विगत तेईस वर्षों से डेनमार्क की राजधानी कोपनहेगन में।अब तक चार उपन्यास, तीन कहानी संग्रह तथा एक अनुवाद प्रकाशित।उनका उपन्यास ‘वेयर डू आई बिलांग’ डेनिश समाज पर हिंदी में लिखा पहला उपन्यास है।
‘इवान!’ जूलिया ने तुरंत पूछने वाले को याद दिलाया।
‘हां भई, इवान… हम तो भूल ही जाते हैं कि वह अब….’, पूछने वाला खिसियाहट से भर गया।
‘कोई बात नहीं।आगे से ख्याल रखिएगा’, जूलिया सहजता से कहती।
यद्यपि इडा को अपने परिवार का पूरा सहयोग मिल रहा था, फिर भी उसके परिवार और मित्रों को उसके नए नाम और स्वरूप को आत्मसात करना मुश्किल था।जब वे उसे पुकारते तो उनके मुंह से अनायास ही उसका पहला नाम निकल जाता – इडा।वह तुरंत उन्हें याद दिलाती – इडा नहीं इवान।एक जूलिया थी जो उसे हमेशा इवान पुकारती थी, और ओरों को भी उसे इवान पुकारने के निर्देश देती।
पांच साल पहले इडा ने अपने घर वालों को सन्न कर दिया था, जब वह दिन-प्रतिदिन खुल कर बोलने लगी, ‘मैं लड़का हूँ, मैं गलत शरीर में हूँ…।’ वे उसे समझाते कि वह कैसी बातें कर रही है! यह बात तो पैदा होते ही तय हो जाती है कि कोई लड़का है या लड़की।कोई पंद्रह साल में थोड़े ही किसी का लिंग निर्धारण होता है।
वैसे वह बचपन से टॉम बॉय जैसी थी, लड़कों की तरह छोटे बाल, पहनावा।बाल बढ़ाने में उसे जबरदस्त पीड़ा होती।लड़कियों की पोशाकों में उसे उलझन होती।जब तक उसके बाल कटकर एकदम छोटे न हो जाते और वह लड़कों की पोशाक में न आ जाती, उसे चैन नहीं मिलता।स्कूल और पब्लिक स्थानों में बॉय-टॉयलेट में घुस जाती।उसे रोकना पड़ता।जब उसे किसी फॉर्म में अपना लिंग भरना होता तो वह ‘पुरुष’ पर निशान लगाती।
किशोरावस्था में आने पर स्तन वृद्धि बहुत नहीं हुई, नितंब भी नहीं उभरे, बस कद खूब निकल गया।पांच फुट दस इंच हो गई काया।उसकी अपनी मां और सौतेली मां जूलिया उसके सम्मुख स्वयं को बौनी समझने लगी।इडा की ठुड्डी पर भी कुछ बाल उग आए थे, जिनकी नियमित ट्रिमिंग जूलिया ही करती थी।
लड़कों से ही उसकी दोस्ती रहती थी, जिसे सभी ने शुरू में सामान्य लिया।पेरेंट्स मीटिंग पर अध्यापक भी हँसते हुए कहते थे, इडा को फुटबॉल वगैरह ऊर्जावान खेल पसंद हैं।लड़कों की टोली में ही नजर आती है।स्कूल में उसका मजाक भी खूब उड़ता।कुछ सहपाठी उसे समलैंगी समझते थे।उसे गे कह कर चिढ़ाते थे।इडा के लिए कशमकश की स्थिति थी।वह कैसे पता लगाए कि वास्तव में उसके अंदर क्या है।वह दुनिया में खुद को कैसे व्यक्त करे? अपनी व्यथा कैसे समझाए? चौदह साल की आयु से उसने अपने विचारों और भावनाओं को अपने करीबी दोस्तों और अपनी छोटी बहन लूसी के साथ साझा करना शुरू कर दिया। ‘मुझे तुमसे अपने बारे में बात करनी है।मैं भले ही तुम्हें लड़की दिखती हूँ।मगर मैं लड़की नहीं, लड़का हूँ।’
