अजीब बात है कि सच को सच कहने से गुरेज़ करने वाली इस दुनिया ने अगर सबसे ज्यादा सवाल उठाए हैं, तो वह ज़िदगी की तल्ख़ हकीकतों के बीच की ज़िंदगी का रोमन बयान करने वाली कवियों की कौम है। अगर सबसे ज़्यादा दायरे किसी के आसपास खींचे हैं, तो वह ‘कवि’ है और जगह और ज़रूरत को लेकर सबसे ज़्यादा तफ़सील और कैफियत अगर किसी से मांगी गई है, तो वह कवि है। जबकि कवि होना, महज़ कवि होना नहीं यह एक स्थिति है। जो उतनी ही सरल है, जितना कि रात की आंखों में रखे सपने को दिन की मुंडेर पर बैठा देना और उतनी ही कठिन, जितना कि दिन की आंखों में चुभते सवालों का शोर रात के निविड़ सन्नाटों में सुनना! कवि होने का मतलब है, मुट्ठी में मौसमों को बांधना। इंसानी हक़ और ज़रूरतों को आवाज़ देना। ख़ुद को गलाकर, सच को जिलाना और अपने शब्दों को भूलकर, वक़्त की ख़ामोशी को आवाज़ देना। शायद इसीलिए इस दुनिया के इतने सवालों, इतनी कैफ़ियतों, इतनी बातों, इतने दायरों के बावजूद ‘कविता’ बची हुई है, क्योंकि बचे हुए हैं कवि. तो बीतते इस समय में पढ़ते हैं साल 2020 की नोबल विजेता लुईस ग्लूक की कुछ ऐसी ही कविताएं, अनुवाद एवं प्रस्तुति उपमा ऋचा.
लाल अफ़ीम
मन का होना बड़ी बात नहीं है, (और) भावनाएं
ओह हां ये मेरे पास हैं; ये मुझ पर शासन करती हैं
मेरे पास स्वर्ग में एक देवता भी है
मैं उसे सूरज कहती हूं और उसे दिखाने के लिए अपने हृदय का ताप,
खोल देती हूं हर परत
यह ताप हूबहू उसकी उपस्थिति जैसा है
लेकिन क्या होता इस सौंदर्य का, यदि एक मन न होता?
अरे मेरे भाईयो-बहनो
क्या तुमने कभी मुझे पसंद किया था, कभी यानी
बहुत-बहुत पहले; तब जबकि तुम मनुष्य थे?
क्या तुम ख़ुद को एक बार खुलने की अनुमति दोगे,
ऐसे जैसे यह दोबारा कभी नहीं होगा?
क्योंकि असलियत में
अब मैं उसी तरह बोल रही हूं, जैसे आप बोलते हो
मैं बोल रही हूं, क्योंकि मैं बिखर गई हूं।
अंधेरे में
ये वही संसार है, जो हम चाहते थे।
वे सब, जो हमें मरा हुआ देखते, ख़ुद मर चुके हैं
मैंने सुना है; जादूगरनियों का अपशकुनी विलाप
टूटता है, चांदनी रात में चीनी की चादर से
ईश्वर ईनाम देता है
और उनकी जुबान टेढ़ी हो जाती है
अब, स्त्री की बाहों और स्त्री स्मृतियों से दूर;
अपने पिता की झोंपड़ी में हम सोते हैं
और कभी भूख महसूस नहीं करते।
(लेकिन) मैं भूल क्यों नहीं पाती?
मेरे पिता दरवाज़े पर टकटकी लगाए बैठे हैं
और बरसों से यही क्रम जारी है।
किसी को याद नहीं; यहां तककि तुम्हें भी नहीं मेरे भाई
गर्मियों की शाम को तुम मेरी ओर ऐसे देखते थे
मानो अलविदा कहना चाहते हो,
हालांकि ऐसा कभी नहीं हुआ।
लेकिन मैं तुम्हारे लिए मारी गई
मैंने देखे हथियारबंद देवदार और सनोबर के पेड़
और देखी भट्टे से उठती आंच की लपटें
रातों को मैं तुम्हारी ओर मुड़ती हूं
ताकि तुम मुझे थाम लो, संभाल लो
लेकिन तुम वहां नहीं होते
क्या मैं अकेली रह गई हूं?
