सुस्मेष चंद्रोत
चर्चित मलयालम लेखक। फिल्म लेखन और निर्देशन से भी जुड़े। कई पुरस्कारों से सम्मानित।

 

आज या कल मेरी बेटी एलमा अपने प्रेमी नौफल के साथ घर छोड़कर भाग जाएगी।

पिछले तीन सालों से उनके बीच प्रेम संबंध जारी है। काफी रात गए उसने यह तय किया होगा। इस बात का मुझे यकीन है। मैं उस समय भी सोया नहीं था। कमरे की खुली खिड़की से चांदनी आ रही थी। पेशाब करने जाते वक्त जो बत्ती जलाई थी उसे भी बुझाना भूल गया। वह वैसे ही कमरे में जल रही थी।

बिजली का खर्च और ऊर्जा का नष्ट होना दोनों दिल को कचोट रहा था। कुछ दिनों से जो उत्साह बुझा हुआ था वह भी मुझे बिस्तर से उठने नहीं दे रहा था। इसीलिए बाथरूम से झलकती रोशनी को यों ही देखता हुआ लेटा रहा। तभी कमरे का दरवाजा खुलने का ध्यान मुझे आया। एलमा का चेहरा आधी सुराख से मुझे दिखाई दे रहा था।

मन में एक बड़ा बुदबुदा फूलते हुए मुझे अंदाज हुआ। एलमा को ठीक से दिखाई देने के लिए मैंने अपना चेहरा जरा मोड़ कर रख दिया। तब देखा कि वह अपना चेहरा कुछ खींचकर फिर झांककर देख रही थी। तब से बहुत देर तक उसका चेहरा वहीं पर था। जैसे रखा हो मुझे दिखाई देने के लिए। मैं आंख खोलकर लेटा हूँ यह शायद वह नहीं जानती थी, इसका पूरा विश्वास है मुझे।

मुझे एलमा में बचपन में सबसे पहले आए बदलाव की याद आई। वह एक साल की थी तब वह घटना घटी थी। लड़की बड़ी हो रही थी तो हमने उसके लिए एक अलग कमरा दिया। ताकि वह उससे रचपच जाए। तब तक हम सब एक साथ सोते थे।

उस दिन का दुख मुझे सदा याद रहता है। अखबार रखकर डाइनिंग टेबल पर चाय का कप रखकर मैं नीना को देखता रहा। फिर सिर मोड़ कर देखा। शयनकक्ष में हमारे उठने के बाद रूठ कर लेटने वाली एलमा चादर और तकिए के बीच तब भी सो रही थी।

‘अभी से चाहिए?’

‘जरूर चाहिए’, नहीं तो वह हमसे अलग हो जाएगी और नाराज हो जाएगी। एक ओर बड़ी होने की घबराहट और साथ-साथ यह भी कि वह सह नहीं पाएगी। अभी से अभ्यस्त हो जाएगी तो उसे यह नहीं लगेगा कि हमने उसे अलग कर दिया। नीना की बात में भी कुछ है, जानकर मैंने उसे टोका नहीं। दो व्यक्तियों के बीच की रात सहसा विजन बन जाने की बात मैंने सोची। एलमा के सो जाने के इंतजार में गुजारी रात, कौतूहल और जोश, सब कुछ खत्म हो जाएगा। दिन भर की बातों को रात में एलमा नींद में बुदबुदाती थी। वह खुशी भी अब नहीं मिलेगी।

नीना ने पूछा, ‘दुखी हो गए?’

मैंने कहा, ‘वह छोटी है न नीना।’

‘हां! छोटी है। हमारे लिए तो वह हमेशा छोटी ही रहेगी। केवल हमारे लिए।’

नीना ने उस दिन जो कहा था वह आज सच होने जा रहा है। नौफल के साथ जीने का फैसला लेने के कारण ही वह दरवाजे के पास आकर  मुझे और नीना को इस तरह देख रही है। नहीं तो रात के साढ़े तीन बजे यहां इस तरह देखने की क्या जरूरत थी उसे।