‘मतलब ट्रांस? हिंजड़ा? छक्का?’ वे उसकी खिल्ली उड़ाते।
तरह-तरह के फिकरे उस पर कसे जाते: ‘अरे यह तो बहक गई।’
‘लगता है कुछ दिमाग का फितूर है।साइको हो गई।’
ट्रांस, हिंजड़ा, साइको, लड़का या लड़की… शरीर और मन के इस द्वंद्व से गुजरते हुए एक शाम इडा को नर्वस ब्रेकडाउन हो गया।अपना सिर पकड़ते हुए बोली, ‘मैं क्या हूँ? मैं लड़की नहीं हूँ…।’
जूलिया ने सांस भरी, और अपनी सौतेली बेटी को अपने आगोश में ले लिया।
‘यह तू क्या बकवास कर रही है? अचानक कैसी अजीबोगरीब बात करने लगी है? क्या हो गया है तुझे जो तू…? क्या स्कूल में तेरे संग कुछ हुआ?’ मार्टिन भड़कते हुए बोला।
‘मेरे जीवन में मुझे ट्रांस बनाने के लिए कुछ नहीं हुआ।मैं ट्रांस पैदा हुई हूँ’, इडा अपनी बात पर जोर डालते हुए बोली।
‘यह सब इंटरनेट और यूट्यूब का प्रभाव है।इंटरनेट पर ट्रांसजेंडरों के यूट्यूब वीडियो देख-देख कर तेरी खोपड़ी में भी बैठ गया कि तू भी उन्हीं की तरह…।मैं पेरेंटिंग कंट्रोल लगा दूंगा इंटरनेट पर।तुझसे तेरा सेलफोन भी छीन लूंगा’, मार्टिन गुर्राया।
जूलिया ने अपने पति को इशारा किया कि वह शांति रखे।इडा सही कह रही थी…ऐसा नहीं था कि एक सुबह वह बिस्तर से उठी और उसने एकाएक ट्रांस होने का फैसला ले लिया।लक्षण बचपन से ही थे।वे ही अंधे बने रहें।
‘हम तुझ पर यकीन करते हैं, डार्लिंग।हम तुझे हर हाल में प्यार करेंगे, चाहे तू कुछ भी हो।हम अपना सबकुछ छोड़ कर इंग्लैंड से डेनमार्क सिर्फ तेरी और लूसी की वजह से ही आए थे।तुम दोनों हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हो।’
लूसी बायोलॉजी टीचर है।उसे मालूम है कि ‘जेंडर’ और ‘सेक्स’ अलग-अलग बातें हैं।इंसान शरीर से महिला होते हुए भी दिमाग से पुरुष हो सकते हैं और शरीर से पुरुष होते हुए भी दिमाग से महिला हो सकते हैं।हालांकि मनुष्यों का लिंग निर्धारण जन्म के समय ही हो जाता है।मगर यह मामला हमेशा ऐसा नहीं होता है।बच्चे का लिंग उसके शरीर से अधिक उसके दिमाग में होता है।यह जानकारी एक अप्रत्याशित झटके के रूप में उनके सम्मुख आई।क्या प्रतिक्रिया करें, पता नहीं।बस सांस भरते रहें।
जूलिया जब अपनी जिंदगी को पलट कर देखती है तो और अधिक सांस भरती है।
मार्टिन के प्रति वह यूं ही आकर्षित नहीं हुई थी, उसके व्यक्तित्व में कुछ ऐसा था जो जूलिया को भा गया था।लंबा, गठीला और कसरती बदन वाला मार्टिन उसे सुदर्शन व्यक्तित्व का लगा।उसका लापरवाह, बेबाक-सा मिसाज उसे सम्मोहित कर गया।यह आकर्षण इतना गहरा था जिसने उसका उससे ग्यारह वर्ष बड़ा होना, तलाकशुदा, दो बेटियों का पिता होना, सब गौण कर दिया।माता-पिता के एतराज की भी उसने परवाह नहीं की।
