प्रमुख समीक्षक और अनुवादक,

आलोचना पुस्तक : ‘क्षितिज के उस पार से’

बचपन की एक स्मृति से निकली एक कहानी

6 मार्च 1927 को जन्मे, जादुई यथार्थवाद के चितेरे गैब्रियल गार्सिया मार्खेज एक बहुचर्चित, बहुविख्यात अमेरिकन स्पेनिश लेखक हैं.

यह कहानी (ट्यूजडे सियेस्टा) मार्खेज के बचपन की एक स्मृति से प्रेरित कहानी है। उन्होंने एक स्त्री और उसकी बेटी को काले कपड़ों और काले छातों के साथ हाथ में गुलदस्ता लिए जाते देखा था। वे उनके प्रदेश अराकाटाका में भरी गर्मी में कच्ची सड़क पर चली जा रही थीं। किसी ने युवा मार्खेज को बताया कि वह स्त्री ‘उस चोर’ की माँ है। इसी स्मृति को उन्होंने गर्वीली गरीब स्त्री में परिवर्तित कर दिया है।

एक लंबे साक्षात्कार में मार्खेज ने बताया है कि यह कहानी (ट्यूजडे सियेस्टा) हेमिग्वे की ‘आइसबर्ग तकनीक’ का प्रयोग कर लिखी गई है जिसमें 7/8 सदा सतह के नीचे रहता है मात्र 1/8 ही दिखाया जाता है। स्पेनिश कहावत के अनुसार मंगलवार को शादी नहीं करनी चाहिए, बाहर नहीं जाना चाहिए या परिवार नहीं छोड़ना चाहिए। कहानी का शीर्षक वहीं से आता है। कहानी एक गरीब स्त्री के गर्व और अस्मिता को धर्माधिकारी के समक्ष देती है। स्त्री सड़क पर दोपहर की कड़े धूप और शत्रुतापूर्ण भीड़ का सामना करने के लिए आत्मविश्वास के साथ तैयार है। जीवित रहने के लिए चोरी करने और भूख से मरने के बीच सदैव संघर्ष रहा है।

आइए पढ़ते हैं, उनकी स्मृतियों में दर्ज हो जाने वाली कहानी, जिसका अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद किया है विजय शर्मा ने.

रेतीली चट्टान की थरथराती सुरंग से ट्रेन निकली, केले के असीम-समतल खेत को पार करने लगी। हवा उमस भरी हो गई और अब उन्हें समुद्री हवा अनुभव नहीं हो रही थी। ट्रेन की खिड़की से धूएँ का झोंका भीतर आया। रेलवे के समानांतर पतली सड़क पर कच्चे केले के घौदों से लदी बैलगाड़ियाँ थीं। सड़क के पार बिन जुती जगहों पर थोड़े-थोड़े अंतराल पर धूल भरे ताड़ के पेड़ों तथा गुलाब की झाड़ियों से घिरे बिजली के पंखों वाले दफ़्तर, लाल-ईंटों की इमारतें और छज्जों पर कुर्सियों तथा छोटी मेजों वाले घर थे। सुबह के ग्यारह बजे थे और अभी गर्मी शुरू नहीं हुई थी।

‘अच्छा हो तुम खिड़की बंद कर लो’, स्त्री ने कहा। ‘तुम्हारे बाल में कालिख भर जाएगी।’

लड़की ने कोशिश की पर जंग लगा पल्ला बंद नहीं हुआ। तीसरे दर्जे के डिब्बे में केवल वही दो यात्री थीं। खिड़की से इंजन का धूआँ भीतर आ रहा था अत: लड़की ने अपने हाथ में पकड़ा प्लास्टिल का झोला नीचे रखा और खिड़की से हट गई। प्लास्टिक के थैले में खाने-पीने का कुछ सामान और अखबार में लिपटा एक गुलदस्ता था। वह खिड़की से दूर माँ के सामने वाली सीट पर बैठ गई। वे दोनों पुराने, सोग के कपड़ों में थीं।

लड़की बारह साल की थी और पहली बार ट्रेन की यात्रा कर रही थी। पलकों की नीली नसों, छोटे कद, लजपुज और बेढंगे शरीर तथा लबादे जैसी पोशाक के कारण स्त्री उसकी माँ की उम्र से अधिक बूढ़ी लग रही थी। सीट की पीठ से अपनी रीढ़ टिकाए सीधी बैठी थी। वह अपनी गोद में पड़े चमड़े के घिसे-पुराने हैंडबैग को दोनों हाथों से पकड़े हुई थी। गर्वीली गरीबी की आदी वह स्थिर थी।