तीसरे साल में जैसे उसने दूध पीना बंद कर दिया था वैसे ही उसके दसवीं साल में दूसरे कमरे में सोने की आदत भी नीना ने सिखा दी थी। धीमी आवाज में मैंने उसको यह एहसास दिलाया कि मैं उसके पक्ष में हूँ। मात्र इसलिए कि बेटी के सामने नीना अकेली न हो जाए। कई रातों में नींद से उठ कर रोते हुए एलमा हमारे कमरे में आ जाती थी। कभी-कभी मैं उसे उठाकर कमरे में ले आता था। जैसे उसका रोना सुनकर जाकर उठाया हो। कितनी भी कोशिश के बाद मैं पकड़ा जाता था नीना के सामने। फिर भी बार-बार रोती हुई एलमा को साथ ले जाता था। सुलाने के बाद मेरे विरोध को अनदेखा कर नीना उसे उसके कमरे में लिटा दिया करती थी। सुबह आश्चर्य भाव से और थोड़े नाराजगी से एलमा उठकर आती तो उसे अपने से सटाकर चुम्मा देकर कल रात अकेले सोने का प्रोत्साहन भी देती थी। एलमा को फिर यह आदत-सी पड़ गई। बड़ी होने पर वह विरले ही हमारे बीच आकर सोती थी।

इसी तरह की एक रात को मैंने जाना कि वह कितनी बड़ी हो गई है। वह भी एक चांदनी रात थी। नीना को बाएं पैर में दर्द शुरू हुआ था। बहुत समय तक खड़े होकर पढ़ाने में नीना असमर्थ हो गई थी। रात को पैर हिलाते हुए वह सो नहीं पा रही थी। लगातार यही स्थिति थी। मैं उसके पीठ पर और घुटनों पर वेदना संभारी का लेप लगाता था हमेशा। उस दिन भी उसी तरह नीना दवा लगाकर सोई थी कि दरवाजा धीरे खोलते हुए एलमा झांकी।

‘पापा’ 

एलमा ने धीरे से पुकारा। मैंने देखा वह अंदर आने की अनुमति पाने के लिए वहीं खड़ी है। नीना के जाग जाने का अंदेशा था मुझे। दरवाजे के पास जल्दी से आकर मैंने दबी आवाज में पूछा-

‘क्यों, अभी तक सोई नहीं?’

‘नींद नहीं आ रही पापा।’

‘क्या हुआ, सिर दुख रहा है?’

उसके माथे पर मैंने हाथ रखा। उसने मेरा हाथ कसकर पकड़ लिया कि कहीं मैं हाथ उसके माथे से उठा न लूं। बुखार तो नहीं है। मैंने कहा, तब धीमी आवाज से उसने मुझसे विनती की-

‘क्या मैं आज आपके साथ सो जाऊं पापा?’

उसके माथे से हाथ हटाकर मैंने पीछे मुड़कर नीना को देखा। चांदनी मुह पर ओढ़े वह सो चुकी थी।

‘मां का पैर दुख रहा है। वह बस अभी सोई है।’

‘कोई बात नहीं पापा, मां को छुए बिना लेट जाऊंगी।’

मैंने टोका नहीं। दरवाजा बंद कर एलमा हमारे बीच आकर लेट गई। लेटते समय भी मैंने उसके गाल पर हाथ रख कर देखा। बाहर कुछ बीमारी दिखाई नहीं दी। ‘सो जाओ’ कह कर करवट लेकर उस ओर लेट गया जहां से एलमा का मुख दिखाई दे रहा हो।

एलमा सोई नहीं थी। बस आंखें बंद करके लेटी रही। यही नहीं कभी-कभी वह दीर्घ निश्वास भी ले रही थी। लगा उसे कोई समस्या है। वह कभी अपनी मां की ओर और कभी मेरी ओर करवटें बदल रही थी। मैं समझ गया कि वह सो नहीं पा रही है। बचपना जाकर बड़प्पन आने वालों की तरह बेचैन लेटी थी एलमा। मुझे लगा कि शायद वह उठ कर चली जाएगी। एलमा पूर्ण रूप से हमसे अन्य होती जा रही एक स्त्री बन गई है। ऐसी एक सोच मुझमें जगने लगी। समय बीतते चांदनी खूब निखरने लगी। नीना गहरी नींद में है। बीच-बीच में पैर हिला भी रही है। मैं और ऐलमा सोए नहीं थे। अंत में उसको छोड़ मैं सो गया।

अगले दिन मैंने एलमा से कहा कि कॉलेज से लौटते वक्त मेरे ऑफिस में आए। एलमा साढ़े चार बजे चकित सी आ पहुंची। उसे लेकर मैं सीधा बच्चों के मैदान में गया। जब ऐलमा छोटी थी तब मैं और नीना उसे इस तरह के मैदान में ले जाया करते थे। उनमें से एक मैदान आज भी वैसे के वैसे ही है। बस थोड़ा सा आधुनिक उपकरण वहां स्थापित कर दिया गया।

‘क्या हुआ पापा, आज पार्क में क्यों?’