मार्टिन ने जूलिया से अंतरंगता बढ़ने पर उसके सम्मुख अपनी जिंदगी के सभी पन्ने खोले थे।उसकी पहली पत्नी, एना डेनिश थी।वह एक पढ़ाई के सिलसिले में डेनमार्क से लंदन आई थी।दोनों कोर्समेट थे।दोनों की डेटिंग शुरू हो गई, फिर उन्होंने शादी कर ली।दो प्यारी बेटियां हुईं।एना जो सिर्फ दो सालों के लिए लंदन आई थी, वापस डेनमार्क जा ही नहीं पाई।प्रेम ने उसे लंदन रोक लिया।डेनमार्क सिर्फ विजिट के लिए जाती थी, घूमने-फिरने, अपने परिवार और मित्रों से मिलने।मार्टिन भी कई बार उसके संग डेनमार्क हो आया था।उसे वह देश अच्छा लगा था।
दुर्भाग्य से एना से मार्टिन का दांपत्य बस पांच सालों तक चला।तलाक के बाद एना अपनी बेटियों को लेकर हमेशा के लिए अपने मुल्क डेनमार्क चली गई।मार्टिन हाथ मसलता ही रह गया।उसकी जिंदगी में जूलिया के आ जाने के बावजूद वह अपनी बेटियों को बहुत मिस करता था।अपराधबोध से भी ग्रसित हो जाता था कि उसकी बेटियां बिना पिता के साए के पल रही हैं।जूलिया उसके मनोभावों, बेटियों के प्रति उसकी संवेदना को पूरा समझती।इस समस्या का हल खोजने में उसकी मदद करती।सहसा दोनों ने एक फैसला लिया कि अगर उसकी बेटियां लंदन रहने नहीं आ सकतीं तो मार्टिन बेटियों के पास डेनमार्क जा सकता है।निर्णय चुनौतीपूर्ण था, मगर दोनों ने यह जोखिम उठाने का फैसला कर लिया।जूलिया और मार्टिन ने अपनी अच्छी-खासी नौकरियां छोड़ीं, जो कुछ भी उनके पास जमापूंजी थी, उसे लेकर डेनमार्क आ गए।दोनों को अपने-अपने परिवारों से पूरा आर्थिक, शारीरिक व भावनात्मक सहयोग मिला।उनकी खुशी में उनके माता-पिता की खुशी।
मार्टिन और जूलिया इंग्लैंड से डेनमार्क आ गए।एना के घर के पास ही एक फ़्लैट किराए में लेकर रहने लगे, ताकि इडा और लूसी को अपने मातापिता के घर आने-जाने में दिक्कत न हो।बेटियों को अच्छा लगा कि अब उनका पिता उनके घर के समीप ही था।एक और घर उन्हें मिल गया।मार्टिन और जूलिया को इस नए मुल्क में अपने को बसाना था।जब तक उन्हें कोई नौकरी मिलती, उन्होंने कोपनहेगन र्यूनिवर्सिटी में कोर्स ज्वाइन कर लिए।दोनों ने नई मास्टर डिग्रियां हासिल कीं।मार्टिन को एक टेक्नोलॉजी कंपनी में नौकरी मिल गई।जूलिया ने मास्टर डिग्री के बाद टीचिंग कोर्स भी किया।चार-पांच सालों तक पढ़ाई में खटने के बाद जूलिया एक इंटरनेशनल स्कूल में विज्ञान अध्यापिका बन गई।इडा और लूसी अपने माता और पिता के साथ अपना समय बिताती।कभी इस घर में, कभी उस घर में।
