक्षात दिखाई देने लगी। उसने सोचा, जब मरना ही है तो अस्पताल में तड़प-तड़प कर क्यों मरूं? मौत पर मैं विजय न पा लूं?.. वह चुपके-से उठी और अपनी सोलहवीं मंज़िल की बालकनी की ओर बढ़ी।
उनींदा आषाढ़ उसकी चिंता में बेचैन था। उसे कुछ आहट सुनाई दी। बाहर आकर उसने दृष्टि घुमाई। बैठक की बालकनी में पैरापेट की दिशा में श्रेयसी धीरे-धीरे जा रही थी. उसका इरादा भांप ज़ोर से चिल्लाया- ‘श्रेयू, रुको!’
श्रेयसी अपनी ही धुन में पैरापेट पर चढ़ने की कोशिश कर रही थी। सांस लेने की स्वाभाविक प्रक्रिया में उसके गले से खर-खर का स्वर निकल रहा था। आषाढ़ लगभग दौड़ते हुए उसके क़रीब पहुंचने को था।
आषाढ़ को उसके मस्तिष्क ने आगाह किया- ‘श्रेयसी कोरोना से संक्रमित हो चुकी है. तू अगर उसे कूदने से पहले पकड़ ले तो वह बच भी सकती है, लेकिन तेरा क्या होग? वायरस तुझ पर भी आक्रमण कर देगा।’
एक पल का पसोपेश। प्यार जीता, करोना हारा। छलांग लगाने को तत्पर श्रेयसी को आषाढ़ ने अपनी भुजाओं में कस कर थाम चुका था।