एलमा ने पूछा तो बात शुरू करने के लिए मैंने उससे पूछा, ‘इन सबमें खेलने का मन करता है तुम्हें अब भी?’

‘क्या हो गया है पापा आपको? चाहें तो इस झूले में झूल लेते हैं। पर उसके टूट जाने का डर है। मोटी जो हो गई हूँ।’

कहकर वह हँसने लगी तब मैंने चारों ओर देखा। कोई नहीं था वहां। मैंने जल्दी ही ऊपर की सीढ़ी चढ़कर बच्चों के फिसलने के स्किडर पर बैठ गया और पैरों को आगे कर नीचे की ओर फिसल गया। नीचे बालू था। उस पर आकर खड़ा हुआ तो मुझे पता नहीं किस तरह का चैन और हलकापन महसूस हुआ।

‘पापा को आज क्या हो गया है?’ एलमा ने पूछा।

 ‘शुरू होते ही हमारा पैर जमीन को छू लेता है। हम जैसों को तो इससे भी ऊंचा स्किडर चाहिए।’

अबकी बार वह मुस्कराने लगी। मैं दो तीन बार उसपर चढ़ा और फिसला। उसके बाद गोल झूले में बैठ कर दो बार घूम लिया।

मुझे नहीं मालूम था कि एक बच्चे की तरह मैंने ऐसा क्यों किया? अंत में मन कुछ हल्का पड़ा तो मैंने उससे पूछा, ‘बताओ, कल रात तुम क्यों नहीं सोई?’ बिना कुछ उत्तर दिए उसने मेरी ओर देखा। मैं बोला, ‘यह जरूरी नहीं कि इस प्रश्न का उत्तर दो, लेकिन तुम बीस साल की लड़की हो इसका बोध मुझे कल रात हो गया है। जब तुम बिना सोए लेटी थी। पहले तुम सिर दर्द कहती, तो तुम्हारी मां और मैं कहता था कि बच्चों को सिर दर्द नहीं आते। ठीक उसी तरह अब मैं कह नहीं पाऊंगा। यह मुझे कल पता चल गया।’

एलमा एकदम चुप हो गई। जवाब के लिए मैंने उसे जबरदस्ती भी नहीं की। अगर कुछ कहना है तो उसे स्वयं कहने दो। इसके बाद रातों में जब भी मैं पेशाब करने उठता तब एलमा के कमरे में जाकर उसे हमेशा देखा करता था। एलमा का कमरा अंदर से बंद करके सोने की आदत थी। फिर भी एक दिन उसने मुझसे पूछा-

‘हर रात पापा दरवाजे पर आकर क्यों देखते हो? क्या यह देखते हो कि मैं कहीं चली गई?’

सच में मैं थोड़ा घबरा गया था। मेरा जाकर दरवाजे पर देखना उसने जान लिया तो जरूर वह सोई नहीं होगी। फिर भी मैंने यह नहीं पूछा। उसके प्रश्न का जवाब भी नहीं दिया। बस हँसता रहा। लेकिन एक हफ्ते बाद एक दिन एलमा मेरे ऑफिस में आ गई।

शहर की सुख सुविधाओं के बीच बहुमंजिले व्यापार केंद्र की सोलहवीं मंजिल के होटल में शाम के वक्त एलमा ने मुझसे कहा, ‘पापा, अपनी मर्जी से अगर मैं किसी से प्यार करूं, तो वह कसूर होगा क्या?’

हरी सब्जी काटकर भाप चढ़ाकर बनाती रोटी की गर्मी और चाय की पत्ती की महक दोनों कुछ देर के लिए मैं भूल गया। बच्चे को अलग कमरे में सुलाने को जब नीना ने कहा था तब जो आघात मुझे हुआ था उससे बड़ा आघात अब लग रहा था। सोच-समझकर उस सवाल का उत्तर देने की जगह मैं खिन्न रह गया। 

‘तुम किससे प्रेम करती हो?’