इस बीच डेनमार्क में स्वयं को आबाद करने के लिए हाथ-पांव मारने, पढ़ने-लिखने, नई डिग्रियां और नौकरियां प्राप्त करने के साथ-साथ मार्टिन और जूलिया के तीन संतानें भी हुई- जैक, लूना, सायमन।तीसरे बच्चे के समय वे कशमकश से भी गुजरे, क्योंकि मार्टिन की पहली पत्नी से दो बेटियाँ थीं।आज के जमाने में पांच बच्चों का पिता बनना उसके लिए आसान नहीं था।मगर जूलिया अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी, उसके माता-पिता भी अपने माता-पिता की अकेली संतान थी।उनका परिवार इस नाभकीय परिवार से ऊब गया था।क्रिसमिस आदि कोई भी त्योहार या उत्सव में वे इकठ्ठा होते तो वही गिने-चुने सदस्य।सभी ने यह सोचा कि अगली पीढ़ी में परिवार का विस्तार हो।यह जिम्मेदारी जूलिया पर आ गई।जूलिया भी बिना कोई भाई-बहन और कजिन के खुद को अकेला महसूस करती थी।मनुष्य के जीवन में सभी रिश्तों की अहमियत है।कम से कम उसके बच्चों को भाई-बहनों की कमी न हो।उसने इस कमी को तीन बच्चे पैदा करके पूरा किया।
पांच-छह वर्षों में मार्टिन और जूलिया डेनमार्क में अच्छी तरह व्यवस्थित हो गए थे।उन्होंने परिवार को बढ़ते देख फ्लैट छोड़ कर शहर से दूर एक काफी बड़ा, छह शयनकक्षों का घर खरीद लिया।इडा और लूसी अब अधिकतर उन्हीं के साथ रहने लगी, विशेषकर इडा तो उन्हीं के साथ रहती थी।अपनी मां से बस मिलने जाती थी।दोनों किशोर आयु की हो गई थीं।उनकी मां अपने दूसरे पति के साथ एक छोटे से फ्लैट में रहती थी।दूसरे पति से उनका एक बेटा भी हो गया था।हमेशा खुश और संतुष्ट रहने वाली, हर हाल में सकारात्मक सोच रखने वाली जूलिया सभी परिस्थितियों पर काबू पा लेती थी।फिर इडा और लूसी अपने तीन नन्हे, सौतेले भाई-बहन, जो उनसे अपेक्षाकृत उम्र में बहुत छोटे थे, को बहुत प्यार करती थी।जूलिया और मार्टिन जब कभी बाहर अकेले जाते वे जैक, लूना और सायमन की बेबीसीटिंग करती।कई दफा जूलिया और इडा एक साथ बाहर घूमने जाती।मार्टिन घर में अकेले बच्चों को देखता।इडा से सत्रह वर्ष बड़ी जूलिया कभीकभार उसकी सखी जैसी बन जाती।वह तब चौदह की थी।एक शाम एक रेस्टोरेंट में बैठ वे दोनों खा-पी रहे थे, उन अंतरंग पलों में इडा ने पहली बार उसे बताया था कि वह लड़का है।
जूलिया भौंच्च्की रह गई थी, मगर संयत बनी रही।उससे पूछा, ‘उसने कैसे माना कि वह लड़की नहीं है?’ इडा ने उसे बताया, ‘यह फैसला करना वास्तव में डरावना था।सबसे मुश्किल खुद को स्वीकार करना कि मैं कौन हूँ, और खुद को प्यार करना मैं जो कुछ भी हूँ।’
जूलिया ने घर आकर यह बात मार्टिन को बताई।मार्टिन ने उस बात को कोई तवज्जो नहीं दी और हवा में उड़ा दी।समय अपनी रफ्तार से व्यतीत होता गया।अगर परस्पर प्यार-सौहार्द हो तो इनसान कैसी भी जटिल परिस्थितियों से निपट लेता है।फिर भी कुछ ऐसे क्षण आ ही जाते कि परिवार में तनातनी हो जाती, मतभेद हो जाते।जूलिया इडा और लूसी को प्यार करती थी, हर हाल में उनका भला चाहती थी, उनके प्रति अपना और मार्टिन का फर्ज भी समझती थी, किंतु जब उसके अपने बच्चों की बात आती तो वह उनके अधिकारों के लिए अधिक सजग हो जाती।जरूरत पड़ने पर मार्टिन से भिड़ भी जाती।वह जैक, लूना, सायमन को इस जगत में लाई थी, उसने उन्हें पैदा किया था।