वरिष्ठ कवि। सांस्कृतिक कार्यक्रम से गहरा जुड़ाव। प्रकाशित कविता संग्रह ‘गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध’।
घर की ओर!
1.
पंछियों की तरह,
चलो, उड़ चलें…
ऊपर आकाश में
बादलों से ले, पहन लें
उनके रुपहले कपड़े
उड़ते हुए आसमान में
देखें, ऊपर से अपनी जमीन
उसपर हो रहीं
हलचलें, हरकतें…
देखें – सूरज की
आंख-मिचौली
तारों से करें यारी!
ध्यान से सुनें-
उनकी गप-शप
करें – चाँद से
हाथ जोड़ नमस्ते!
लौटें – धरती की ओर
उड़ते हुए तितली की तरह
चूम-चूम फूलों से लें
उनकी गंध और मधु-पराग
बांटते रहें उसे सबमें…
आदर से करें पेड़-पौधों के
चरण-स्पर्श! जीवनदायी
हवा को झुककर करें
सलाम!
उतरें, अपनी धरती पर
चलें, अपने घर की ओर…।
पंछियों की तरह,
चलो, उड़ चलें…
ऊपर आकाश में।
2.
चलो, कूदें ऊपर से
नीचे – नदी में…
बचपन की तरह
पानी में डुबकी लगा
ऊपर आएं
बहें नहीं धार के साथ
चलाते रहें हाथ-पैर
धारा के विपरीत
तैरने का करते रहें
निरंतर अभ्यास।
डूबकर छुएं नदी का तल
महसूस करें उसमें सर-सर
सरकती रेत, बंद रखें
मुंह-नाक, साधकर श्वांस
सीखें, पानी में अंदर ही अंदर
आगे बढ़ना, उबरकर
तैरते हुए पार करें धार
लौटें, अपनी धरती पर
चलें, अपने घर की ओर…।
चलो, कूदें ऊपर से
नीचे – नदी में…
3.
आओ! चलो, बैठें-
किसी बूढ़े वृक्ष की छांव
सुनें – उसके सुख-दुख
पीड़ा-संताप में हों शामिल
उनपर आश्रित
पशु-पक्षियों की
लें खैर-खबर
उनके आपसी संबंधों में
आए बदलावों पर
करें चर्चा
हो सके तो ढूढ़ें –
उनकी फौरी विपदाओं के
दीर्घकालिक समाधान
हो सके तो करें –
उनकी भरसक मदद
अन्य-जीवन का करें
खूब आदर-सम्मान
झुककर अंतर्मन से करें
पेड़-पौधों को नमन
लौटें, अपनी धरती पर
चलें – कुछ भरकर, वापस
अपने घर की ओर…।
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