‘वह मेरी सहपाठी है। सीनियर है। मैंने हां या ना नहीं कहा है।’

जल्द ही मुझे गुस्सा आ गया।

‘झूठ मत बोलो। तय करके तुम मेरे सामने बैठी हो। है कि नहीं?’

एलमा पीली पड़ गई। फिर मैंने कुछ नहीं पूछा। एलमा ने कई बार मना किया पर मुझे विश्वास नहीं हुआ। दो दिन तक मैंने एलमा से बात नहीं की। नीना ने एलमा से पूछा कि तुम पापा से बात क्यों नहीं करती, तो उसने बेहिचक जवाब दिया, पापा ही मुझसे बात नहीं करते। नीना ने मुझसे भी पूछा, ‘क्या आप दोनों में झगड़ा हुआ है?’

‘नहीं।’

‘फिर बात क्यों नहीं करते। आप तो पहली बार उससे बिना बात किए रह रहे हो।’

मैंने जल्दी से उत्तर दिया, ‘वह किसी को चाहती है। निश्चय करने के बाद उसने मुझसे राय पूछी थी। बड़ी हो गई है वह अब। मैं क्या कहूँ।’

इसके बाद एलमा से नीना ने झगड़ा किया। उन सबमें मैंने टांग नहीं गड़ाई।

‘मुझे किसी से प्यार नहीं है, मेरी उम्र में किसी से प्यार करना गुनाह है क्या? बस इतना पापा से पूछा था और इस तरह से पूछने का अर्थ यह नहीं कि मुझे किसी से रिश्ता जुड़ गया है।’ इस तरह एलमा नीना से कह रही थी। उस दिन वह विषय वहीं खत्म भी हो गया।

फिर दो वर्ष तक एलमा हमसे कुछ अलगाव दिखाती रही। हमें ऐसा महसूस हुआ। आखिर ऐलमा हमारी ही बेटी है न।

ऐलमा अब भी दरवाजे पर वैसे ही खड़ी है। वह शायद आखिरी बार हमें देखने के लिए आई है। यह विचार मुझमें जैसे ही आया एलमा ने अपना मुंह वहां से हटा लिया। मानो उसने यह जान लिया हो। एलमा को रोकने के लिए अंदर से कोई मजबूर कर रहा है। उठने के लिए और एलमा को बुलाने के लिए दिल किया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। मैं बस उसी तरह लेटा रहा।

अनुमान से मैंने पंखा बंद कर दिया। अचानक कमरे में खामोशी छा गई। उसी के लिए मैंने ऐसा किया भी था। सीढ़ियां बिना आवाज के उतरने की और आगे का दरवाजा या रसोई का दरवाजा खोल कर उसके जाने की आवाज सुनने के लिए मैंने अपने कानों को सतर्क रखा।

कुछ देर पहले जो सुना था शायद वह एक बाइक की आवाज़ होगी। बाहर फाटक पर नौफल का बाइक होगा और एलमा बिना आवाज के घर छोड़ जाएगी। ऐसी मैंने कल्पना की। कल रात आंगन के पौधों को सींच कर होस को रास्ते से हटाया कि नहीं? मैं चिंतित हो गया।

घबराते हुए जाते वक्त एलमा काले होस से टकराकर गिर तो नहीं जाएगी। उसे चोट आएगी, क्या यह कहने मैं जाऊं तो वह नाराज तो नहीं हो जाएगी। यही नहीं, अगर ऐसे दिखाई दिया तो उसे रोकना ही पड़ेगा मुझे। कुछ भी करने की जरूरत नहीं पड़ी। उसके बाद कोई आवाज वहां से नहीं आई। फिर भी मुझे नींद नहीं आई।

एक महीने पहले की बात है। एलमा ने अपने मन की बात खुलकर मुझसे कहा। हमसे एक सवाल के रूप में उसने बात आरंभ की।

हिंदू धर्म के अनुसार मातापिता को संभालने का दायित्व बेटों को है कि नहीं?’

मैं और नीना आपस में मुंह ताकते रह गए। मैंने कहाहिंदू धर्म के अनुसार ही नहीं, बल्कि दुनिया की नीति भी यही है। बेटा नहीं है तो बेटी को संभालना पड़ेगा। संभालने का दायित्व बेटी को है, तो उसके पति की अनुमति चाहिए या नहीं? जरूर उस तरह के एक लड़के को ही मातापिता चुन कर देते हैं। कोई लड़की अगर अपनी मर्जी से शादी करे तो उसके मातापिता क्या करेंगे?’