उनके प्रति वह सबसे अधिक कर्तव्यनिष्ठ और संवेदनशील थी।सौतेली बेटियों – इडा और लूसी के प्रति कितना ही उदारवादी दृष्टिकोण अपनाने के बावजूद उसके भीतर की मां प्रकट हो जाती, और वह निष्पक्ष नहीं रह पाती।खैर इडा और लूसी के पास भी अपनी जैविक मां थी।भले ही बेटियां अपनी मां के साथ कम और सौतेली मां के साथ अधिक रहती थीं, किंतु जब एना को ऐसा लगता कि संबंधों के इस कॉकटेल में उसकी बेटियों के अधिकारों में कुछ आंच आ रही है तो वह मार्टिन और जूलिया के सामने तन कर खड़ी हो जाती।न चाहते हुए भी कुछ पारिवारिक मुद्दों पर दोनों- एना और जूलिया के बीच भिड़ंत हो ही जाती।सौत एना जूलिया के जीवन में सबसे कटु पहलू थी।कई चुनौतियों का सामना वह कर चुकी थी।आगे भी जिंदगी चुनौतियों से भरी थी।
मार्टिन भी चिंता का विषय बन गया था।वह अपनी बेटी इडा से प्यार करता था, लेकिन वह थोड़ा पारंपरिक व्यक्ति था।वह बहुत तनाव में आ गया।इडा पर पाबंदी लगाने लगा कि वह लड़कों के कपड़े नहीं पहन सकती।पुरुषों के डीयोडोरेंट नहीं लगा सकती।अगर उसे उसके घर में रहना है तो ढंग से रहे।जैसा वे चाहते हैं वैसे रहे, नहीं तो जाए अपनी मां के पास या कहीं और भाड़ में।बाप-बेटी की लड़ाई छिड़ जाती।
इडा जिरह करती, ‘ट्रांस लोग सभी के समान होते हैं।हमारे जीवन के आदर्श भी वही हैं, जो औरों के हैं- खुश रहना, सुकून से रहना, सफल होना, सम्मानित होना, लोगों की फिक्र करना।’
‘मुझे यह चिंता है कि यह जीवन तुझे कैसे प्रभावित करेगा? क्या तू अपनी पढ़ाई पूरी कर पाएगी? क्या तू नौकरी पा सकेगी? क्या तू एक जीवनसाथी ढूंढ पाएगी? क्या तेरे बच्चे हो पाएंगे?’
इडा चीखी, ‘यह कोई मेरा शौक नहीं है।मैं ट्रांस पैदा हुई हूँ।’
जूलिया बीच-बचाव करती।उसने इडा को थपथपाया, आश्वासन दिया कि वे उसके साथ हैं।इडा पांव पटकते हुए अपने कमरे में चली गई।अपना सामान पैक करके अपनी मां के पास चली गई।जूलिया मार्टिन का हाथ थाम कर सोफे पर बैठ गई।उसे समझाया कि उन्हें बहुत विवेक-समझदारी से काम लेना पड़ेगा, नहीं तो वे इडा को गंवा देंगे।वह अपना मानसिक संतुलन खो रही है।उसे उन सभी की जरूरत है।मार्टिन पहले तो बड़बड़ाता रहा, फिर खामोश हो गया।
उधर जब इडा अपनी माँ के पास पहुंची और उसके सम्मुख यह बात खोली तो मां एना ने भी इसे सहजता से नहीं लिया।कस कर विरोध किया। ‘मैं जब तुझे लेकर प्रेग्नेंट थी, चौथे महीने में ही डॉक्टर ने बता दिया था कि मेरे पेट में लड़की है, और तू लड़की पैदा हुई।मैं कुछ नहीं जानती।मैंने लड़की पैदा की थी, लड़का नहीं।छह सालों तक मैंने तेरा डायपर बदला, तेरी पोटी-सुसु साफ़ की, मुझे कभी नहीं लगा कि तू एक लड़की नहीं है।’
‘मुआ, मैं शरीर से लड़की ही हूँ, दिमाग से नहीं’, इडा बोली।
