युवा लेखक।कहानियां विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित।

चेहरे की चमक सुबह के खिले आसमान-सी, होलिज़न लाइट्स की चमकती रोशनी में नई कोलतार से बनी सड़क, पगडंडियों के करीब बिखरा हुआ कूड़ा, फटी मैली टाट पर दुबके जानवर, कोहरे में नहाया हुआ सुनसान पथ, बड़े पाइपों में लटके पुराने चीथड़े, सूखे मुरझाए कांपते चेहरों पर गहरा अवसाद, आकाश का रंग धीरे-धीरे बदलता हुआ! साइकिलों की टर्न-टर्न, रिक्शा से चढ़ते-उतरते पुराने बिस्तर, टूटे आईनों में मुफलिसी की परछाई, कराहते चीखते नंगे बच्चे…!

शहर की निचली कॉलोनियां एक जैसी होती हैं और वहां रहने वाले भी लगभग निम्न मध्यम वर्ग के लोग ही होते हैं।ग्रामीण जीवन से ऊबकर लोग शहरों में इसलिए आते हैं कि उनका जीवन कुछ सुखद हो जाए।निलेश भी इसी चाह में सुधा को शहर लाया था और रामपुर में एक किराए के कमरे में वो लोग रहने लगे थे।शहर की रौनक बाजारों की चकाचौंध से बनती है।शहरी जीवन गांव से बिलकुल भिन्न है।शहर का एक हिस्सा प्राय: खूबसूरत दिखाई देता है, किंतु दूसरी ओर यहां की सड़कें क्षत-विक्षत हैं दीन-हीन सी दिखाई देती हैं।यदि भूलवश कोई शहर में भटक जाए तो उसे ढूंढना टेढ़ी खीर के समान है।

दो तीन घंटे हो चुके हैं सुधा ईशा को गोद में टांगे इधर से उधर भटक रही है।निलेश के साथ स्कूटर पर गांधी मार्किट किसी काम से आई थी।घर से निकलते हुए भी निलेश ने सुधा को फोन रिचार्ज करने के लिए कहा था।चूंकि सुधा के फोन में अक्सर बैलेंस नहीं होता था और कई बार तो इनकमिंग कॉल की सुविधा तक नहीं होती है, सुधा ने घर से निकलते वक़्त हँसते हुए टाल दिया था कि निलेश तुम साथ तो हो ही फिर फ़ोन की क्या जरूरत।वह मुस्कराते हुए स्कूटर की पिछली सीट पर बैठ गई।ईशा सुधा की गोद की हलकी गरमाई में आंखे मूंदे उससे चिमटी थी।

मार्किट में बहुत भीड़ थी किंतु इसके बावजूद उन दोनों की खिली आंखें वहां हँस रही थीं।शहर का मार्किट ही एक ऐसा स्थल होता है जहां स्त्रियों के चेहरे काफी उत्साहित दिखाई देते हैं।वह जब भी किसी दुकान या शोरूम पर भीड़ देखती उसका मन भी उन्हीं दुकानों के भीतर घूम आता।सुधा ने सोचा चाहे खरीदना कुछ भी न हो पर नए जमाने के फैशन को करीब से देख ही लिया जाए।वह उत्सुकतावश सारे बाजार को अपनी आंखों में संजो लेना चाहती थी ताकि गांव जाकर अपनी सखियों, पड़ोसियों को बढ़ा चढ़ाकर गुणगान कर सके।मार्किट में उन्हें घूमते हुए काफी देर हो गई थी।धूप अब सीधे लोगों के सिरों पर गिर रही थी।उमस और गर्मी से सारे बाजार में भभका निकल रहा था।मार्किट में घूमने तक तो सब सही था, किंतु निलेश ने जैसे ही धूप की तपिश को महसूस किया उसके मन में सीधे रास्ते न जाकर शॉर्टकट रास्ते से जाने का विचार आया। उसने स्कूटर स्टार्ट करते हुए सिग्नल की तरफ देखा।नीचे लाल बत्ती के पीछे से सूर्य की तेज लपटें निकल रही थीं।

