वरिष्ठ कवि एवं समीक्षक। अद्यतन कविता संग्रह इस दुनिया को सुंदर बनाने में लगा हूँ

कितना समझे कितना बूझें

कितना समझे कितना बूझें
हम तो ठहरे निपट पुरनिया
बांच रहे सब संकेतों से

बांच रहे थे मनसूबों को
सूरज की उंगली पकड़े हम
ढांप रहे थे दरकी छत को
किरणों की साड़ी पहने हम
पर चीन्ही पगडंडी हमको
जोड़ गई बंजर खेतों से

घाव बहुत गहरा लगता है
बरगद पर जो अभी हुआ है
बोल रहे हैं पत्ते पत्ते अपनों से ही चुभा सुआ है
उफ! फिसली बाहों से नदियां
मुठ्ठी चिपक गई रेतों से

जितने अधिक शीर्षक बदलूं
कथ्य और उलझा पाता हूँ
शब्दों की ध्वनियों को सुनकर
सन्नाटा पीता जाता हूँ
यदि दर्पण स्वीकार करे तो
काम चला लूं समझौतों से
हम तो ठहरे निपट पुरनिया
बांच रहे सब संकेतों से।

कहो कि सब कुछ ठीक चल रहा है

कहो कि सब कुछ ठीक चल रहा है

कहो कि टूटते तारों की रोशनी में तुम सुई में
धागा डाल सकते हो

कहो कि उस खास रंग को देखते ही उतर गया
तुम्हारी आंख का चश्मा
और तुम खुश हो

कहो कि किसी रेगिस्तान में
गुम तुम्हारे कमीज का बटन
तुम्हारे सपने की कमीज में टंका दिख रहा है
जिसे तुम्हारी पत्नी ने नहीं टांका है
और तुम कत्तई परेशान नहीं हो

कहो कि प्यार करते हुए तुम्हारे होंठ नहीं सिले गए
कहो कि तुमने समुद्र में मछलियों से इजाजत ली है
कि उन्हे फंसा सको अपने जाल में
और समुद्र को कोई शिकायत नहीं है

कहो कि मुर्दों के साथ सड़क पर यात्रा करते हुए
तुमने अपने पैरों से माफी नहीं मांगी है
कि सड़क की सांसों में लोकतंत्र की खुशबू है
और तुम बीमार नहीं हो

कहो कि नदी खतरे के निशान से पूछकर
उसे चूम रही है
कि पहाड़ टूटकर गिर नहीं रहे हैं
पृथ्वी की आंखों में नृत्य कर रहे हैं

तुम अब भी जीवित हो कहो
डूबती सदी के शेष समय में
सब कुछ ठीक चल रहा है
कहो!

सुंदर

तुम्हारे पास सुंदर बनने का अजीब नुस्खा था

तुम उन स्त्रियों से जुदा थी जो
धूल धूप धुएं पसीने मैल वगैरह से अपने को
उतना ही दूर रखती थी
जितना पिज्जा या रोटी के स्वाद में
बुनियादी फर्क होता है

तुम्हें कतई बुरा नहीं लगता था कि
मैं टाई बांधने से इसलिए परहेज करता हूँ कि
टाई खोलने के बाद मेरा गला
दुखता है

तुम्हे आनुवंशिकता वाले तर्क पर विश्वास तो था
लेकिन वह अविश्वास में उस समय बदल जाता था
जब काबिलियत के दम पर काले लोग
नोबेल पा लेते थे और
विश्व के सबसे ज्यादा सुंदर होने का खिताब
तुम्हारी कल्पना से मेल खाने लगता था

तुम्हें तैयार होने में उतना समय लगता था
जितना मुझे बालों में कंघी करने में लगता है
तुम्हें सुंदर दिखने के लिए किसी आईने की
जरूरत नहीं थी

मैं चकित रह जाता था जब तुम
शादी-समारोहों में भी कभी-कभी
वही साड़ी पहन लेती थी
जो पांच दिन पहले की शादी में पहनी थी

मैं टोकता नहीं था क्योंकि तुम्हारा जवाब पता था
इस तरह तो मेरा नाम भी बदल जाना चाहिए
पिछली शादी में भी तो यही नाम था
और तुम मुस्करा देती थी

तुम्हारा यह कवितात्मक उत्तर
मुझे निरुत्तर कर देता था
कि पेड़ अगर साल में एक बार कपड़े बदलते हैं
और हम चमत्कृत हो जाते हैं
तो हम उनसे अलग कहां हैं

