वरिष्ठ कवि, कथाकार। ताज़ा संग्रह : ‘अधूरी रहना कविता की नियति है’।
क्या नीला रंग ठीक है?
कोई पाखी, कोई गीतकार आए
मुझे सुला जाए
कोई कह जाए कि सब ठीक है!
अपनी चोंच से मुझे दो बूँद उम्मीद के पिला जाए
कोई नीले सपने दिखा जाए
या कि बच्चों के बीच मुझे लिटा जाए
क्या बच्चों के हाथ भी बम के गोले हैं?
क्या धरती पर कहीं कोई बच्चा नहीं बचा
जो मुझसे प्यार कर ले
जिसे मैं प्यार कर सकूं?
क्या प्यार महज कांच की परत भर रह गई है?
मेरा जिस्म तड़पता है कि
कोई मुझसे ही निकल कर मेरा दुश्मन बन गया है
मैं कैसे समझूं कि सब ठीक है
क्या ठीक है? कौन ठीक है?
क्या आकाश ठीक है? समंदर ठीक है?
किस सपने में नीला रंग बचा है?
क्या नीला रंग ठीक है?
क्या दिन और हफ्ते ठीक हैं?
क्या रविवार सुबह चाय का प्याला ठीक है?
इन दिनों
इन दिनों कैसी कविता लिखोगे लाल्टू
दिन भर कभी सुडोकू तो कभी मूवी में
छिपने की जगह ढूंढ़ते हो
मजाक नहीं
बच्चों से कहते कि हूँ महज फालतू
किस कुर्सी पर बैठे हो कैसी चुभती है पाछों पर
हाड़-मांस के बने हो बंधु
मानते हो कि जेहन इसी जिस्म में है
कैसे बचोगे आग से जो लगी है शाखों पर
हड्डियों की बात करें कि अभी दुरुस्त हो
इंतज़ार में हो कि कब दरवाज़े पर दस्तक होगी
अब तक हुई नहीं तो किन समझौतों के बल पर
किन खयालों में डूबे हो
हो पस्त
पर सोचते कि मस्त हो
महंगी दारू पी नहीं सकते सस्ती पचती नहीं
क्या करोगे कैसे भूलोगे भुलाओगे
थक गए हो झूठ के खिलाफ सच का साथ देते
अब कोई राह कोई तरकीब जंचती नहीं
उठ यार!
चल प्यार की फौज के साथ है राब्ता तेरा
प्यार की जबान से है वास्ता तेरा
लिखो जो जैसा है वह लिखो
वक्त आएगा, सुर्ख सपनों की शायरी आएगी
लिखो कि पीर ज्वाला बन धधकेगी
मोहब्बत के रंग लिए फुहारें आएंगी।
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