सलेटी आसमान में बादल का एक छोटासा खंड दाईं ओर कोने में एक तरफ रुई की भांति दिखाई दे रहा था।उनके सीट पर बैठते ही स्कूटर के पहिये हल्के हल्के आगे बढ़ने लगे।सिग्नल पर भीड़ के कारण जाम लगा था।रोड पर हर तरफ चिल्लम चिल्ली थी।निलेश ने जैसेतैसे स्कूटर को पतली गलियों में मोड़ना आरंभ कर दिया।पहले बड़ी सड़क और फिर छोटीछोटी संकरी गलियां जैसे वे लोग किसी भूतैली जगह पर दौड़ रहे हों।

सड़क पर बढ़ते हुए जैसे ही आगे कोई पत्थर या गड्ढा मिलता क्षणभर स्कूटर थोड़ा उचककर वहीं थम जाता।ईशा ने सुधा को और सुधा ने निलेश को कसकर थामा था किंतु अचानक आए गड्ढे के भय से वह पलभर कांप जाते।निलेश हॉर्न देते हुए स्कूटर को धीरे-धीरे आगे बढ़ाता रहा।इतनी भीड़ में पल भर के लिए भी रुकना नामुमकीन सा लग रहा था।काले धुएं और शोर का धुंधलका उनके साथ-साथ आगे बढ़ता जा रहा था।कंक्रीट सड़क पर आगे रेत का पहाड़ जमा था जिससे सड़क पतली हो गई।निलेश ने सुधा को उतारा और धीमे-धीमे आगे बढ़ते हुए आने का निर्देश दिया ताकि वे आगे चलकर एक साथ हो लें।तेज शोर के बीच निलेश का स्कूटर पहले तो हल्का हल्का रेंगता दिखा।सुधा ईशा को गोद में टांगे आगे बढ़ती रही।सभी लोग सड़क के एक कोने में बने हल्के बालू के ऊंचे पहाड़ को लांघते हुए आगे बढ़ रहे थे।वहीं सड़क के एक कोने में पानी रिस रहा था और उसमें से उठती सड़ांध दूर तक भटक रही थी।दीवारों के कोनों में टूटी नालियों में और टूटे हुए पाइपों से निकलने पर कोई यह भी नहीं जान सकता था कि ये पानी घरों से निकल रहा था या नाली में स्वयं रोज आ जाता था।ऐसे बीभत्स चित्र और दुर्गंध भरे लम्हों को रोज ही बड़े शहरों की छोटी-छोटी गलियों में देखा जा सकता है।सुधा पैर बचाते हुए गली के दूसरे छोर पर पहुंच गई और टी प्वाइंट से इधर उधर देखने लगी।हर तरफ भीड़ और भीड़ में खोए चेहरे।निलेश ने एक सुरक्षित जगह पर पहुंचकर पीछे देखा, पर उसे आगे बढ़ती भीड़ के अलावा कुछ नहीं दिखाई दिया।वह पल भर खड़ा हुआ, पर पीछे से पों पों होने लगी।

सुधा के कंधे पर ईशा की गर्दन लटकी थी।वह कुछ भी नहीं समझ पा रही थी कि वह किस ओर जाए बाएं या दाएं।ईशा का धूप में माथा तपने लगा और तेज गर्मी के कारण सुधा का भी हलक सूखने लगा।वह एक दुकान के क्षत-विक्षत छाते में खड़ी होकर निलेश की राह देख रही थी। ‘क्या हुआ बहिन जी? आप यहां स्टूल पर बैठिए न?’ चाय की दुकान पर बैठे  रहमत भाई ने सुधा के परेशान चेहरे को देखकर कहा।रहमत मियां की उम्र करीब पैंतालीस, चेहरे पर लंबी सफेद दाढ़ी है।मार्केट में सड़क के किनारे रहमत भाई के नाम से उसकी चाय की दुकान थी।सुधा इस असमंजस में थी कि वह वहां बैठे या आगे बढ़ जाए।स्कूटर पर हेलमेट पहने हुए हर शख्स में वह निलेश को ढूंढ रही थी।तेज धूप के उजाले में सड़कों पर दौड़ते हुए सैकड़ों धुंधले प्रतिबिंब कुचले जा रहे थे।निलेश का कहीं नामोनिशान नहीं।सुधा दुकान के सामने गोल स्टूल पर बैठी अपने माथे के पसीने को बार-बार पोंछ रही थी।उसने महसूस किया कि वह अब भटक चुकी है और निलेश शायद उसे यहां न खोज पाए।वह दुखी मन से दूर क्षितिज को ताकती रही।दूर आकाश में काला धुआं कहीं लुप्त होता जा रहा था।दुकानदार सुधा के करीब आया और उसे चाय का कप थमाते हुए बोला। ‘बहन जी, आप चाय पीजिए और परेशान न होइए।भाईसाहब अभी आ जाएंगे।’ उसने सड़क पर भारी जाम की ओर देखते हुए कहा, ‘आज भीड़ भी कुछ ज्यादा ही है।’ सुधा चाय के लिए मना करते हुए रो पड़ी। ‘भैया, कितनी देर हो गई।मैं तो रास्ता भी नहीं जानती और फिर ईशा भी तो मेरे साथ है।अब कहां जाऊं, कुछ भी समझ नहीं आ रहा।’ ‘आप चाय तो पीजिए’ दुकानदार ने पुन: गिलास को सुधा की तरफ बढ़ाते हुए कहा।

