वरिष्ठ लेखक। चार कथा संग्रह प्रकाशित। संप्रति स्वतंत्र लेखन।

स्त्री की रोटी

स्त्री जब बेलती है रोटी
तो रोटी स्वतः ही बिलने लगती है
गोल आकार में
पति से चुहल करते हुए
ध्यान कहीं और उलझा रहता है स्त्री का
पर हथेलियों में फंसा बेलन
फिसलता है लोई पर यूं
कि रोटी स्वतः ही गोल आकार लेने लगती है

चौथी में पढ़ने वाली बिटिया भी रोटी बेलती हुई
अक्सर कानों में ईयर फोन ठूंसे
चैट करती है सहेली से
न तिकोन न आयत
रोटी बिलती है बिलकुल गोल
माथे पर चिपकी गोल बिंदी की तरह

बेलन का दबाव लोई पर
किस तरफ कितना डालना है
रोटी को गोल बेलने के लिए
नहीं ली होती हैं वे इसके लिए
किसी तरह का प्रशिक्षण स्कूल या कॉलेज में
स्त्री के भीतर समाई रहती है पूरी की पूरी कायनात
कि स्त्री जब बेलती है रोटी
पृथ्वी की वर्तुलता सरसरा जाती है रोटियों में
चंद्रमा की गोलाई का तिलिस्म चढ़ जाता है
बेलन की चाल पर

मां हो पत्नी हो या बेटी
पड़ोस की सलमा खाला हो या सुरसती कहारिन
चौका बासन करने वाली
गंगी- धनिया ही क्यों न हो
स्त्री रोटी बेलती हुई हर बार तवे पर उपजाती है
उर्वरता और ऊर्जा से भरी गोल पृथ्वी
पीयूष से उबचूभ वृत्ताकार स्निग्ध चंद्रमा

टंक जाते हैं इसपर आसमान से उतर कर
हजारों वलयाकार सितारे ठिठोने से
फूटती है कुंडलाकार चूड़ियों की मादक झंकार
मोजार्ट की सिंफनी सी इससे

स्त्री की बनाई रोटी
दुनिया में होती है सबसे अलग
कि स्त्री रोटी बेलती है
तो इसके वलय में
मातृत्व की अलौकिक ऊष्मा सिरजती है।

संपर्क : प्रिंस रेडीमेड, केडिया मार्किट, हेड पोस्ट ऑफिस के सामने, मोहन फेमिली के पास, आसनसोल713301 (प बंगाल) मो.9832194614