‘प्रश्नकाल का दौर’ (व्यंग्य) और ‘ईश्वर की डायरी’ (कविता) पुस्तकें। संप्रति सहायक निदेशक (राजभाषा) पद पर कार्यरत।
पाठ
उसकी आंखों पर चश्मा नहीं है
लेकिन मजाल है कि
चावल में शेष रह जाए कंकड़
जब तक अदहन नहीं उबलता
वह चावल नहीं डालती बटलोही में
उसकी कलाई पर नहीं बंधी है घड़ी
पर ठीक समय पर ढक्कन हटाकर
टो लेती है एक चावल
और मांड़ का गाढ़ापन देखकर
कर लेती है चावल सीझने का अनुमान
फिर कपड़े से पकड़ कर
पतीले को झट से पसा देती है भात
एक बार आंचल से पोंछ लेती है चेहरे का पसीना
अनायास उसके चेहरे पर फैल जाती है मुस्कान
ऐसी स्त्रियों के जीवन में रहने के बावजूद
हम छांट नहीं पाते शब्दों के बीच से कंकड़
और हड़बड़ी में फैला देते हैं कागज पर
अधपकी कविता
करते रहते हैं बारहा अनर्गल प्रलाप
इतना भी धैर्य नहीं कि थोड़ी देर
पकने दें शब्दों को धूप में
भीगने दें थोड़ी बारिश में
शब्दों में रस और मिठास भरती है प्रतीक्षा
थोड़ा-सा मौन करता है ध्यान आकर्षित
संवाद का अनिवार्य हिस्सा है मौन
हम जिन स्त्रियों पर चस्पा कर चुके हैं
बातूनी का विशेषण
मुग्ध हो जाते हैं उन्हें मौन भाव से सुनते देखकर
हम स्त्रियों से सीख सकते हैं परिपक्वता!
संपर्क : सी एस टी आर आई, सेंट्रल सिल्क बोर्ड, तृतीय तल,हिन्दी अनुभाग,बी टी एम लेआउट मडिवाला,बेंगलूर-560068 मो.9431582801