कवि और अनुवादक

निरंजन टी. जी.

जन्म (1967)।पेशे से मरीन इंजीनियर।कविताओं का एक संकलन चिलावु कुरंजा कविताकल’ (जिसका अर्थ हैकम लागत वाली कविताएं

असहमत ऋतुओं पर नजरदारी

कोई छूट नहीं, केवल इसलिए कि तुम
स्वयं को बारिश कहती हो
अपनी इच्छा के अनुसार
बरसने की तुम्हें अनुमति नहीं है
तुम्हें निर्धारित समय पर, निर्धारित मात्रा में
पंक्तिबद्ध बरसना होगा
वसंत के बौर आने के लिए
भूखंड निर्धारित कर दिए गए हैं
सड़कों को पल्लवित-पुष्पों से ढक कर
सीमा का उल्लंघन मत करो
और इसे अभिव्यक्ति की आजादी मत कहो
शरद-ऋतु अब पत्तियों से नहीं बतियाएगी
यह अनैतिक है
मुंह-अंधेरे शुद्ध हो, श्वेत पोशाक धारण कर
सूर्य की पूजा करो और विसर्जित हो जाओ
कानून-व्यवस्था आज से ग्रीष्म-ऋतु के अधीन है
अगर वह सूर्य की तीखी किरणों की बेंतों का
तीखा प्रहार करती है
इसे सराहना सीखो
यह तुम्हारे अच्छे आचरण के लिए है
यह तुम्हारे कुलीनता की ओर बढ़ने के लिए है
यह सब राष्ट्र की भलाई के लिए है।

मनोज कुरूर

जन्म : 1971, कोट्टायम में।मलयालम के प्रसिद्ध कवि एवं गीतकार।प्रसिद्ध पुस्तकेंनृत्यसंगीतम’, ‘कविताकल’, ‘मुरिनव।वर्तमान में चंगनासेरी एनएसएस हिंदू कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर।

जो अनुवाद में खो गया है

एक दशक बाद घर लौटा मैं
विदेशी मित्र के साथ घूमने निकला हूँ

यहां के एक ऐतिहासिक स्मारक
और उस पर मेरी कविता के बारे में
मैंने उसे बताया था

नई सड़कों और पुनर्निर्मित मकानों
को देख कर चिंतित हूँ
कि हर स्थान के लिए
मुझे एक दुभाषिया भी चाहिए
मेरा विदेशी मित्र मुस्कराता है
कहता है – सुनने के लिए भी
अनुवाद की आवश्यकता होती है
जो अपने सेक्टर का नंबर भूल गया था
उसने हमें बताया कि
अपने नामों से छुटकारा पा चुके
शहर के क्षेत्र अब
अपने नंबरों से जाने जाते हैं
और कि संस्कृति के दुभाषिए
दूसरी नौकरियों की तलाश में चले गए हैं
कि एक भी मकबरे पर
अब किसी की दावेदारी नहीं है
पुरातत्व विभाग अड़ा हुआ है
कि जिस स्मारक को हम ढूंढ रहे हैं
वह वहां नहीं है
और न उसका कोई प्रमाण है
कि वह कभी वहां था
शहर के लोगों की तरह
इन तुच्छ विवादों के लिए
उनके पास भी न समय है
और न ही उसकी आवश्यकता

पर्यटन-रैप-सत्र के दौरान
पड़ोसी के यहां बनी स्कॉच को
पाश्चात्य-भांगड़ा में मिक्स करते हुए
भारतीय मैडोना की मांसल टांगों को घूरते हुए
भुने हुए मुर्गे की जंघा चबाते हुए
हम भी एक नए ‘अन्योन्यम’* में
शामिल हो जाते हैं

फिर चलते-चलते
एक फूस के मकान पर लगे
जंग खाए बिलबोर्ड पर नजर पड़ते ही
उन अक्षरों की ओर इशारा कर
मैं उत्साह से बोल उठता हूँ-
‘देखो मित्र,
यही वह भाषा है
जिसमें मैं कविताएं लिखता हूँ।’

*अन्योन्यम – केरल में कुछ मंदिरों में आयोजित होने वाली वैदिक मंत्रोचारण की प्रतिस्पर्धा से संबंधित।

सन्दर्भ: साहित्य अकादमी के द्विमासिक जर्नल ‘indian Literature’में प्रकाशित ‘21st Century Malayalam Poetry’ के खंड से कुछ चयनित कविताओं का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद।
ई के लिए है।

अजीश दासन

जन्म 10 मई 1980 को।तीन काव्य संग्रह प्रकाशित: कैंसर वार्ड’, ‘कोट्टायम क्राइस्ट एवंं अन्य कविताएँऔर बियॉन्ड दोज़ किसेस

भारतीय इतिहास

अरे! क्या हो रहा है?
हैरान हूँ!
बस यूं ही
अकस्मात हाथ आए
भारतीय इतिहास के पुराने अंक
के पन्ने पलट रहा था

जब मैं पहुंचा
पानीपत के युद्ध पर
कि एक कीड़ा दौड़ता आया
किताब के भीतर से
और जमा लिया अपना मोर्चा
पन्ने के दाईं ओर

अचानक से
एक और कीड़ा निकल आया
कहीं अंदर से
और जमा लिया अपना मोर्चा
पन्ने के बाईं ओर
उन्होंने एक क्षण के लिए एक-दूसरे को घूरा
कि किताब के चारों ओर से निकल आई
कीड़ों की एक फौज
और दोनों ओर जमा लिया उन्होंने अपना मोर्चा

ये कीड़े कहां से आए?
भारतीय इतिहास से?