बारह बजे के आसपास गर्मी शुरू हुई। ट्रेन पानी लेने के लिए बिना किसी शहर वाले एक स्टेशन पर दस मिनट के लिए रुकी। बाहर, स्टेशन पार रहस्यमय सन्नाटा था, छायाएँ साफ लग रही थीं। लेकिन डिब्बे के भीतर कच्चे चमड़े की बदबू थी। ट्रेन ने गति नहीं पकड़ी। वह लकड़ी के चमकदार रंगों वाले घरों के एक जैसेदो शहरों पर रुकी। स्त्री का सिर हिला और वह नींद में डूब गई। लड़की ने अपने जूते उतार दिए। फिर वह गुलदस्ते पर पानी छिड़कने बाथरूम तक गई।

जब वह अपनी सीट पर लौटी, उसकी माँ खाने के लिए इंतजार कर रही थी। उसने उसे चीज का एक टुकड़ा, मकई का आधा पैनकेक और एक कुकी दी तथा इतना ही प्लास्टिक झोले से अपने लिए निकाला। जब वे खा रही थीं ट्रेन एक लोहे के पुल से धीमी गति से गुजरी, उसने पहले की तरह का ही एक और शहर पार किया। फर्क था कि यहाँ चौक पर भीड़ थी। गर्म सूरज के नीचे एक बैंड लाइव धुन बजा रहा था। शहर के दूसरी ओर केले के बगान एक मैदान में समाप्त हो गए जिसकी जमीन सूखे के कारण दरकी हुई थी।

स्त्री ने खाना बंद कर दिया, ‘अपने जूते पहन लो’, उसने कहा।

लड़की ने बाहर देखा। उजाड़ के अलावा उसे कुछ नजर नहीं आया, ट्रेन फिर गति पकड़ने लगी। लेकिन उसने कुकी का अंतिम टुकड़ा झोले में डाल लिया और जल्दी से अपने जूते पहन लिए। स्त्री ने उसे कंघा दिया।

‘अपने बाल काढ़ लो’, उसने कहा।

जब लड़की अपने बाल काढ़ रही थी ट्रेन सीटी देने लगी। स्त्री ने अपनी अंगुलियों से उसकी गर्दन का पसीना और चेहरे का तेल पोंछ दिया। जब लड़की बाल काढ़ चुकी ट्रेन पिछले शहरों से बड़े लेकिन उनसे अधिक उदास शहर से गुजर रही थी।

‘अगर तुम्हें कुछ करना है तो अभी कर लो’, स्त्री ने कहा।

‘बाद में प्यास से मर जाओ तब भी कहीं पानी मत पीना। सबसे बड़ी बात, रोना नहीं।’

लड़की ने सिर हिलाया। खिड़की से सूखी-जलती हवा का झोंका भीतर आया, साथ ही ट्रेन की सीटी और पुराने डिब्बों की खड़खड़ाहट भी। बचे खाने के साथ स्त्री ने प्लास्टिक का झोला लपेटा और उसे हैंडबैग में रख लिया। उस चमकीले अगस्त के मंगलवार को एक पल के लिए पूरे शहर का चित्र खिड़की में दिखा। लड़की ने भींगे अखबार में गुलदस्ता लपेटा और खिड़की से तनिक दूर हट गई तथा अपनी माँ को देखने लगी। बदले में उसे माँ की ओर से एक सुखद अभिव्यक्ति मिली। ट्रेन सीटी देने लगी और धीमी हो गई। एक पल बाद रुक गई।

स्टेशन पर कोई नहीं था। सड़क के परली तरफ, बादाम के पेड़ों के साए तले फुटपाथ पर केवल जुआघर खुला था। शहर गर्मीं में नहाया हुआ था। स्त्री और लड़की ट्रेन से उतर गई और उन्होंने उजाड़ स्टेशन पार किया जहाँ टूटी टाइल्स के बीच घास उगी हुई थी। वे सड़क के छायादार हिस्से में पहुँचीं।