पेट के अंदर एक बुलबुला डर बनकर उभर कर आ गया। फूटे बिना वह बड़ा होता ही रहा। सहसा नीना ने पूछा, ‘अरी …बोल तेरा इरादा क्या है?’

एलमा मेरी ओर देख कर बोली, ‘मैं उससे शादी करने जा रही हूँ, जो आप को संभालेगा नहीं और इस शादी से मैं पीछे नहीं हट सकती।’

अबकी बार बुलबुला फूटकर नष्ट हो गया। पेट में डर का झाग उभरता अनुभव हो रहा है।

‘कौन है वह?’ नीना ने पूछा।

‘मां आप नहीं जानती। कॉलेज में वह मेरा सीनियर था।’

मैं सब समझ गया। मैं एलमा को ही देखता रहा।

‘उसका नाम नहीं है क्या?’

‘है, नौफल।’

पागल सी नीना उठ खड़ी हुई और चिल्लाई- ‘मार दूंगी तुझे। तू नहीं जानती मुझे।’

मैंने नीना को रोका। फिर अधिकतम शांत होकर एलमा से पूछा-

‘दो वर्ष पहले का वही लड़का है न?’

मुझे एलमा का उत्तर सुनने की जल्दी थी। अगर ‘नहीं’ कहा तो इस समस्या को मैं जल्दी सुलझा सकता हूँ। मगर एलमा का उत्तर ‘हां’ था। उसके उत्तर से मैं चूरचूर हो गया। तीन या इससे अधिक वर्ष तक यह रिश्ता बढ़ चुका है। तो वह कहां तक पहुंच गया होगा, यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ। मैंने मेज पर हाथ रखकर सिर उस पर रख लिया।

एलमा को नीना द्वारा गाली देने की आवाज और झकझोरने की आवाज मुझे सुनाई दे रही थी। मैं समझ गया कि बड़े दर्द के साथ वह कुर्सी को हटाकर दुखते पैरों से इधर-उधर चल रही है। नीना का गुस्सा और दुख रोष बनकर धीरे-धीरे मेरे भीतर भी उमड़ने लगा। अंत में नीना ने फैसला सुनाया।

‘एलमा, तूने बस मेरा यही रूप देखा है। अभी इसी वक्त खत्म कर दो सब कुछ। यह मत समझना कि तेरी मर्जी को स्वीकार कर लेंगे हम।’ वह मेरी खामोशी के लिए एक चेतावनी थी।

 मैंने सिर उठाकर देखा। एलमा न रोई, न नाराज हुई। सीढ़ियों पर बैठी रही। वह किसी का सामना नहीं कर रही थी। शयनकक्ष में सिर पर हाथ रखे नीना बैठी थी।

मैं सोचने लगा कि नौफल कैसा लड़का होगा। अगर उसने एलमा से यह कहा होगा कि मेरा और नीना की देखभाल वह नहीं करेगा तो इसका अर्थ यह हुआ कि अब हमें एलमा भी नहीं मिलेगी। अगर ऐसा है तो एलमा ने उसकी सहमति कैसे दी। क्या वह एक सही रिश्ता है?

तभी एलमा खड़ी हो गई और मेरे पास आकर बोली-

‘पापा’

उसकी आवाज सुनकर भी मैंने उसकी ओर नहीं देखा। उसने बात शुरू करने के लिए ही मुझे उस तरह पुकारा था। यह मुझे पता चल गया।

‘साढ़े तीन वर्षों से मुझे उससे प्यार है। किसी के रोकने पर भी मैं उसी के साथ ही जाऊंगी। अगर वह आपको नहीं जंच पाएगा तो आप मुझे क्षमा करें।’

‘क्या कहा उसने?’

