युवा कवि-रंगकर्मी। कविताओं में बुंदेलखंड की सहज और ठस्स लोक स्मृतियाँ।

थोड़ी-सी नादानी

मैं मूस को खदेड़ते-खदेड़ते
धरती की कई परिक्रमाओं का साक्षी रहा
जो निर्ममता से कुतर रहा था
कला, साहित्य, सपने और साझी तदबीरें
जिनसे दुनिया को बनाया जा सके
संवेदनात्मक ज्ञान से विहीन

कुतरना उसका पेशा था
या सबसे पोशीदा शग़ल
उसमें अंतर कर पाना
बिलकुल वैसे ही था
जैसे अवाम के बहते खून से
उसकी जाति और मजहब को पहचानना

मैं मूस को पकड़कर
मानव सभ्यता के पार फेंकना चाहता था
लेकिन वह परंपराओं की
अनंत गहरी सुरंग में घुस गया
जहां उसके मुहाने पर
उसकी सुरक्षा के लिए तैनात थे
अपने नथुनों से परंपरा उद्घोषक की गंध मारते हुए
पेशेवर पोशाकों में आधुनिक हथियारों से लैस
किसिम-किसिम के गिद्ध

मैं हैरतअंगेज था
कि मूस और गिद्ध में दोस्ती कैसे हो सकती है
मैं कुछ कर पाता इससे पहले ही
गिद्धों ने मेरे स्वांग को नोचकर
मुझे नीचे गिरा दिया था
जिससे मेरी सारी क्रियाएं और गीत
बुरी तरह से जख़्मी हो गए थे

मैं मरणासन्न अवस्था में आ गया
कि कलाविहीन जीवन
कैसे जिया जा सकता है-

मेरी छोटी बहन
पुरखों की साझी स्मृतियों को सहेजती रही
मेरे सभी स्वांगों का
बारी-बारी से कुछ घरेलू इलाज करके
दुनिया को उसने कलाविहीन होने से बचा लिया

लेकिन मैं नींद में भी बड़बड़ाता रहा
कि मूस और गिद्ध में दोस्ती कैसे हो सकती है

बाबू जी मेरे ज़ख्मों को देखकर सोए नहीं थे
जब उनसे रहा नहीं गया
मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा
मूस जड़ें कुतर देता है
जिससे गिद्ध को नोचने में सहूलियत हो जाती है

मैं कब सोया मुझे पता नहीं चला
लेकिन जब जागा तो बहन कैनवास पर
कुछ इंकलाबी पोस्टर बनाते हुए
निदा फ़ाज़ली की एक ग़ज़ल गुनगुना रही थी
‘दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहां होता है
सोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला’।

पासवर्ड

मैं पासवर्ड बहुत भूलता हूँ
इसलिए हर क्षण
सांस लेने के लिए
देखना पड़ता है
तुम्हारी आंखों में
जिसमें दर्ज हैं
मेरी सांसों के सारे पासवर्ड

इनको बनाया था हमने
अपनी सांसों के ताप से
एक दूसरे को
समग्रता में स्वीकारते हुए।

स्मृतियां

तुम्हारी स्मृतियां
मेरी रगों में इस तरह बहती हैं
जैसे जीवन का कोई गीत गा रही हों

जब भी मेरी जिंदगी में
अंधकार के बादल छाते हैं
तुम्हारी स्मृतियां बिजली की तरह चमक जाती हैं

उम्मीद देती हैं कि बारिश होगी
फिर नई कोंपलें उग आएंगी
जिनमें जीवन बसता है

बहुत समय तक मुझे लगता रहा
जब भी कोई जाता है
तो समूल चला जाता है

मेरे साथ ऐसा बिलकुल नहीं हुआ
मेरी जिंदगी से जो भी गया
उसके हिस्से को और भी ज्यादा जीने लगा हूँ
कई बार ऐसा लगता है
लोग जिंदगी में
अपनी स्मृतियों को ही जीते हैं

रिश्तों को संभालने और संवारने में
कई तरह के राग-द्वेष आते हैं
और कुछ पीछे छूट जाता है

अकेलापन नियति है कभी-कभी
स्मृतियों में भी

मुझे याद है जब बचपन में
मेरी दादी कहानियां सुनाया करती थीं
तो वे कहानियां सुनाते-सुनाते सुबकने लगती थीं
मैं घबराकर अपनी अम्मा से कहता
देखो दादी को क्या हुआ

अम्मा जब दादी के पास आती
तो वे मुस्कराने लगतीं
ये दो पीढ़ियों का आपसी समझौता था : अलिखित
जो मेरे लिए हमेशा कौतूहल भरा था

आज जब दादी और अम्मा हमारे बीच नहीं हैं
यही समझ में आता है कि हो न हो
दादी जरूर स्मृतियों को ताजा कर रही थीं
एक कहानी को कहनी बना रही थीं
जिसमें उनकी स्मृतियाँ
और जीवनबोध शामिल था

दादी अक्सर ऐसे ही
अपने पूर्वजों से संवाद करती थीं
किसी से कह सकने
और किसी की सुन सकने के बीच
कहीं जिंदगी का संगीत छिपा है
जो जीवन की असाध्य वीणा है
और प्रियंवद केशकंबली कोई-कोई

स्मृतियों से भरा हुआ व्यक्ति
निपट अकेला नहीं होता

जब भी मैं किसी से मिला
अपनी स्मृतियों के साथ मिला
उसकी स्मृतियों को
अपनी स्मृतियों से एकमेव करते हुए
मेरी स्मृतियों में
सांसों का उत्ताप, स्पर्श और गंध शामिल है
वे मेरे मन के आकाश में
सतरंगी इंद्रधनुष की तरह चमक रही हैं।

कला साधना

थियेटर की कक्षाओं में
हमेशा बताया जाता है
अपनी कला को साधने के लिए
जरूरी है अपनी सांस को साधना

जब मुझसे पूछा गया
मेरी सांस के बारे में
मैं तुम्हारे बारे में बताता रहा

सभी लोग मुझे ऐसे सुन रहे थे
जैसे मैं
अभिनय सिद्धांतों की व्याख्या कर रहा हूँ

तभी अचानक नौ रस
अपनी पूर्ण तीव्रता के साथ
आकाशगंगा की तरह
मेरे चारों ओर घूमने लगे थे
रसों की आपसी टकराहट से उत्पन्न ताप से
मेरा शरीर सूर्य की तरह जलने लगा था

तब तुमने भर लिया था मुझे
अपनी बांहों में
और बचा लिया था
एक कला को नष्ट होने से

मैंने अपने होंठों से
तुम्हारे माथे पर
जीवन की सबसे खूबसूरत
कलाकृति बनाते हुए जाना था
कलाएं केवल प्रशिक्षण से नहीं सीखी जातीं
कलाओं को साधने के लिए
जरूरी है जीवन में राग और ताप का होना।

संपर्क :एच.एन-122, एम ब्लॉक, संजय नगर सेक्टर 23 गाजियाबाद, यू.पी-201002मो. 8586022945