युवा कवि। विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित। पहला काव्य–संग्रह ‘सुधारगृह की मालकिनें’। इग्नू में अध्ययन।
स्त्री का प्रेम आकाश
यह क्या बात हुई
कि मैं तुमसे
अब और नाराज़ नहीं रह सकता
तुमसे बातें होती हैं
और तुम्हारा एक वाक्य
मेरे मन में तुम्हारे लिए जो प्रेम बसा है
उसे और गहरा कर देता है
प्रेम में होते हुए सोचता हूँ
प्रेम अगर पास है
तो हमारे पास एक सुंदर आकाश है
सामने दिखता है घास का मैदान
जिसमें दौड़ रही हो तुम
अपने हिस्से की जमीन लिए
तुम दूर से पुकारती हो तो लगता है
इस आवाज के पीछे
पूरा जीवन लेकर दौड़ जाना चाहिए।
शहर में अकेली लड़की
भाषा नहीं है मेरे पास सुगठित
धैर्य बना रहता है केवल
तुम्हारे साथ होने तक
जिसने मेरे होठों को छुआ
छूना चाहती हूँ
उसकी सभी मुलायम उंगलियां
पिघल कर सिमट सकती हूँ
तुम्हारी देह की ओट से
लेकिन एक पेट है जो भूखा है
एक गोद है जो भारी
और एक प्रेम है जो ढीठ!
न भय फटता है
न मोह छूटता है
देह लांघ देती है देहरी!
किंतु मन कैद है कहीं बिस्तर पर
जहां की चादर पर धूल जमी है
और पड़ी देह पर
उग चुके हैं कत्थई फूल।
जो उड़ाना चाहती थीं जहाज
मैं बोलती हूँ
तब खटकता है उन्हें!
मेरी बातें
फँस जाती हैं उनके गले में
मछली के कांटे की तरह
जब बनाए जा रहे होंगे रिवाज़ –
चुप रहने के
कम हँसने के
धीरे चलने के
क्या स्त्रियां भी शामिल रही होंगी उनमें?
कोई शाप
चलता आ रहा है पीढ़ियों से
ओढ़ते आ रहे हैं मन पर चादर
पसीजते पसीने से सनी देह
क्या आराम नहीं चाहती
और मन की स्वतंत्रता?
हम जैसी मुंहफट लड़कियां
समाज की परवाह किए बिना
चाहती हैं मुक्त होना
उनका क्या हुआ
जो उड़ाना चाहती थीं जहाज
लेकिन अब
अपनी नींद के उड़ने से परेशान हैं
विवाह के बाद दुनिया घूमने वाली
सहेलियों को हँसकर बताने वाली
वे लड़कियां
अपनी पीड़ा किसे बता पाती होंगी
सोचती हूँ
अब मौन को त्याग दूंगी
गलत को गलत कहूंगी
तब
वे पंछियों की तरह उड़ने देंगे
या डाल देंगे किसी पिंजरे में
क्या हुआ उन लड़कियों का
जो कसमें खा चुकी थीं
सबकुछ सहकर परिवार संभालने की
बच्चों को देख
जीवन जीते रहने की
जब किसी दिन बोल उठती होंगी
मन की पीड़ा
अपनी इच्छाएं
तब उनके साथ क्या होता होगा?
शायद अंतिम बार दिखी होंगी वे
किसी मनोरोगी की तरह
झाड़-फूंक के लिए ले जाती हुईं कहीं दूर
क्योंकि इस तरह बोलती हुईं
और समाज पर उंगली उठातीं लड़कियां
पागल होती हैं
या होता है उनपर किसी प्रेत का साया।
इंतजार में यात्राएं
मत जाओ
किसी उदासी के घेरे में
कहीं मत ले जाओ
खुद को भगाते-भागते वहां
जहां निर्णय नहीं हो तुम्हारा
किसी सर्द महीने की पहली रोशनी लिए
किसी एक संध्या
कुछ ठंडी हवाओं के साथ
आएगी तुममें वही हिम्मत फिर से
तब तुम कह देना सबकुछ
जो तुम्हें भीतर से खाली कर रहा है
उसे लिखो और बहा दो कागजों पर
और जो जगहें बचाए रहती हो
अपने मन की तह में
प्रेम से उसके थोड़ा और पास जाओ
प्रेम बांटो
दूसरों से पहले
स्वयं के लिए
यदि कोई पूछ ले तुमसे
चाय के लिए
मिलो उससे
ताकि खुद से तुम्हारी भेंट हो पुन:
क्योंकि प्रेम तो जरूरी है न दोस्त
जैसे अवसाद के उन दिनों
तुमने सिनेमा देखने से शुरू किया
खुद को चलचित्रों में भटकाकर
वैसे ही अब निकलो कमरे से बाहर
यात्राएं तुम्हारे इंतजार में खड़ी हैं
दुनिया के सबसे सुंदर पहाड़ लिए।
दुनिया को निहारती बच्ची की तरह
गूंजती आवाजों का शोर
नहीं सुना तुमने
गहरी हो चुकी थी तुम्हारी नींद
अरसे बाद
जागते ही कुछ नहीं टूटा इस बार!
