वरिष्ठ कवि और अनुवादक। हिंदी और पंजाबी में लेखन। अद्यतन कविता संग्रह कमजोर, कठोर सपने

आस की टहनी पर

इंसान आस की टहनी पर लटका वह पत्ता है
जो नहीं जानता
कि कल उसके साथ क्या होगा

हरा हरहराया, धोया नहाया-सा
इतराता इठराता रहा है
लेकिन पर्यावरण क्या सलूक कर जाए
वह नहीं जानता
उसका मन यथास्थिति क्यों नहीं पहचानता

झुर्रियों से भर गया है चेहरा
पत्ते का
कल जो पगडंडियों जैसा था
बियावान लगता है

पत्ते का चेहरा वीरान लगता है
तब भी उम्मीद है उसे
कल का सूर्य साफ कर देगा धूल-धुआं

ओस धो जाएगी चेहरा
वह दुकेला या अकेला
मौसम का शुक्रगुजार हो जाएगा
जीवन की लय में
पुरानी धुन कल फिर गुनगुनाएगा

आस की टहनी पर इंसान
पत्ते सा लटका आश्वस्त होना चाहता है
विश्वस्त होना चाहता है और
विश्वास बोना चाहता है।

संपर्क : 239, दशमेश एंक्लेव, ढकौली160104, जीरकपुर (समीप चंडीगढ़) मो.9646879890