अरे! क्या हो रहा है?
हैरान हूँ
अब उसे करीब-करीब चबा दी गई है
मेरे हाथ में बचा हुआ है
भा-र-ती-य-इ-ति-हा-स।

बिंदु कृष्णन

वर्तमान में भौतिकी विभाग, श्री केरल वर्मा कॉलेज, केरल में कार्यरत।तीन मलयालम कविता संग्रह प्रकाशितथोट्टल वदारुथु’, ‘दैवथिंते सोंथमऔर मैलांचियाम्मा

तारकीय नियमों के विरुद्ध
चलती ट्रेन में बैठी हुई
मैं अकसर सोचा करती
क्या यह ट्रेन चल रही है
या कि वह दूसरा सामने वाला?
इन दिनों
मैं प्रियजनों को देखती हूँ और सोचती हूँ
क्या वे मुझे से दूर हो रहे हैं या मैं उनसे?

‘हबल’* मेरे सपनों में आकर पूछता है-
‘क्या सब कुछ भूल गई हो
जो तुमने एस्ट्रोनॉमी में पढ़ा था?
कि निरंतर विस्तारशील ब्रह्मांड में
हर वस्तु हर दूसरी वस्तु से दूर हो रही है?’

प्रेरित मैं, मापने का प्रयास करती हूँ
प्रेम की तरंगों की आवृति
लेकिन नतीजों पर हैरान हूँ
नक्षत्रों की दुनिया की तरह
चीजें इतनी आसान नहीं हैं
जब भी मैं उनके करीब जाने का प्रयास करती हूँ
वे दूर हो जाती हैं
हबल मुस्कराता है
‘जब तुम किसी के करीब जाती हो
क्या तुम किसी और से दूर नहीं हो जाती?’

‘नहीं …नहीं…’
‘तुम अपने प्रयोग को दोहराओ
बार-बार भिन्न-भिन्न लोगों पर’

शंकालु मैं, मापने लगती हूँ
तुम्हारे प्यार की वेवलेंथ
कि कांटा तेजी से कांप कर रुक जाता है
हम पास या दूर कैसे हो सकते हैं?
तुम और मैं, एक एकल इकाई।

*‘हबल’ : एक प्रसिद्ध तारा-भौतिकविद था।उसने तारों द्वारा विकीर्ण प्रकाश की वेवलेंथ को माप कर यह पता लगाया था कि ब्रह्मांड का निरंतर विस्तार हो रहा है।

अम्मु दीपा

युवा लेखिका एवं चित्रकार।पिछले एक दशक से मलयालम साहित्य में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।काव्य संग्रह करीमकुट्टीप्रकाशित।

तलाश

मेरी समस्या मेरे समय की नहीं है
युगों पहले छीन ली गई थी
मुझ से मेरी भाषा

उसे फिर से पाने के लिए
जरूरी नहीं कि मेरी कविता
हमारे समय की हो

मेरी नोच ली गई थीं आंखें
और खींच ली गई थी जुबान —
अब मैं क्या सकती हूँ
(तुम्हारे अनुसरण के सिवाय?)
मेरी झुकी हुई पीठ पर
जलाने दो मुझे एक मशाल
न बाएं न दाएं मुड़े
जाने दो मुझे – पीछे, और पीछे
बहुत पीछे।

जमीलाथ्था

जमीलाथ्था जो पास के बंगले में रहती है
एक दिन मेरे पास आई
‘क्या तुम ऊपर वाली उस खिड़की को
खुला नहीं छोड़ सकती?’
-उसने पूछा, बुरका हटा कर अपना
चेहरा दिखाते हुए
सीढ़ी के घुमाव पर बनी खिड़की की ओर
इशारा करते हुए-
‘जो पहले यहां रहते थे
उसे खुला रखते थे’
इस किराए के मकान में
पहली बार मेरा ध्यान उस खड़की पर गया-
‘हां, ठीक है’
उसने अपना चेहरा फिर से ढक लिया
और खुश होकर चली गई
धूल से सनी सीढ़ी पर चढ़ कर मैं
खिड़की तक पहुंची-
एक खूबसूरत छोटी-सी खिड़की
रंगीन कांच की बनी हुई
अपने पंजों पर खड़े होकर
मैंने उसे खोल दिया
फलों से लदी अमरूद की शाखाओं के झुरमुटे से
मैंने उस मकान की झकल पा ली
जिसमें जमीलाथ्था अदृश्य हो गई थी
मैंने थ्था जैसी दिखनेवाली
एक औरत को भी देखा
जो सीढ़ी की छोटी-सी खिड़की से
मुझे ताक रही।

*‘थ्था’ शब्द का प्रयोग वरिष्ठ मुस्लिम महिला के लिए किया जाता है- ‘बड़ी बहन’ के रूप में।जमीलाथ्था का अर्थ है ‘बड़ी बहन जमीला’

संपर्क: बालमुकुन्द नंदवाना, 152, टैगोरनगर, हिरणमगरी, सेक्टर -4, उदयपुर – 313002 मो. 9983224383