लगभग दो बज रहे थे। उस समय ऊँघता हुआ शहर झपकी ले रहा था। दुकानें, ऑफ़िस, स्कूल ग्यारह बजे बंद हो गए थे और चार बजे से पहले नहीं खुलेंगे जब ट्रेन वापस जाएगी। केवल स्टेशन के सामने का होटल, उसका शराबखाना और चौक के किनारे का टेलीग्राफ़ ऑफ़िस खुला था। केला कंपनी के मॉडल पर बने अधिकांश घर भीतर से बंद थे और उनके परदे गिरे हुए थे। उनमें से कुछ इतने गरम थे कि उन घरों के लोग बरामदे में बैठ कर खाना खा रहे थे। कुछ और लोग, बाहर सड़क पर बादाम के पेड़ों की छाया में दीवार के साथ कुर्सी डाले झपकी ले रहे थे।

बादाम के पेड़ों की छाया से होते हुए किसी की झपकी को बिना भंग किए स्त्री और लड़की ने शहर में प्रवेश किया। वे सीधी पादरी के घर गईं। स्री ने अपने नाखूनों से दरवाजे की लोहे की जाली खुरची, एक पल इंतजार किया और फिर खुरचा। अंदर बिजली का पंखा घुरघुरा रहा था। उन्हें कदमों की आहट सुनाई नहीं दी। दरवाजे की चरमराहट भी उन्होंने मुश्किल से सुनी। अचानक सावधान करती एक कर्कश आवाज सुनाई दी : ‘कौन है?’ स्त्री ने जाली के पार देखने की कोशिश की।

‘मुझे पादरी से मिलना है’, उसने कहा।

‘अभी वे सो रहे हैं।’

‘इमर्जेंसी है’, स्त्री ने जोर दिया। उसकी आवाज में शांत दृढ़ता थी।

धीरे से बेआवाज दरवाजा खुला। गुलथुली और पीली त्वचा, काले बालों के साथ एक उम्रदराज महिला दिखी। उसके चश्मे के मोटे शीशी के पीछे उसकी आंखें छोटी दिख रही थीं।

‘अंदर आओ’, उसने कहा और दरवाजा पूरा खोल दिया।

वे कमरे में घुसीं जो फूलों की बासी खुशबू से भरा हुआ था। महिला उन्हें लकड़ी की बेंच तक ले गई और बैठने का इशारा किया। लड़की बैठ गई पर उसकी माँ बेख्याली में हैंडबैग पकड़े खड़ी रही। बिजली के पंखे के अलावा कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी।

कमरे की परली ओर से महिला फिर नमूदार हुई। ‘वे कहते हैं, आप तीन बजे के बाद आएँ’, उसने बहुत धीमी आवाज में कहा। ‘बस पांच मिनट पहले वे लेटे हैं।’

‘ट्रेन साढ़े तीन बजे जाती है’, स्त्री ने कहा। यह संक्षिप्त और पक्का उत्तर था लेकिन स्वर ठीक और अर्थभरा। महिला पहली बार मुस्कराई।

‘ठीक है’, वह बोली।

जब कमरे की उस ओर का दरवाजा फिर बंद हो गया, स्त्री अपनी बेटी की बगल में बैठ गई। संकरा प्रतीक्षालय साफ-सुथरा और सादा था। कमरे को बांटने वाली रेलिंग की दूसरी ओर काम करने की मेज थी जिस पर सादा मोमजामा बिछा हुआ था और टेबल पर गुलदान की बगल में एक पुराना टाइपराइटर रखा था। उसके बाद चर्च के कागजात रखे थे। आप देख सकते हैं, ऑफिस का रखरखाव एक अविवाहिता द्वारा किया जा रहा था।

दूर वाला दरवाजा खुला और रूमाल से अपना चश्मा साफ करते हुए इस बार पादरी प्रकट हुआ। जब उन्होंने चश्मा लगाया तब स्पष्ट हुआ वे दरवाजा खोलने वाली महिला के भाई हैं।

‘मैं आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ?’ उन्होंने पूछा।

‘कब्रिस्तान की चाभियाँ’, स्त्री ने कहा।

गोद में फूल रखे लड़की बैठी थी, उसने बैंच के नीचे पैर एक-पर-एक रखे हुए थे। पादरी ने उसे देखा, तब स्त्री को देखा, फिर खिड़की की जाली से चमकते, बादलरहित आकाश को देखा।