सुधा ने जैसे ही चाय का गिलास पकड़ा ईशा दोनों मुट्ठियों को भींचते हुए उठी और आखें खोलकर दुकानदार को देखने लगी।दुकानदार ने ईशा की ठुड़ी को सहलाते हुए कहा, ‘बेटा क्या नाम है तुम्हारा?’ ईशा अभी बोल नहीं सकती थी, वह उसे चुपचाप देखती रही।भैया आपका क्या नाम है?’ सुधा ने उसकी आंखों में देखते हुए पूछा।बहन, मुझे रहमत कहते हैं।दुकानदार ने अपनी टोपी को सहलाते हुए जवाब दिया।सुधा क्षण भर उसे जड़वत देखती रही।

चाय की दुकान पर दो तीन ग्राहक आ गए।रहमत गैस जलाकर गिलास धोने लगा।उसने खौलते हुए पानी को भिगोने में डाला और उसे देखता रहा।ग्राहक अपनी ही बातों में मस्त थे।रहमत ने भिगोने में गर्म चाय में फूंक मारते हुए सुधा को देखा और उससे दुबारा पूछा। ‘बहन, एक प्याला चाय ले लो, काफी देर हो गई है।बिटिया को भी बिस्कुट वगैरह दो।’ उसने एक प्लास्टिक की टोकरी से एक बिस्कुट का पैकेट निकाला और सुधा को दे दिया।सुधा ने दो एक बार मना करते हुए पैकेट पकड़ लिया और उसे खोलने लगी।ईशा ने जैसे ही सुधा के हाथों में बिस्कुट देखा उसकी आंखों में चमक आ गई और वह सुधा के हाथ से बिस्कुट खींचने के लिए हाथ बढ़ाने लगी।रहमत ने प्यालियों में चाय उड़ेलकर सामने बात कर रहे ग्राहकों को थमा दी। ‘कुछ और लोगे?’ रहमत ने ग्राहकों को देखते हुए पूछा।

चाय पीते हुए आदमियों ने एक दूसरे की आंखों में देखा ‘हां, मट्ठी है?’ रहमत ने जवाब दिया। ‘जी हां, है।’ मट्ठी निकालकर उन्हें पकड़ा दी।उसने एक बार फिर सुधा को देखा।एक मट्ठी निकालकर कहा, ‘लो, बेटी को भी खिला दो।’ रहमत के माथे पर गहरी नमी दिखाई दे रही थी।

चाय पीने वाले युवक पैसे देकर वहां से बढ़ने लगे।रहमत ने पीले टी शर्ट पहने युवक से विनम्र आग्रह करते हुए पूछा, ‘बेटा, क्या आप लोग इसी शहर के हो?’ 

