अनुवादक – मंजु श्रीवास्तव
आकाशवाणी में उद्घोषणा के कार्य।कविता संग्रह : हजार हाथ।बांग्ला और अंग्रेजी से कई रचनाओं का अनुवाद।

डोरोथी लास्की
27 मार्च 1978 को जनमी डोरोथी लैस्की अमेरिका की एक महत्वपूर्ण कवयित्री और कोलंबिया विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उनकी लिखी प्रमुख पुस्तकें हैं- ‘मिल्क’ , ‘रोम’, ‘थंडरबर्ड’, ‘ब्लैक लाइफ’ इत्यादि। संपादित पुस्तकें भी कई हैं।

तुमने सोचा था

तुमने सोचा था मैं बदल जाऊंगी पूरी तरह
पर मैं नहीं बदली
तुमने सोचा था मैं खिड़की खुली रखूंगी
पर मैंने खुली नहीं रखी
तुमने सोचा था मैं संपर्क बनाए रखूंगी
पर मैंने नहीं रखा
तुमने सोचा था मैं महासूर्य के चक्कर लगाऊंगी
पर मैंने नहीं लगाए
तुमने सोचा था मैं छत्ते को हटा दूंगी
पर मैंने नहीं हटाया
तुमने सोचा था मैं मातम मनाऊंगी
पर मैं मना न सकी
तुमने सोचा था मैं स्वादिष्ट व्यंजन पकाऊंगी
पर मैंने नहीं पकाया
तुमने सोचा था मैं उस दिन लौटूंगी
पर मैं नहीं लौटी
तुमने सोचा था मैं फूलों को सहेजूंगी, संवारूँगी
पर मैं न कर सकी
तुमने सोचा था मैं ताला बदलूंगी
पर मैंने नहीं बदला
तुमने सोचा था मैं किवाड़ खोलूंगी मिलूंगी तुमसे
पर मैं न मिल सकी
तुमने सोचा था मैं व्यवस्थित रखूंगी सबकुछ
पर मैं न रख सकी
यह कचोटता है मुझे आज भी
कि मैं कर न सकी
कि मैं कर न सकी।

जन्म

यह वाकया कविता के जन्म के बारे में नहीं है
यह एक इतवार के कराहते दर्द के बारे में है
एक टैक्सी करके भाग पड़ना अस्पताल के लिए
जो नए अपार्टमेंट के बिलकुल करीब है
मेरे अंदर मेरा बच्चा है
लेकिन इतनी जल्दी किसी को
ऐसी उम्मीद नहीं थी
या फिर उन्होंने ऐसा जताया था
हो सकता है कि उन्हें इसके
इतनी जल्दी होने की पूरी उम्मीद रही हो

प्रतीक्षालय में अकेली बैठी-बैठी मैं कांपती रही
और रक्त मेरी टांगों से होकर नीचे बहता रहा
बाद में मैंने एक केशविहीन सिर की
अलग-अलग स्थितियों में कल्पना की
पीली, मछली की भांति
पपड़ीदार चमकीली त्वचा

जब वह बाहर आई
उसका रंग गहरा और केश घने थे
खून में लिथड़ी हुई नहीं
साफ सुथरी पैदा हुई थी वह तसले में
मेरी पिछली सफलताओं की
जादुई सचाइयों की तरह
जब वह बाहर आई रोई तो
उसके रुदन का स्वर मेरी आवाज जैसा था
फिर उसने
अपनी नई वास्तविकता से मेरा परिचय कराया
तीन हफ्ते बाद वे कहते हैं
मुझमें कोई आकर्षण नहीं
इसलिए घूमती हूँ पार्क में
बर्फबारी में अपने मित्र के साथ

हम मोमबत्तियां जलाते हैं
और प्रार्थना करते हैं अंधकार से
हम आग लगाकर पार्क में रोशनी करते हैं
पुलिस आती है
और हमें वहां देखकर पकड़ लेती है
जब वे हमें जेल ले जाते हैं
मैं कहती हूँ, नहीं, नहीं, यह ठीक नहीं है
आखिर मैं मां हूँ
वे कहते हैं, कहां है तुम्हारा बच्चा
मैं कहती हूँ नहीं, नहीं, ऐसा मत बोलो
मेरा बच्चा है, मेरा बच्चा है
वे कहते हैं देखो अपने प्यारे बच्चे को
मैं कहती हूँ, हां, हां, देख रही हूँ

देखो, देखो और सुनो
मेरा बच्चा, मेरा बच्चा
देखो मेरी बच्ची यहां है।

मंजु श्रीवास्तव, सी-11.3, एनबीसीसी विबग्योर टावर्स, न्यू टाउन, कोलकाता-700156 मो.9674986495