सुपरिचित कवि।दो कविता संग्रह‘तथापि जीवन’, ‘कदाचित अपूर्ण’।
अब उसका पक्ष
वह भीख नहीं मांग रहा
जिसे तुम भीख कहना चाह रहे
उसे वह ॠण कह रहा
यह उसका भविष्य में उम्मीद है
उम्मीद अपने रक्त से, अस्थियों से
रीढ़ से, समय से
उसे न भीख दो, न दान
सूद की दर थोड़ी कम कर दो
और करो थोड़ी प्रतीक्षा, जब तक झाड़ ले वह
पीठ की धूल।
बस इतना ही
मुझे कहां नहीं पहुंचना है
जहां मुझे पहुंचना था
वहां तो जन्म से पहले ही पहुंच गया
मां की कोख में
शेष तो
इस पृथ्वी पर जिए चले जाने की
आदमियों की एक आदत है।
संपर्क : द्वारा–श्री सुरेश मिश्र, दीवानी तकिया,कटहलवाड़ी, दरभंगा, बिहार–८४६००४ मो.७६५४८९०५९२