‘हां, हां! कहो आपको कोई काम है? युवकों ने जानना चाहा। ‘बेटा, आप लोग कहां रहते हो?’ रहमत ने पूछा।

‘हम लोग पटेल नगर रहते हैं, बताइए कुछ काम है?’ रहमत ने एक मरतबा सुधा को देखा और क्षण भर संशय की स्थिति में रहा।युवक रहमत के सफेद चेहरे को देखते रहे।रहमत ने कहा, उन्हें ‘बेटा, ये औरत बेचारी रास्ता भूल गई है।यदि आप लोग घर तक पहुंचाने में मदद कर सको तो बहुत मेहरबानी होगी।’ छोटी बच्ची मट्ठी चाटते हुए उन सबको टुकुर-टुकुर देखती रही।तीनों लोग सुधा के पास आ गए।सुधा आशा भरी नजरों से उन्हें देखती रही।सड़क पर जाम अब पहले से कम हो गया था।धूप उनके इर्द गिर्द बिखरी थी।

सुधा ने कपड़े से अपना मुंह पोछते हुए सारी कहानी उन लोगों को बता दी।आप क्या जानती हैं? मोबाइल नंबर या घर का पता?’ ‘भैया, मैं कभी भी अकेले घर से बाहर नहीं निकली।जब भी कभी मार्केट आई थी उनके (निलेश के) साथ ही आई थी।मुझे क्या पता था कि उनके शॉर्टकट के चक्कर में ऐसा हो जाएगा।बोलते बोलते उसकी आंखें नम हो गईं।

‘कोई बात नहीं सिस्टर।आप घबराओ नहीं।आप कहां रहती हो ये बता दीजिए?’

‘हम लोग रामपुरा रहते हैं भैया।मैं तो बस इतना जानती हूँ कि हमारा घर बिजली दफ्तर से आगे दुर्गा मंदिर के पास है।’ सुधा ने ईशा को कंधे पर चिपकाते हुए जवाब दिया।

रहमत आसपास की उबलती हुई धरती पर पानी छिड़कने लगा।पानी जैसे ही जमीन पर गिरता गर्म बालू कुछ देर के लिए ठंडी हो जाती।

युवकों ने कहा ‘या तो हमलोग पुलिस को खबर कर देते हैं जिससे वह इस महिला को इसके घर पहुंचा दें।’ फिर कुछ सोचते हुए कहा, ‘या इसे किसी ऑटो रिक्शा में बिठा दिया जाए ताकि वह इसके घर पहुंचा दे।’ सुधा का निराश चेहरा उन सबको देखता रहा।रहमत क्षणिक सोचता रहा। ‘ठीक है बेटा, आप लोग अपने काम पर जाइए।आपने अपना कीमती वक्त और नेक सलाह दी, उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया।’ रहमत के सूखे चेहरे पर खास किस्म की चमक थी, जैसे उसे बहुत बड़ी परेशानी का हल मिल गया हो।

सड़क पर बाइक, स्कूटर धीमे-धीमे खिसक रहे थे।सुधा जब भी किसी नीले स्कूटर को करीब आते देखती उसकी आंखें उत्सुकतावश उसे ताकने लगती जैसे हेलमेट के भीतर निलेश का चेहरा ही हो किंतु जैसे ही स्कूटर बिना रुके आगे निकल जाता वह मन मसोस कर रह जाती।रहमत बोला, ‘बेटा, तुम लोग यहीं बैठे रहना।मैं अभी बस पांच मिनट में लौट कर आता हूँ।अल्लाह ने चाहा तो जल्दी ही तुम अपने घर पहुंच जाओगी।’ वह सड़क पर चलते वाहनों को लांघता हुआ एक गली में मुड़ गया।

कुछ ही देर में रहमत एक लड़के की अंगुली थामे उसी गली में निकलता हुआ आता दिखा।उसने पास ही एक ऑटो रिक्शा वाले को इशारे से अपने करीब बुलाया और सारी बातें कह दीं।रहमत ने अंगुली थामे बच्चे से सुधा का परिचय कराया कि वह उसका बेटा है।उसकी उम्र दस ग्यारह साल रही होगी। ‘ताहिर बेटा, तुम दुकान संभालना मैं घंटे भर में इनको घर छोड़कर आता हूँ।’ ताहिर सुधा के चेहरे को देखता रहा।

थ्री व्हीलर खद खद करता हुआ उनके करीब पहुंचा। ‘लाओ बहन, इस बिटिया को मुझे पकड़ा दो और चलो मैं तुम्हे रामपुरा घर तक छोड़ आता हूँ।’ ईशा को जैसे ही रहमत ने उठाना चाह वह तेजी से चिल्ला उठी। ‘ये किसी के पास नहीं जाती, केवल मेरे पास ही रहती है।’ सुधा समझाते हुए ऑटो में बैठने लगी।रहमत भी सुधा के बगल में बैठ गया। ‘अरे शंकर भैया, जरा गाड़ी धीरे-धीरे चलाना, कहीं वह बीच में ही इन्हें ढूंढते हुए मिल जाए।’ स्कूटर हॉर्न देता हुआ आगे बढ़ने लगा।