‘यह कोई किशोरावस्था में तेरे दिमाग में कोई विकार घुस गया।तुम टीनेजर पता नहीं क्या-क्या इंटरनेट पर पढ़ते-देखते रहते हो, इतने सनकी हो जाते हो कि अपना लिंग ही बदलने में उतारू हो जाते हो।’ मां पिता से अधिक विचलित हुई।बहुत देर तक वह बड़बड़ाती रही।फिर उसने मार्टिन और जूलिया के घर फोन लगाया और उनपर इल्जाम लगाने लगी कि इडा तो हर वक्त उन्हीं के साथ रहती थी।उनसे कुछ चूक हो गई इडा को पालने में।वे इडा को संभाल नहीं पाए।जूलिया क्या कहे, मन मसोस कर रह गई।एना उसे मुखर और आक्रामक लगती थी।किंतु इडा की अडिगता देख एना को भी हथियार डालने पड़े। ‘मुआ, जैसा मैं अंदर से महसूस करती हूँ, वैसा ही बाहर से करना चाहती हूँ।मेरी भावनाएं, मेरे विचार मेरे शरीर से भी मैच हो।मुझे आप सबका साथ चाहिए’, इडा अपनी मां से विम्रतापूर्वक बोली।
एना की आंखें नम हो गईं।इडा को वात्सल्य के आंचल में समेटते हुए बोली, ‘माता-पिता के लिए बच्चे सिर्फ बच्चे होते हैं, वे चाहे लड़का हो, या लड़की हो, या फिर कुछ और…।’
जिंदगी के सोलह साल तक एक लड़की के रूप में रहने के उपरांत इडा लड़का बनने जा रही थी।दूसरों के साथ चर्चा करने से पहले यह सुनिश्चित कर कि तू अपनी नई पहचान के साथ पूरी तरह से सहज है’, जूलिया ने उसे कहा।
इडा ने सहमति में गर्दन हिलाई।जो सबसे पहला काम उसने किया- अपना नाम इडा से इवान कर दिया।घर के सभी लोग उसे इवान पुकारने लगे।उसने एक एंडोक्रिनोलॉजिस्ट से परामर्श करना शुरू कर दिया, जो लिंग के मुद्दों में विशेषज्ञता रखते थे, और उनके मार्गदर्शन से उसने अपने शरीर को बदलना शुरू कर दिया।पहले इडा के माता-पिता ने उसे एक शिशु से किशोर होते देखा था, अब वे उसके एक लड़की से लड़के में परिवर्तित होते देख रहे थे।इस यात्रा में वे सभी उसके साथ थे, जो बहुत अनोखी बात थी।
हार्मोन थेरेपी शुरू हुई।महिला हार्मोन को अवरुद्ध कर टेस्टोस्टेरोन नामक पुरुष हार्मोन उसे दिया गया।टेस्टोस्टेरोन हारमोन उसके मस्तिष्क में सिग्नल भेजने लगा कि वह एक लड़का है, लड़का है।धीरे-धीरे उसका शरीर एक लड़की से लड़के में परिवर्तित होने लगा।उसकी दाढ़ी उगनी शुरू हो गई।आवाज गहरी हो गई, भगशेफ बढ़ा हो गया, शरीर में बाल बढ़ने लगे थे।शरीर के हिस्सों से चर्बी घटने लगी थी, जो सभी को चमत्कारी लग रहा था।
उसका सेक्स चेंज हो रहा था।सेक्स रिअसाइनमेंट थेरेपी से वह गुजर रही थी।अपनी यौन विशेषताओं को महिला से पुरुष में बदलने के लिए चिकित्सा प्रक्रियाओं से गुजर रही थी।डेनमार्क देश लिंग परिवर्तन की अनुमति देता है।आधिकारिक तौर पर भी उसका नाम बदल गया।सभी दस्तावेजों में उसका नाम इवान मर्फी चढ़ गया।टेस्टोस्टेरोन की पहली डोज से लेकर पुरुष बनने तक का पूरा सफर जूलिया ने तस्वीरों और वीडियो में कैद किया।