ख़ामोशी में भेड़िए फुसफुसाते हैं, हंसल
हम अब भी वहां हैं और यह सच है
हां सच हैं, ये स्याह जंगल और इनके भीतर सुलगती हुई आग
संसार में तुम्हारी कोई जगह नहीं है
आज रात मैंने ख़ुद को अंधेरी खिड़की के पास खड़े देखा
ठीक अपने पिता की तरह
जिनका जीवन यूं ही गुज़र गया
कामुक विचारों को रोकने की कोशिश में मौत के बारे में सोचते हुए
इसलिए अंत में उनके लिए इस ज़िंदगी को छोड़ना आसान था,
क्योंकि उसमें कुछ बाक़ी नहीं था
यहां तक कि मेरी मां की आवाज़ भी
उन्हें बदल नहीं सकती थी; न ही लौटाकर वापस ही ला सकती थी
क्योंकि उन्होंने मान लिया था कि
जब तुम किसी प्यार नहीं कर सकते
इस दुनिया में तुम्हारे लिए कोई जगह बाक़ी नहीं रहती
नदी का गीत
एक रोज़ हम बहुत ख़ुश थे, हमारे पास उस रोज़ की कोई याद नहीं
क्योंकि अपने तमाम दोहराव में भी, कुछ भी दो बार घटित नहीं हुआ
हम नदी के साथ-साथ चल रहे थे
बढ़ने जैसे किसी भाव के बगैर
हालांकि हमारे बीच के पेड़ बदलते जा रहे थे
कभी सनोबर, कभी भोज
उस रोज़ आसमान उतना नीला था, मानो नीले कांच का सांचा कोई
नदी में चीज़ें बहती जा रही थीं
बहती जा रही थीं, चंद पत्तियां और लाल-सफ़ेद रंग से पुती किसी बच्चे की नाव
जिसकी पाल पानी से सराबोर थी
जैसे-जैसे वे गुज़र रही थीं, हम सतह पर ख़ुद को देख सकते थे
हम मंद धारा में साथ-साथ और अलग-अलग बहते हुए लग रहे थे, जैसे नदी
हमें जोड़ रही हो हमेशा के लिए; हालांकि आगे
कई दूसरे जोड़े जा रहे थे, स्मृति को चुनते हुए
बेईमान लफ़्फ़ाज़
मुझे मत सुनो
मेरा दिल टूट गया है
मैं कुछ भी तटस्थ भाव से नहीं देख सकती
मैं ख़ुद को जानती हूँ
मैंने मनोचिकित्सकों की तरह सुनना सीखा है
लेकिन जब मैं भावुकता के साथ बोलती हूँ,
तब मैं सबसे कम भरोसेमंद होती हूँ।
सच में यह बहुत दुखद है
पूरी ज़िंदगी मैंने अपनी होशियारी के लिए तारीफ़ पाई
अपनी भाषाई शक्ति और अंतर्दृष्टि के लिए
लेकिन अंत में वे सब व्यर्थ हो गए।
मैंने कभी अपने आप को सीढ़ियों के सामने खड़े, अपनी बहन का हाथ पकड़े नहीं देखा
इसीलिए मैं उसकी बाहों की खरोंच का हिसाब नहीं लगा सकती
मेरे अपने मन में मैं अदृश्य हूँ, इसीलिए मैं ज़्यादा खतरनाक हूँ।
मेरे जैसे लोग, जो निस्वार्थ लगते हैं
दरअसल हम अपाहिज हैं, झूठे
हम उन लोगों में से एक हैं, जिन्हें सत्य के हित में बाहर रखा जाना चाहिए
इसीलिए जब मैं चुप रहती हूँ, तब सत्य प्रकट होता है
(प्रकट होता है) एक साफ आसमान और सफ़ेद रूई जैसे बादल
जिसके नीचे है एक छोटा-सा भूरा घर,
और लाल- गुलाबी एज़ेलिया
अगर तुम सत्य चाहते हो, तो तुम्हें किनारा करना होगा
अपनी सबसे बड़ी बेटी से, उसे बाहर ही रोक दो
क्योंकि जब किसी ज़िंदा शै को इस तरह चोट पहुंचती है
अपनी गहराई में हर चाल पलट जाती है
मैं भी इसीलिए भरोसेमंद नहीं हूं
क्योंकि दिल की चोट अक्सर दिमाग की भी चोट होती है
सपने
पिछली रात कुछ अजीब थी
किसी ने टहोका मारकर मुझे जगा दिया
जब मैंने अपनी आँखें खोलीं
सब ख़त्म हो चुका था,
वो तमाम ज़रूरतें, चाहतें
जो मैंने ज़िंदगी से जानी थीं सब…
एक पल के लिए मुझे लगा
कि मैं धरती के थिर अंधकार में दाखिल हो चुकी हूं
और उसने मुझे संभाल रखा है
(लेकिन मैं सपने में थी)