मोहनदास नैमिशराय
सुपरिचित दलित साहित्यकार और ‘बयान’ के संपादक
माँ, बेटा और क्रांति
माँ बीमार है
और घर में अंधेरा
न माँ के चेहरे पर तेज है
और ना घर में उजाला
जब से बेटे ने क्रांतिकारी झंडा उठा लिया था
उसी समय से माँ ने
चारपाई पकड़ ली थी
माँ के सपने दफन हो गए थे
उसी अंधेरी सीलन-भरी कोठरी में
जिसमें कभी- कभी दीपक जलता था
बेटा अक्सर सड़क पर रहता था
आंदोलन करता था, नारे लगाता था
और माँ घर में
पुरानी चारपाई पर
अभी भी सपने बुनती थी
सपने तो बेटा भी बुनता था
समाज बदलने के
पर सपने दोनों के अधूरे थे
इसलिए कि झंडा उठाकर
चलने वाले साथी
हर बार चुनाव में जीत कर
झंडा बदल लेते थे।
माँ और मुल्क
माँ और मुल्क बदले नहीं जाते
बदल जाती हैं सीमाएँ
और घरों के दरवाजे
तथा खिड़कियाँ भी
बदल जाते हैं हमारे कपड़े
यहाँ तक कि जिस्म पर
निशान भी बदल जाते हैं
या उन निशान को
बदलवा दिया जाता है
बदल जाती है
हमारी सूरतें और सीरतें भी
बदल जाते हैं मुकाम
और हमारी पहले से
तय की गई मंजिलें भी
बदल जाते हैं रास्ते
चौराहे, दोराहे, जंगल
और जंगल में खड़े पेड़
यहाँ तक कि कब्रिस्तान भी
बदल जाती हैं
हमारी यात्राएँ
चाहे वह पहली हो
या फिर अंतिम
बदल जाते हैं
बेटे- बेटियाँ
और बीवियाँ भी
पर माँ और मुल्क बदले नहीं जाते।
साईकिल पर किताबें
संवाद के लिए
सजग प्रहरी जैसा वह
बस्ती में जाकर
दरवाजे पर दस्तक देता
बहुत दूर से आया हूँ
वह कहता
पानी पिलाओ पहले
फिर…? पानी पिलाने वाला पूछता.
फिर क्या…
किताबें बेचूंगा
वह कहता
औफ्फ
किताबें नहीं विचार
गली – बस्ती में रेलपेल
हँसी मजाक
शोर – शराबा
पर उसे लगना
सभी कुछ खामोश है।
झलकारी बाई के जीवन पर ‘वीरांगना झलकारी बाई’ नामक एक पुस्तक सहित 35 से अधिक कृतियाँ प्रकाशित।
मो. 8860074922