पीठ पर चमकती बिंदी लगाए एक काली बिल्ली की तरह नीना दौड़कर पास आ गई। उसकी सूरत और सीरत मुझे अपरिचित सी लगी। सीधे खड़े होकर एलमा ने कहा

आप मुझे नहीं रोक सकती। चाहिए तो मार सकती हैं। वह भी आसानी से नहीं कर सकतीं, क्योंकि आपसे अधिक ताकत मुझमें है। कानून और न्याय यहां पर है। मैं नौफल के साथ चली जाऊंगी।

नीना ने तड़ाक से एलमा को एक चांटा लगा दिया। उसकी आवाज से मैं भी चौंक गया। मैंने देखा कि एक फेंकी हुई कठपुतली की तरह एलमा सीढ़ियों पर जाकर गिर पड़ी है। जल्दी से उठकर मैंने नीना को हटा दिया। गिरने पर एलमा को क्या कुछ हो गया होगा, इस बात की मुझे चिंता हुई। उसके मुंह से खून आ रहा था। तब भी वह शांत पड़ी रही।

नीना को समझाते बुझाते मैं उसे कमरे में ले जाकर दरवाजा बंद कर दिया। नीना बड़े जोर से कांप रही थी और थरथरा रही थी। मैंने उसकी पीठ पर धीरे-धीरे हाथ फेरा। बालों को सहलाया। माथे पर होट सटाकर चूमते हुए कहा-

‘धीरे-धीरे सबकुछ पूछ कर समझ लेंगे। तुम दोनों एक जैसे बोलती रहोगी, तो और कोई कैसे बोलेगा। थोड़ी देर के बाद मैं खुद पूछ लूंगा।’

‘साहस तो देखो उसका। इतने साल हमने उसकी देखभाल क्यों की? यही सुनने के लिए?’

‘उसे रोकने से कोई फायदा नहीं। वह जरूर चली जाएगी। उसने कहा था न कि वह जाएगी तो जरूर जाएगी। हम कोशिश कर सकते हैं कि वह न जाए। बस हम दोनों इतना ही कह सकते हैं कि कोशिश कर सकते हैं।

नीना को समझाने में मुझे बहुत समय लग गया तब तक मैं भी बहुत थक गया था। बढ़ती उम्र का कमजोर दिमाग। कौन सही है यह समझ न पाने की अवस्था में मैं पहुंच रहा हूँ। थके पैरों से जाकर मैंने ब्लड प्रेसर की दो गोली खा ली। दरवाजा खोल कर मैं बाहर निकला। तब भी एलमा वहीं बैठी हुई थी। उसके गाल और होठों पर अभी भी खून सूखे पड़े थे।

मैं जाकर एलमा के सामने खड़ा हो गया। चेहरा उठाकर उसने मुझे देखा। फिर धीरे से उठ गई। उसकी आंखों में नीना का बनाया भय एक पिल्ले की तरह चलता हुआ मैंने पाया।

‘मुंह धोकर दवा लगा ले और जाकर सो जा। कल बातें करेंगे।’

एलमा ने कहा, ‘पापा तुम डरो मत कि मैं मर जाऊंगी, मुझे उसके साथ जीना है।’

सीढ़ियां चढ़ते हुए वह ओझल हो गई। मैं देखता रह गया और मैं चौंक भी न सका।

उसके बाद भी कई दिनों तक इन बातों पर मैं सोचता रहा। इसी बात को कहने के लिए पहली बार नौफल यहां आया था। नौफल से मिलने के लिए नीना तैयार नहीं थी। लेकिन मैंने उसे मना कर अपने पास बिठा लिया। एलमा की समस्या और पैर का दर्द दोनों ने उसको थका दिया था। उस दिन की घटना के बाद मां बेटी आपस में बातें नहीं करते थे।

‘अंकल, मैं यहां आकर रह नहीं सकता या फिर उसे लेकर भाग जाने का इरादा भी नहीं है मुझे। आपके मान जाने से कोई फायदा नहीं है। मेरे परिवारवाले भी नहीं मानेंगे। उसके लिए एलमा को अपना धर्म परिवर्तन करना पड़ेगा।’

नौफल ने शांत होकर कहा। हमारी बातचीत किस तरह आगे बढ़ेगी इसके बारे में मैंने नीना को पहले ही समझा बुझा दिया था। कभी भी गुस्से से टूट न जाना। यह भी समझा दिया था। उसे पिछले अमावस की पूरी रात बस यह समझाने के लिए मैंने समय लगाया था। मौन लाचार बैठी थी वह। मेरी अवस्था भी इससे भिन्न नहीं थी।

नौफल ने आगे कहा, ‘मेरी दो बहनें अभी पढ़ रही हैं। उनकी शादी करवानी है। तो एलमा को धर्म परिवर्तन करना होगा। तब तक हम दोनों का यहां इस तरह आना-जाना ठीक नहीं होगा। कृपया आप दोनों यह मान लें।’