मैंने मौसम की आंखों में पहली बार
उल्लास का अनुभव किया था
हां, मुझे उस समय जरूर बहुत बुरा लगा
जब मैंने कहा तुम बहुत सुंदर हो
और तुमने मुस्कराते हुए
मेरे जैसे बेफिक्र आदमी के कान के नीचे
काला टीका लगा दिया।

बटन

आज सुबह जब मैं काम पर जा रहा था
कमीज पहनते ही बहुत गुस्सा आया
कि ठीक ऊपर से
तीसरा बटन गायब है

मेरे जैसे आदमी की
सबसे बड़ी परेशानी यह होती है
जब उसे जिस चीज की जरूरत
सबसे ज्यादा होती है
वही नहीं मिलती

जैसे इस समय एक धुले कमीज की जरूरत है
और जिस पर सभी बटन सलीके से लगे हुए हों
मेरे पास नहीं है

ऐसा नहीं है कि मुझे बटन टांकना नहीं आता
लेकिन कमीज में जिस तरह के बटन लगे हुए हैं
वैसे बटन मेरे पास नहीं हैं
और यह एक ऐसी समस्या है जिसमें हर बार
खुद को यह विश्वास दिलाया जाता है कि
आज ही हर तरह के बटन खरीद कर रख लेना है
जाहिर है यह काम फिर उस दिन याद आता है
जिस दिन टूटे हुए बटन की तरह
दूसरा बटन नहीं मिलता

और मैं इस समय बहुत परेशान हूँ
जैसे हाथी की सूंड़ में चींटी घुस गई हो
और वह उसे निकालने के
सारे जतन करने के बावजूद
निकाल न पा रहा हो

यह एक असहनीय पीड़ा है
पीड़ा नहीं इसे दुख कहना ज्यादा उचित होगा

इसे समझना उतना ही मुश्किल है
जितना भरे पेट के साथ यह समझना कि अगर मैं
समय पर काम पर नहीं पहुंचा तो मुझे
काम से निकाला भी जा सकता है

एक बटन इस समय मेरे जीवन को
भूमध्यरेखा की तरह बांटकर खड़ा है
और मैं इसका कोई हल निकालने में
लगभग असमर्थ हूँ

सोच रहा हूँ कि वह समय कितना अच्छा था
जब बटनों का आविष्कार ही नहीं हुआ था
और लोग डोरियां या बक्कल बांधकर
बड़े से बड़े आयोजनों में जा सकते थे और
उतने ही अच्छे दिखते थे
जितना मैं बटन के साथ दिखता हूँ
मैं सचमुच बहुत परेशान हूँ
और इस समय यह सोचना गलत नहीं लगता
कि कितना अच्छा होता

मैं एक बटन फैक्ट्री का मैनेजर होता
और हजारों किस्म के बटन बनाता
और अपनी कमीज के बटन खुद ही तोड़कर
उसी तरह का दूसरा बटन
तुरत टांक लेता
कितना मजा आता उस समय
और नौकरी जाने का भय भी नहीं रहता।

सूरज में बहे समंदर

जो टूट चुकीं दीवारें
उनसे क्या नाता रिश्ता
बस घनीभूत पीड़ा है
पीड़ा में कई दरारें

क्या समझेंगी मीनारें
कितने दिन कितनी रातें
रोती हैं सब ईंटों में
पुरखों की जीवित लाशें

जो जैसा है चलने दो
कब तक सुनते रहना है
ये सड़कें कितनी चुप हैं
उनकी सांसें सुनने दो

दिलचस्प बहुत है भाई
इस जीवन की लीलाएं
दुख ने इसको मांजा है
दो दिन में कहां समाई
बस पांच मिनट पहले का
वह पेड़ कहां गायब है
कोयल बेसुरी हुई है
यह खेल किसी दहले का

हम फटे चीथड़ों जैसे
सीवन तक खुली हुई है
हम बांसों के सहचर हैं
आंधी को रोके कैसे

फिर भी हम मस्त कलंदर
सूफी गीतों से सपने
हम उलटवासियों वाले
सूरज में बहे समंदर।

संपर्क :प्रोफेसर एवं अध्यक्ष (हिंदी विभाग), नारायण पी.जी.कालेज, शिकोहाबाद२८३१३५ / मो. ९३५८४३०२३८