‘इस गर्मी में’, उन्होंने कहा। आप सूरज नीचे उतरने तक इंतजार कर लेतीं।’

स्त्री ने नि:शब्द सिर हिलाया। पादरी रेलिंग की उस ओर गए, अलमारी से कवर की हुई नोटबुक, लकड़ी का पेनहोल्डर एवं दावात निकाली और टेबल पर बैठ गए। उनके हाथों पर खूब बाल थे जो उनके गंजे सिर की क्षतिपूर्ति कर रहे थे।

‘आप किस कब्र पर जाना चाहती हैं?’ उन्होंने पूछा।

‘कार्लोस सेंटेनो की’, स्त्री ने कहा।

‘किसकी?’

‘कार्लोस सेंटेनो’, स्त्री ने दोहराया।

पादरी को बात समझ नहीं आई।

‘वह चोर जो पिछले सप्ताह यहाँ मारा गया’, स्त्री ने उसी लहजे में कहा। ‘मैं उसकी माँ हूँ।’

पादरी ने उसे ध्यान से देखा। स्त्री ने खुद पर काबू रखते हुए उसे देखा और पादरी शरमा गया। उन्होंने अपना सिर नीचे झुका लिया और लिखने लगे। खाने भरते हुए उन्होंने स्त्री से तक्सीद करने को कहा और उसने बिना हिचक उन्हें पढ़ते हुए सटीक विवरण के साथ जवाब दिए। पादरी को पसीना आने लगा। लड़की ने अपने बाएँ जूते के बकल खोल दिए और अपनी एड़ी बाहर निकाल ली और उसे बेंच की रेलिंग पर टिका दिया। उसने वही दाएँ के साथ किया।

बीते सोमवार को सुबह तीन बजे यहाँ से कुछ ब्लॉक दूर यह हुआ था। विधवा रेबेका तमाम उल्टे-पुल्टे सामान के साथ अकेली अपने घर में रहती है। उसने बारिश की झड़ी की आवाज के बीच बाहर से किसी को दरवाजे पर जोर आजमाइश करते सुना। वह उठी, अलमारी में पुरानी बंदूक तलाशी जिसे कर्नल ऑरिलिआनो बुएन्दिया के जमाने से किसी ने नहीं चलाया था, और बिना बत्ती जलाए सामने के कमरे में गई। ताले की आवाज से नहीं बल्कि अपने अट्ठाइस साल के एकाकी जीवन से विकसित हुई दहशत से उसने अपनी कल्पना में न केवल दरवाजे का अनुमान कर लिया वरन ताले की सटीक ऊँचाई भी जान ली। उसने दोनों हाथों से हथियार जकड़ा हुआ था, उसकी आँखें बंद थीं और उसने ट्रिगर दबा दिया। जीवन में पहली बार उसने बंदूक चलाई थी। धमाके के बाद उसने गल्वानाइज्ड छत पर बारिश की धीमी आवाज के अलावा कुछ नहीं सुना। फ़िर उसने सीमेंट के बरामदे में बहुत धीमी आवाज सुनी, खुशनुमा पर थकी हुई, ‘आह, माँ।’

सुबह उन लोगों ने घर के सामने जिस आदमी को मरा हुआ पाया उसकी नाक के चिथड़े उड़ गए थे। उसने फ़लालेन की धारीदार रंगीन शर्ट, रोजमर्रा की पैंट्स पहनी हुई थी जिसमें बेल्ट की जगह रस्सी थी और जो नंगे पैर था। शहर में उसे कोई नहीं जानता था।

पादरी लिखना समाप्त करने पर बुदबुदाया, ‘सो उसका नाम कार्लोस सेंटेनो था।’

‘सेंटेनो अयाला’, स्त्री ने कहा, ‘वह मेरा इकलौता बेटा था।’

पादरी अलमारी तक फिर गया। दरवाजे के भीतर जंग लगी दो चाभियाँ लटक रही थीं। लड़की ने कल्पना की, जैसी उसकी माँ ने जब वह लड़की थी और खुद पादरी ने भी उसी समय कल्पना की होगी कि वे सेंट पीटर की चाभियाँ थीं। उन्होंने उन्हें नीचे उतारा और खुली नोटबुक पर रख दिया और स्त्री की ओर देखते हुए पन्ने पर एक जगह अंगुली दिखाई।

‘यहाँ दस्तखत करें।’

काँख में हैंडबैग दबाए स्री ने अपना नाम घसीटा। लड़की ने फूल उठा लिए और रेलिंग के पास आ कर अपनी माँ को ध्यान से देखने लगी।

पादरी ने उसांस भरी और पूछा,  ‘उसे राह पर लाने के लिए आपने कभी कोशिश की?’