मन मैं बैठी भीड़ को निकाल फेंका है तुमने
अब कुछ नहीं बचा
जो तुम्हें बांध सके
तुम्हारे भीतर का मौन
जो जिए जा रहा था
किसी अनुपस्थिति के दुख में
तुमने उस जमीन पर
उगा दिए हैं सबसे सुंदर फूल
दोस्त!
जब तुम अपनी तस्वीरें खींचती हो
पाती हो खुद को उस कैद से आजाद
भूलते हुए क्या कुछ याद रख पाई तुम
और सब छूटते हुए क्या बचा है कुछ तुम्हारे पास
इसका हिसाब मांगना बंद करो खुद से
अपनी उंगलियों को देखो
जिन्हें छूकर
खिल उठते हैं तुम्हारी बालकनी के गुलाब
कांटों के पास जाओ
मगर लौटो खुशबू लिए
ताजा याद लिए वह लड़की
जो न हाथ छुड़ाकर भागना जानती थी
न कभी अपने सपनों से
उसे जी भरकर देखो
उदासी की सीढ़ियों से उतरकर
आ चुकी है
वह अपनी देह में पुन:
किसी रेल की खिड़की के पास बैठ
दुनिया को निहारती बच्ची की तरह
जिसके हठ ने लौटाई है उसे
अपने पिता की चहेती मुस्कान।
डंपिग यार्ड
एक दोस्त जिसका प्रेमी
छोड़ गया उसे
और वह इमारतों से कूद जाना चाहती है –
उसके दुखों को छुआ मैने अपनी आंखों से
एक पिता जो परेशान है
दूर किसी परीक्षा केंद्र तक ठीक-ठीक
मेरे पहुंच जाने को लेकर
उसके चेहरे पर आती झुर्रियों को देख
उसे लगा लेती हूँ गले
एक मां जो सोचती है दिन-रात
कि कैसे होगा ब्याह
कैसे जीने देगा मुझे समाज
उस समय दबा देना चाहती हूँ
अपनी बढ़ती उम्र का गला
एक भाई जो दूर है
किसी शहर की रोशनी में गुम
जिम्मेदारियों के बोझ को छुपाकर
मुस्कुराता है रोज मेरे सामने वीडियो कॉल पर
उसे बांट देना चाहती हूँ –
चॉकलेट के लिए जिद करके मिले पैसे
और नम नहीं होती आंखों के लिए
लगा देना चाहती हूँ काला टीका
एक रोग है जो
महीनों से खाए जा रहा देह
उसकी खुराक में पी जाना चाहती हूँ
चिकित्सक की फीस
एक कालेज है
जिसका पता भूलना चाहती हूँ बार-बार
और एक शिक्षक
जिसकी नजरों से थरथरा जाते हैं मेरे कपड़े
जैसे किसी पंखे से कटकर
गिर चुके होते हैं मेरे अंग –
हाथ जोरों से कसता गया रोज
चोट दागों में बदल गए
सबसे करीब से जानने वाली
एक लड़की रहती थी भीतर
जिसने खा ली कोई दवाई
और कहती गई आखिरी बार –
उसकी देह को बचा सकता है केवल
एक डंपिग यार्ड
जिसके समूचे, अधूरे,
टूटे-फूटे सामानों के भार से
दब चुका है मेरा मन
जब सच कहती हूँ
सब कहते हैं-
बुदबुदाती क्या हो पागलों की तरह
मैं तब पाती हूँ
खो चुकी है मेरी आवाज
डंपिग यार्ड में कहीं।
जिसके साथ होने से
तुम्हारी आंखें कैसी
गाढ़ी, काली
तुम्हारा चेहरा जैसे
कत्थई फूल
ढूंढ़ती हुई कुछ
डूबती किसी के मन के भीतर
गहराइयों से निकाल लाती हो बाहर
उलझनें!
चेहरे पर बिखरी लटों की तरह
लिपटा है एक ख्वाब
और वह जो मुस्कुराहट से भी अधिक सुंदर
दिखता है तुम्हारी आंखों में
मेरी दोस्त!
देखा करो ढेर सारे सपने
जहां एक रोशनी से बनी
जादुई दुनिया की लड़की हो तुम
जिसे देखकर खुश रहती हैं मेरी आंखें
और
जिसके साथ होने से
मुस्कुराता है सारा जीवन।
ग्राम – केदारचक , पोस्ट + थाना – अथमलगोला, लैंडमार्क – पानी टंकी, जिला – पटना, बिहार–803211 मो.8434260542