युवा कवयित्री और सहायक शिक्षिका।

भाषा

मैंने अपनी भाषा में हँसी लिखी
सामने बैठा व्यक्ति
जो मेरी भाषा नहीं जानता था
उसने हँसना शुरू कर दिया

मैंने अपनी भाषा में लिखा रुदन
मेरे पास की महिलाओं ने
रोना शुरू कर दिया
रोते हुए बड़बड़ाने लगीं
अपनी भाषा में
मैं नासमझी के परदे के पीछे छिपी रही
पर मैंने आंसुओं को पढ़ लिया

मैंने लिखा भूख
लोग निकल पड़े कुदाल लेकर
फसल उगाने
गाते हुए गीत बुआई के अपनी भाषा में

मैंने जब भी अपनी भाषा में
कुछ लिखा
भाषाई खाई को ताक पर रखकर
सबने समझ लिया
पुल हर भाषा में बने रहें
जिंदा रहने के लिए चाहिए संवाद।

जब तुम लौटोगे

जब से गए हो तुम
नहीं खोली हैं
मैंने मन की परतें
नहीं हटाई है
मेज पर रखी तुम्हारी शेविंग ब्रश
तुम्हारा तौलिया
तुम्हारा रुमाल

मैं चाहती हूँ
जब तुम लौटो
तुम्हें चीजें वैसे ही मिलें
जैसे छोड़ गए थे तुम
मेरी हथेलियों में तुम्हारा चेहरा
मेरी आंखों में तुम्हारी चमक
मेरे होठों पर तुम्हारी मुस्कान
मेरे इर्द-गिर्द हो तुम्हारी गंध
सब यथावत

जब तुम लौटोगे
लौट आएगी
बगीचे के फूलों की गंध
पत्तों का हरापन
गौरैयों की चहचहाहट
अबाबील की उड़ान
वह सब
जो तुम्हारे न होने से
अधूरे हो गए हैं

तुम्हारे लौटने से पिघल जाएगी
मेरे भीतर जमी बर्फ
खुल जाएंगे सारे गिरह
लौट आएगी मेरी भाषा
जिसे केवल तुम समझते हो।

संपर्क :एच/एन-37, बी. एल-22, सुगियापाड़ा, कांकिनाड़ा-743126, कुश विद्यालय के करीब,उत्तर 24 परगना (पश्चिम बंगाल) मो.8420986065