दस्तखत समाप्त करने के बाद स्त्री ने उत्तर दिया। ‘वह बहुत अच्छा आदमी था।’

पवित्र आश्चर्य के साथ पादरी ने पहले स्त्री की ओर देखा फिर लड़की की ओर, कहीं वे रोने तो नहीं जा रही हैं। स्त्री ने उसी लहजे में जारी रखा :

‘मैंने उससे कहा था कभी किसी के मुँह का कौर न चुराए और उसने माना था। दूसरी ओर जब वह बॉक्सिंग करता था, चोटों से घायल हो तीन दिन बिस्तर पर पड़ा रहता था।’

‘उसके सारे दाँत निकलवाने पड़े थे’, लड़की बीच में बोल पड़ी।

‘यह सच है’, स्त्री सहमत हुई। उन दिनों मैं जो खाती थी वह मेरे बेटे की शनिवार की चोट के स्वाद से भरा होता था।’

‘ईश्वर की इच्छा रहस्यमय है’, पादरी ने कहा।

उन्होंने यह बिना अधिक आस्था के कहा, अनुभव ने उन्हें कुछ संशयी बना दिया था और कुछ गर्मी की वजह से। उन्होंने सुझाव दिया कि वे ताप से बचने के लिए सिर ढंक लें। जम्हाई लेते और तकरीबन नींद में डूबते हुए उन्होंने निर्देश दिया कि कार्लोस सेंटेनो की कब्र कैसे खोजें। जब वे लौटें उन्हें खटखटाने की जरूरत नहीं है। वे दरवाजे के नीचे चाभी रख दें और उसी स्थान पर अगर चाहें तो चर्च के लिए दान भी। स्त्री ने बहुत ध्यान से उनके निर्देशों को सुना पर धन्यवाद देते समय मुस्कुराई नहीं।

सड़क की ओर का दरवाजा खोलने से पहले पादरी ने देखा कोई लोहे की जाली से नाक सटाए झांक रहा है। बाहर बच्चों का एक झुंड था। जब दरवाजा पूरा खुला बच्चे तितर-बितर हो गए। सामान्यत: इस पहर गली में कोई नहीं होता है। अब वहाँ केवल बच्चे नहीं थे। बादाम के पेड़ों के नीचे लोग हिंसक भाव के साथ समूहों में खड़े थे। पादरी ने गर्मी में तैरती गली का निरीक्षण किया और वे सबकुछ समझ गए। हौले से उन्होंने दरवाजा फिर से बंद कर दिया।

‘कुछ देर रुकें’, उन्होंने बिना स्त्री की ओर देखे कहा।

दूर दरवाजे पर उनकी बहन अपनी नाइटशर्ट पर काली जैकेट पहने दिखाई दी। बाल उसके कंधों पर बिखरे हुए थे। वह चुपचाप पादरी को देखने लगी।

‘क्या हुआ?’ उन्होंने पूछा।

‘लोगों को पता लग गया है’, बहन फुसफुसाई।

‘बेहतर हो आप लोग बरामदे के दरवाजे से बाहर जाएँ’, पादरी ने कहा।

‘वहाँ भी यही हाल है’, बहन ने कहा। ‘सभी लोग खिड़कियों पर हैं।’

अब तक स्त्री कुछ नहीं समझ पाई थी। उसने लोहे की जाली से गली में झांकने की कोशिश की। फिर उसने लड़की से गुलदस्ता ले लिया और दरवाजे की ओर बढ़ी। लड़की उसके पीछे चली।

‘सूरज उतरने तक रुक जाएँ’, पादरी ने स्त्री से कहा।

‘आप धूप में पिघल जाएंगी’, उनकी बहन ने उसे भीतर के कमरे को दिखाते हुए कहा, ‘रुकिए, मैं अपना छाता देती हूँ।’

‘धन्यवाद’, स्त्री ने उत्तर दिया- ‘हम इसी तरह ठीक हैं।’

स्त्री ने अपनी लड़की का हाथ पकड़ा और वह गली में निकल पड़ी।

 

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