उसमें दिखाई देने वाले बदलाव सभी को हैरान कर रहे थे।उसकी बहन लूसी, उससे मजाक करती, तू मेरा अब भाई है, बहन नहीं।जब कोई शारीरिक श्रम वाले कार्यों को करने की बात आती, उसे झट से आवाज देती, ‘इवान, चल यह बक्शा उठा।’
‘ऐसा है, ब्रो… कल मेरी साइकिल रास्ते में पंचर हो गई।उस सड़क पर पड़ी है।उसे उठा कर ठीक कर दे।’
इवान गुस्से से अपनी बहन को आंखें तरेरता।मगर अपनी छोटी बहन का यह कहना उसे मानना ही पड़ता।
जूलिया ने ट्रांस और ट्रांसजेंडर पर ऑनलाइन खोज करके बहुत सारे तथ्य और उपयोगी जानकारी इडा के लिए एकत्र की जो उसके सवालों के जवाब दे सकते थे।दुर्भाग्य से, बहुत से लोग समझ नहीं पाते हैं कि ट्रांस होने का क्या मतलब है।कोई भी उसके बारे में कुछ बुरा कहता है तो वह उसे हथौड़ा मारने के लिए तैयार रहती।
उसके लिए एक पेशेवर मनोविज्ञान चिकित्सक की मदद ली।इंटरनेट, किताबें और वीडियो महत्वपूर्ण संसाधन हैं, लेकिन एक पेशेवर लिंग चिकित्सक को प्रतिस्थापित नहीं कर सकते।मनोविज्ञान चिकित्सक इडा को किसी भी अनसुलझे लिंग चिंताओं से मुक्त करवाने में मदद करने लगा।जूलिया ने ऐसे माता-पिता से भी संपर्क साधा जिनके पास अपने बच्चों के लिंग परिवर्तन के अनोखे अनुभव थे।
जूलिया और मार्टिन ने उसके शिक्षकों और स्कूल काउंसलर से भी बात की।उन्होंने आश्वासन दिया कि स्कूल इडा का पूरा समर्थन और सहयोग देगा।
काफी जद्दोजहद और संघर्षों का सामना करते हुए प्रक्रिया तीन-चार साल तक चली और अंत में महंगी प्रक्रिया- सर्जरी हुई।दो अलग-अलग प्रक्रियाओं में उसके स्तन, गर्भाशय और अंडाशय को हटा दिया गया।जननांग पुनर्निर्माण के तहत शरीर के अन्य हिस्सों से ऊतक का उपयोग करके एक नियोफालस का निर्माण किया गया जो यौन उत्तेजना को उत्पन्न करता है।देखते ही देखते इडा महिला से पुरुष बन गई।महिला से पुरुष लिंग-पुनर्मूल्यांकन शल्य चिकित्सा बड़ी कठिन और दर्दनाक थी, मगर वह पुरुष बन चुकी थी।
इडा अपने कपड़ों और सौंदर्य भी बदल कर अपना रूप निरंतर संवार रही थी।वह पुरुषों की पोशाकें और जूते खरीदने और पहनने लगी थी।अपनी भावभंगिमा मर्दाना बनाने की कोशिश करती।जब भी वह बाहर जाती तो मर्दाना जींस और ब्लेजर में।उसकी मार्गदर्शक जूलिया उससे कहती, ‘याद रखो, सबसे महत्वपूर्ण यह है कि तू सहज महसूस करो।’
भरोसेमंद परिवार और दोस्तों के अलावा भी इडा को एक ऐसी सहायता प्रणाली चाहिए थी जो उसी की तरह ट्रांस हो, जो उसके लिए विशेष रूप से सहायक हो सके, जिसके सलाह-मशवरे दूसरे ही स्तर के हों।उसने जूलिया की मदद से ऐसे समूहों की तलाश शुरू कर दी।
