अनुवादक
आकाशवाणी में उद्घोषणा के कार्य। कविता संग्रह ‘हजार हाथ’। बांग्ला और अंग्रेजी से कई रचनाओं का अनुवाद।
अरुंधति सुब्रह्मण्यम
भारतीय अंग्रेजी लेखिका
मैं नारंगी टिफ़िन बॉक्स वाली लड़कियों के लिए बोलती हूँ
मैं नारंगी टिफ़िन बॉक्स वाली
लड़कियों के लिए बोलती हूँ
जो विद्यालय के वार्षिकोत्सव पर नाटक में
आठ पेड़ों वाले बगीचे में
तीसरे पेड़ की भूमिका निभाती हैं
जो मानीटर नहीं हैं
खेलों में कप्तान नहीं हैं
कक्षा-प्रतिनिधि नहीं हैं
जो रेत भरे मैदानी गड्ढों के पार की दीवार से
दूसरी लड़कियों को सी-सॉ के लिए
झगड़ते हुए देखती हैं
जो अपने को छोड़ दूसरे सभी के संवाद
याद रखती हैं
जो स्कूल बस के पीछे पत्थर फेंककर मारती हैं
माँ के दिए नाश्ते
अब भी सड़ रहे हैं जिनकी आंतों में
जिन्हें अब भी भरोसा है कि
एक दिन वे परीक्षाएं होंगी
जिनके लिए तैयारी वे कर रही हैं
जिनके नाश्ते नारंगी हैं
मैं उनकी बात करती हूँ।
एक बिल्ली को जानती थी मैं
एक बिल्ली को जानती थी मैं
जिसका चेहरा सितारे जैसा था
मैं उसकी मौत की प्रतीक्षा कर रही थी
ताकि मेरे दिल को थोड़ा कम तकलीफ हो
अब रातें ज्यादा अंधेरी हैं
और मेरी जिंदगी थोड़ी आसान
और मैं जिस कबीले से आई थी
वहीं वापस लौट आई हूँ
हमारे अनाजों के कोठार
शब्दों और प्रेमहीनता से भरे हैं।
चाहे श्रीमती सलीम शेख को ही ले लो
जो अपने हलके गुलाबी रंग के
ब्लाउज और साड़ी में
आतिथ्य- सत्कार लहरा-लहरा कर करती हैं
(ट्रेनों में सिंथेटिक साड़ियां कितनी सुविधाजनक होती हैं न)
भारतीय रेलवे के प्रोटोकॉल के समान
यात्रा आरंभ होने के पहले ही
आपका फोन नंबर बताने के लिए उकसाती हैं
जो अपनी गाथा बिना किसी लाग-लपेट के
पूरी तरह से खोलकर रख देती हैं
वे हिंदू हैं
अपने पति की तरह ही एक चिकित्सक
मैट्रन ने अंतरधार्मिक संबंधों के बारे में चेताया था
पर उन्हें किसी तरह की शंका नहीं थी
यहां तक कि 1993 में भी नहीं
जबकि दूसरों को थी
उनके पूर्वज रानी विक्टोरिया को
मक्खन की आपूर्ति किया करते थे
दूसरे शब्दों में कहें तो उनके बाबा
कोल्हापुर के राजदरबार में दीवान थे
‘मैं भाग्यशाली रही हूँ’
‘देवताओं की कृपा थी मुझपर’
‘मैं सामिष भोजन करती हूँ
और पकाती हूँ’
‘मेरे बहुत से मित्र शुद्ध ब्राह्मण हैं’
‘मेरे बेटों का खतना हुआ है’
‘मेरा हृदय शुद्ध है’
‘मेरी आस्था किसी धर्म में नहीं
केवल होमियोपैथी में है’
भोजन करते-करते वे उस दिन की याद करती हैं
जब उनकी सास ने उनकी बाहों में दम तोड़ा था
‘मैंने उनको अंतिम स्नान कराया
और जब उनका शरीर ले जाया जा रहा था
मैंने अपने पति से कहा
‘मेरी इच्छा है कि
मुझे कब्रिस्तान में दफनाया जाए-
श्मशानघाट की तुलना में
यह मेरे घर के ज्यादा करीब है’
श्रीमती सलीम शेख को ही ले लो!
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