युवा कवि। संप्रति रेलवे में कार्यरत।
पिंजरे अभी और भी बनाए जाएंगे
स्वर्ण से सजा दिए जाने के सुख में
नहीं दिखेगी जब कोई चमक
क्या करोगी उस रोज?
हल चलाओगी
धान बोओगी
या मांगोगी अपने हिस्से की जमीन
रोटियों के गोलाकार भूगोल
और चावल के सीझ जाने के अनुभव से
तंग हो जाओगी जब
क्या करोगी उस रोज़?
रंग लाओगी
कोई चित्र बनाओगी
या उगाओगी कागज पर कविताएं
दिखाकर समूचा आकाश
जब उड़ाई जाएगी पतंग बनाकर तुम्हें
चुटकी में बझाकर तोड़ देगा
वही जिसने पकड़ी हो डोर
क्या करोगी उस रोज?
हवा बन जाओगी
खुशबू में मिल जाओगी
या नियंत्रक के हाथों में उभर आओगी रक्त बनकर
सर्वश्रेष्ठता का बोध दिलाकर
जब ओढ़ा दी जाएगी
एक चुप्पी अपनी ही लड़ाई के विरुद्ध
क्या करोगी उस रोज?
प्रश्न करोगी
अधिकार मांगोगी
या स्वीकार करोगी बांटना आमंत्रण पत्र
भाषा की अमूल्य संतानो!
तुम्हें जगाने का ढोंग करती
नींद की मीठी दवाओं से दूर हटो
क्योंकि
पिंजरे अभी और भी बनाए जाएंगे
तुम्हारी गति को विश्राम देने के लिए
चमचमाती कुर्सी के रूप में।
संपर्क :ग्राम – केदारचक, पोस्ट + थाना – अथमलगोला, पटना-803211 लैंडमार्क – पानी टंकी, मो. 8434260542