डेनमार्क में सेक्स पर एक प्रतिनिधि सर्वेक्षण किया गया था।सर्वेक्षण ने डेनिश आबादी में लिंग पहचान की जांच की।परिणामों के अनुसार ०.१ प्रतिशत डेनिशों ने खुद को ट्रांसजेंडर पुरुषों या ट्रांसजेंडर महिलाओं के रूप में प्रस्तुत किया।ट्रांस व्यक्ति भी सिर्फ एक प्रकार के नहीं, दो प्रकार के होते हैं- बाइनरी और गैर-बाइनरी।गैर-बाइनरी, जो स्वयं को नर या मादा के रूप में नहीं देखते।उनकी संख्या थोड़ी अधिक थी।सो, आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा ऐसा भी है जो स्वयं को पुरुष और महिला लिंग की पहचान में फिट नहीं करता।
धीरे-धीरे इडा की जिंदगी में कई ट्रांसजेंडर आ गए।इडा को अपने जैसे लोग काफी मिल गए।एक दूसरे जगत से वह जुड़ गई।वह ट्रांसजेंडरों के समूह में शामिल हो गई थी।ट्रांस समुदायों में उसका उठना-बैठना शुरू हो गया था।
एक दिन वह भावुक होकर अपनी सौतेली माँ जूलिया से बोली, मुझे बहुत लोगों ने सहयोग दिया, बहुतों से समर्थन मिला मगर सबसे ज्यादा आपने मुझे समझा, मुझे संबल दिया। ‘आप मेरे साथ ट्रांसजेंडर मीट में आती हो।कितने ही ट्रांस मुझसे चिढ़ जाते हैं कि मेरी मां मेरे साथ है।मुझे आप पर गर्व है।’
जूलिया ने उसे अपनी बांहों में भर लिया।दो जैविक बेटों की मां जूलिया उसे अपने से चिपकाते हुए बोली, ‘इवान, तू मेरा सबसे बड़ा बेटा है।’
दोनों की आंखे छलक गईं।मार्टिन को जिन बातों का भय था, वह सब निर्मूल हुआ है।इवान की पढ़ाई अच्छे से पूरी हुई।नौकरी खोजने में कोई परेशानी नहीं हुई।और उसे एक हमसफर भी मिल गया, अपने ही जैसा, ट्रांसजेंडर।
संपर्क : Islevhusvej 72 B, 2700 Bronshoj, Copenhagen, Denmark, Email: apainuly@gmail.com Mob : + 45 71334214
लगा अख़बार की खबर पढ़ रहीं हूँ कहानी नहीं।
इस विषय पर बहुत अच्छी कहानी बन सकती थी।
लेखिका अर्चना पैन्यूली को विगत काफी सालों से पढ़ती चली आ रही हूँ। अनछुए विषयों पर लिखी उनकी रचनाओं में एक नयापन और शोध दिखाई देता है, जो पाठकों को पढ़ने पर मजबूर कर देता है…वागर्थ पत्रिका में प्रकाशित कहानी ‘मैं लड़का हूँ’ इसी की एक कड़ी है…समाज क्या जिस जन्मदाताओं को भी जिसको स्वीकार करने में जद्दोजहद करनी पड़ती है, उस विषय पर लिखना और उसके साथ न्याय करना, यह अर्चना पैन्यूली की कलम ही कर सकती है…
सुधा थपलियाल
जिस विषय को समाज, यहाँ तक की जन्मदाता तक स्वीकार नहीं कर पाते, उस पर लिखी कहानी ‘मैं लड़का हूँ’ ने झकझोर के रख दिया…साधुवाद लेखिका अर्चना पैन्यूली को इस इस विषय पर विस्तृत जानकारी देने के लिए…
इवान की कहानी से समाज में उपेक्षित ,और बहिष्कृत मुद्दे पर बहुत सारी जानकारी मिलती है।।हर बच्चे के लिए पहला समाज उसका अपना परिवार होता जब वहीं से यह सच्चाई अस्वीकार हो जाती है , तो बाकी का किया कहना।आप जैसे लेखकों ने इस विषय में लिख कर एक तरह से इस समाज को स्वीकार करने में अहम भूमिका निभाई है।बहुत बहुत बधाई आपको।