‘शादीपुर से ही ले लूं न रहमत भाई?’ शंकर ने रहमत से पूछा। ‘हां, मेरे ख्याल से वही ठीक रहेगा।’ रहमत खांसते हुए बोला।ऑटो रिक्शा आगे बढ़ता रहा।सुधा की परेशान आंखें रोड पर रेंगते हर स्कूटर को देखती रहीं।

ऑटो रिक्शा रामपुरा के बिजली दफ्तर से आगे आ गया है।सुधा अपनी जानी पहचानी जगह को देखकर खुशी से प्रफुल्लित हो उठी।हां, यही तो है वह जगह जहां हमारा घर है।थोड़ा आगे ही दुर्गा माता का मंदिर है।देखो वो रहा दुर्गा माँ के मंदिर का ऊंचा गुंबद।उसने सामने की ओर अपनी अंगुली से इशारा करते हुए रहमत को बताया।ऑटो रिक्शा मंदिर के ठीक आगे रुका, जहां कुछ गायें बैठी हुई जुगाली कर रही थीं।

तभी निलेश का नीला स्कूटर भी ऑटो रिक्शा के पीछे आकर रुका, मानो उसे पता हो कि सुधा इस ऑटो रिक्शा में बैठी हो।सुधा ईशा को थामे ऑटो रिक्शा से बाहर आ गई और निलेश को नीले स्कूटर से उतरते हुए देखने लगी।रहमत और शंकर एक तरफ खड़े उन दोनों को देखते रहे।सुधा की नम आंखों में अब मीठी चमक आ गई।निलेश विस्मय और घबराहट से देखता हुआ उन सबके करीब पहुंच गया।

सुधा ने निलेश को सारी बातें बताईं।निलेश हाथ जोड़ता हुआ रहमत के करीब पहुंचा और उसके हाथों को थामकर धन्यवाद देने लगा।रहमत मियां ने मुस्कराते हुए कहा, ‘ये सब अल्लाह की मर्ज़ी होती है कि इस नेक काम  का मुझे मौका दिया।अच्छा, अब मैं चलता हूँ।आप लोग भी बहुत परेशान होंगे थोड़ा आराम कीजिए।’ रहमत ने कहा।

‘मैं कैसे आपका धन्यवाद करूं कुछ समझ में नहीं आ रहा।’ निलेश रुआंसा होकर बोला और घर ले जाने की विनती करने लगा। ‘बस पांच मिनट?’

‘नहीं, अभी चलता हूँ।’ रहमत बोला। ‘दुकान पर ताहिर अकेला है, सुधा बहन को तो सब पता ही है।ये बेचारी मेरी चाय की दुकान के पास भटक रही थी।मैंने जब इनको परेशान अवस्था में देखा तो इन लोगों को अकेला छोड़ने का मन नहीं किया।ये शायद इस शहर में नई-नई आई हैं फिर आप तो जानते ही होंगे शहर का हाल।’ शंकर ऑटो रिक्शा स्टार्ट करने लगा। ‘अच्छा बहन, चलता हूँ।’ निलेश ने रहमत मियां को मसीहा मानते हुए उन्हें कुछ रुपये देना चाहा पर रहमत ने सुधा को अपनी छोटी बहन मानते हुए पैसे लेने से इनकार कर दिया और वह ऑटो में जाकर बैठ गया।रहमत मियां के बैठते ही ऑटो रिक्शा धीरे-धीरे आगे खिसकने लगा।रहमत मियां अपना चेहरा बाईं ओर से बाहर निकालकर पीछे की ओर सुधा के परिवार को देखकर मुस्कराता रहा।सुधा और निलेश के हाथ देर तक हवा में लहराते रहे।निलेश ईशा को अपनी गोद में लेकर चूमने लगा।ऑटो रिक्शा तेज धूप में मोड़ तक दिखाई देता रहा।

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