मैंने और नीना ने कुछ नहीं कहा। अपनी कार में ही नौफल आया था घर। वह बाहर खड़ी चमक रही थी। मेरे लगाए पौधों पर तितलियां आकर बैठकर अपने पंखों की चमक देख रही थीं।

मैंने कहा, ‘नौफल, तुमने जो कुछ अभी हमसे कहा उन सबका जवाब मानव होने के नाते मुझे मौन रहकर नहीं देना चाहिए। यह हम दोनों भलीभांति जानते हैं। लेकिन हमारी बेटी ने तुम को अनुमति दे रखी है कि कुछ भी हमसे कह दो। हम निस्सहाय हैं। नौफल तुम जा सकते हो। एलमा से बातें करके जो चाहो वह कर लो।

तब मैंने ध्यान दिया की नीना नौफल की ओर देख रही थी और सामना न कर पाते हुए उसने सिर झुका लिया।

एलमा ने नौफल के पीछे दबाकर उसे उठाया। नौफल की कार चल पड़ी। तब तक एलमा द्वार पर खड़ी रही। नौफल एक अच्छा लड़का होगा और कालांतर में अपना दायित्व सब निभाकर हमारे घर से शायद जुड़ जाएगा। ऐसा मुझे लगा। नीना को भी मैं बार-बार यही समझाता रहा। लेकिन तब तक का जीवन हमारे लिए भयानक और एकाकी होगा, यह बात पक्की है।

एलमा के द्वार से लौटते वक्त भी मैं और नीना वहीं बैठे हुए थे।

मैंने नीना से पूछा – ‘क्या तुम्हें चाय पीनी है?’

उसने सिर हिला दिया कि नहीं चाहिए।

अंदर की ओर जाती हुई एलमा से मैंने कहा, ‘मुझे एक कप चाय चाहिए।’

एलमा रसोई में चली गई और स्टोव जलाने की आवाज मुझे सुनाई दी। थोड़ी देर बाद चाय लेकर एलमा आ गई। कुछ कहे बिना उसने मेरी ओर चाय बढ़ा दी।

चाय का कप लेकर मैंने एक चुस्की ली। जो ऊर्जा निकल गई थी वह पुन: बढ़ती हुई मुझे महसूस हुआ। मैंने कहा, ‘जितना क्रोध और गुस्सा तुम्हारी मां को आ रहा है उतना मुझे नहीं आ रहा है और मैं ऐसा व्यवहार नहीं कर रहा हूँ इसका मतलब यह नहीं कि उससे ज्यादा मुझे तुमसे प्यार है। यह मत समझना तुम।

एलमा ने मेरी ओर देखा। उसके गाल पर तमाचे का निशान अब भी पड़ा हुआ है। नीना कहीं और देखते हुए बैठी थी। मैंने कहा, ‘तुम जब भी हठ करके रोती थी, तो नीना अपने सीने से लगाकर गालों पर या माथे पर होठ दबाए तुम्हारा रोना बंद करवाती थी, जो तुम्हारे बचपन से मैं हमेशा देखते आ रहा हूँ। एक जादू सा लगता था मुझे।’ नीना के आह भरने की आवाज मैंने सुनी। अगले पल कुछ भी होने की संभावना है इस डर से मैंने बात पूरी की, ‘ ऐसा कोई फैसला तुम नहीं उठाओगी जिससे तुम्हारी मां को दुख होता हो। अभी भी मेरा यही विश्वास है।’  

सीढ़ियां चढ़कर ऊपर की ओर जाने की आवाज से मैं यह जान गया कि बिना आवाज दिए एलमा ऊपर की ओर जा चुकी है।

शेष दिनों में हमारा सामना किए बिना एलमा ऊपर की मंजिल के कमरे में ही रही। उसके बाद पिछली रात को ही वह हमारे कमरे के द्वार पर खड़ी हमें ताकती रही थी।

पर आज या कल जरूर घर छोड़ कर वह चली जाएगी इसी का संकेत है यह। इसके बाद क्या होगा, यह मैं और नीना नहीं जानते। यह भी नहीं पता कि बाद में कभी एलमा इस घर में लौट आएगी कि नहीं।

 

 

अनुवादक  : श्रीजा टी कृष्णन. वरिष्ठ लेखिका और अनुवादक। श्री श्रधम कनम, एनआर रेलवे स्टेशन पय्यनुर, कन्नूर, केरल670307मो. 8590809294