कविता मन से मन का संवाद है। माने एक मन, मुंह बनकर संदेश देता है और एक मन, कान बनकर उसे ग्रहण करता है। बस इतना ही; इससे ज़्यादा कुछ नहीं, लेकिन इससे कम भी कुछ नहीं! क्योंकि मेरे लिए कानों से ग्रहण किया गया, कविता का अनुभव आंखों से प्रेषित होता है। (इसलिए कवि के रूप में) आप ख़ुद को दोहराते हुए शांति से नहीं बैठ सकते। यह सबसे बड़ी हार है, सबसे बड़ी असफलता!! 

आइए सुनते हैं लुईस ग्लूक की मौन में मुखर ध्वनि जैसी कविताएं.

रचना : लुईस ग्लूक
आवृत्ति : अनुपमा ऋतु
रचना अनुवाद एवं श्रव्य-दृश्य संपादन : उपमा ऋचा
प्रस्तुति : वागर्थ, भारतीय भाषा परिषद कोलकाता.